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Showing posts from 2017

सुजान अष्टकम दीप चारण कृत

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  || सुजान अष्टक दीप चारण कृत||                  ।। दोहा।। गोविंद थारा गांउ गुण , धर उर सदैव ध्यान। दूनिया बिच्च दीप नै, सोरो राख सुजान।। ।। छंद भुजंग प्रयात।। नमो कंज नैनं नमो धोल धेनं। नमो कृष्ण वैणं करे गोप सैनं।। गुलाबी कपोलं शिखी पंख भालं। नमो कंश कालं नमो नंद लालं।।   [1] बिछा बैठ जाजं सखी कान्ह साजं। बँशी सूर बाजं घनं घोर गाजं।। घले घेर घूमेर गोपी विशालं। नमो कंश कालं नमो नंद लालं।।  [2] पगं नाग दाबा नमो श्याम आभा । नमो पीत गाभा नमो दाउ भाभा ।। सखा संग खेलं लई गेंद ग्वालं। नमो कंश कालं नमो नंद लालं।।  [3] झुमे राधिका श्याम संगीत घोळे। हळे कृष्ण नीरं हिंडोळे हिळोळे।। किनारे किनारे करंतो कमालं। नमो कंश कालं नमो नंद लालं ।।  [4] भला काम सागै उभो दाउ भाई। हथां नाथिया कानु दैत्यं किताई।। चले चित्तचौरे लळो मंद चालं। नमो कंश कालं नमो नंद लालं।।   [5] सुणो साद गोविन्द बंशी बजैया। तुँही तार नैया हमारी खिवैया।। हरीया करो केशवं हाल चालं। नमो कंश कालं नमो नंद लालं ।।  [...

भूचरमोरी जुद्ध

भूचरमोरी शाह मुज्जफर खटकतो, अकबरिये री अंख। कोका अजीज कूदियो, पतशाही ले पंख।। फकत मुगल कर ली फते, कर मुज्जफ्फर कैद । भळ मुज्जफ्फर भाजियो, छेवट भींतां छेद।। दर दर कर दरकार, मुज्जफर शरण मांगतो। देख्यो न कोय द्वार, रीतां रघुकुल राखतो।। जिक्र सुण किथ जाम रो , नाठो न्वा नगरीह। जाम सत्रसाल दी शरण, खातरी कर सांतरीह।। रणथंभौर हमीर री, शरण शाह माहीम। आयो शरण आथडे़ , जाम री मुज्जफर जीम।। रावण जद ही रूठियो,विभिषण पायो राम। मुज्जफर उथब मुगल सों,जोय सत्रुसल जाम।। नामी दौलत खान , गौरी नवाब (जुने) गढ्ढ रो। कुंडला नृप लोमाण , मदद करी मुज्जफर री।। काहे शरण दी काफिरों, खाओ हम से खौफ। कोको अजीज कूकियो,मुज्जफर म्हानै सौंप।। सुंदर सूरत श्याम सी, तीक्ष्ण मुखड़े तेज। बाहुबली बलराम सो,कुंवर अजा जड़ेज।। सूरज वरवा आवियो, तोरण बंध्यो द्वार। भळ सोढी भलसाण री, भळ अज्जो भरतार।। परणन सोढी पाटवी, जाम अजो जी जाय। कांकण डोर न खूलिया, रूक्को रण नो आय।। परणियो सोढी पदमणी, सूतो संग न सेज। चंवरी सूं रण धर चालियो , जाम अज्जा जड़ेज।। चौबिस कल्ला चंद्र री, जोवो इणि जदुवंश । नवानगर ना ई...

आदर्श वर्दीधारी

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आदर्श वर्दीधारी  दम्पती राम देवरे, देव  दरश  को  जाय।  पास नह यंत्र फोनड़ो,बैरि भीड़ बिछड़ाय।।  बिछड़ियां ने मिलाविया, करतां रात्री गस्त।  मुकनजी मोटा मानवी, करता ड्यूटी मस्त।।  देख बिलखती नार ने, रूंदन कारण जान ।  खामंद दियो खोज ने, मरद्द इ मुकनदान ।।  तुलसी ने हनुमान ,भेंटायो जिम राम सूं ।  मड़द्द इ मुकनदान, रूंदित धण ने नाह सूं।।  °°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°दीप चारण

बायण माता

विघ्न हर हर विनायका, सारदा दे सद्बुद्धि। दीप पर कृपा कीजिये, विद्या की हो वृद्धि ।। गणपति गुण हूं गावु हूं , सदाय करो सहाय। सिंवरूं निशदिन सारदे, पाण जोड़ लग पाय।। कुल कितरा ई तारिया, आप देय आशीष। आद शक्ति बाणेश्वरी, सदा नमे जग शीष।। शक्ति पूंज हे भगवती, अलौकिक लौं अखण्ड। ऊर्जावान इ आप सूं, खण्ड खण्ड ब्रह्मण्ड।। असुर वध करण अवतरी, सदाहि आदसगत्त। अबखि वेला उबारिया, भगवती घण भगत्त ।। गुहिल संग गिरनार सूं, चढ्या गढ चित्तौड़। बायण मात बिराजिया, ठेट जद सू उण ठौड़।। कुल सिंढायच सिसोदिया, कमधज अर गहलोत। आडा विपदा (में) आविया, बायण मात  बहोत।। गढ परबत गिरनार सूं , नरसिं भाचलिय संग। बस्याह आय मोगड़े, जय बायण जबरंग।। खळ इक बसतो बामसू,नामी बाणासूर । आतंकी हो आकरो, क्रोधी अर हो क्रूर।। मुल्क जीतियो मौकला, राजधानियां रोप। लोग पूजवा लागिया, खळ सू खाय खौफ।। भक्ति कर भूतनाथ री, वडा लिया वरदान। भूजा निज री भालकर, आयो घण अभिमान।। भक्ति सूं भूतनाथ ने, पायो पहरेदार। तब्ब मचायो तहलको , कर खळ अत्याचार।। शिव सूं खळ वरदान ले, लियाह त्रिलोक जीत। देव राज सब छोडिया...

14 - 15 वी सदी से भी प्राचीन की पूजा की एक पेटी का सिरवे (जैसाण) सें देशनोक तक का सफर।

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कहानी तेमड़ेराय मढिये में रखी लकड़ी की पेटी कब व कैसे पहुंची सिरवे से देशनोक। जो मैंने दंत कथाऐं सुनी उसी आधार पर अपने टूटे फूटे शब्दों में लिख रहा हूं त्रुटि हेतु क्षमा करें। ओम लिखा जो लकड़ी की पेटी देख रहे हैं ये लकड़ी की पेटी करणी माता जी की दादी सासू जी सिरवा गांव(जैसलमेर) से लेकर साठिका आये थे।  सिरवा में उनकी माता जी (करणी माता के दादी सासूजी की माता जी) इसमें आवड़ माता की पूजा की सामग्री रखती थी। फिर ये पेटी (बॉक्स) करंड साठिका से करणी माता अपने साथ ले गये।  वर्तमान में देशनोक तेमड़ेराय जी रे मढिये रखी हुई हैं। इस पेटी की भी लम्बी कहानी हैं। ये दोहा शायद करणी जी के दादा ससुर जी बोड़ जी बीठू का कहा हुआ हैं। मैं जाणंतां मेलियो, पनंग तणो सिर पांव। अणखुटीह खूटे नहीं,खूटी  बधे न आव।। जय हो तेमड़ेराय, जय हो करणी मात। घणी जुनी बात छै एकर बोड़ जी बीठू साठिके सूं पैदल तेमड़ेराय रै दर्शन खातर वहीर हुवा, मारग घणो पेचीदो हो अर माड़ धरा घणी धधकती नीर तो कोसो - कोसो नी सुझे।  मन में तेमड़ेराय रा दर्शन री आश लियां बाजी सा लपरक टपरक चालता चालता सिरवे ...

भावना जी भाटी

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भावना जी भाटी                   ||दोहा || बींदी भ्रकुटी लाल हैं,लाल शीष सिंदूर। भलमन भाटी भावना, नैना छलकै नूर।। मंद मुस्कान मुख्ख पर , काला रेशम केश। होठां लाली लाल अति , लाल बदन पर बेस।। बम्बई जाय बस्सिया, वडा जमा व्यापार। भलमन भाटी भावना, करेह पुण्य अपार।। नाम भजे नित श्याम रो, करत फिर अरू काम। भलमन भाटी भावना, तन मन सोप्या त्माम।। भलमन भाटी भावना, रुपालो रंग रूप। सेवा कर कर रात दिन, रिझाय जादव भूप।। भोली मन री भावना, भल्ला जादव भूप। बन्धन प्रीतज बंधियाँ, ओ अपणत्व अनूप।। सासरो भूती भाटियां, पीहर आबु समीप। भलमन भाटी भावना, दोहा दाखे दीप।। °°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°दीप चारण

सपाखरो आनंदपाल सिंह रो

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सपाखरू  आनंदपाल सिंह रो (दीप चारण कृत) हजूरी तू काठे हिये वाळो वीरता सूं जीये वाळो, पढ्योह लिखो बीएड वाळो मत्तवाळ। गांम मां रैहण वाळो जूल्म ना सहणवाळो जूल्म देख उठाई बंदूकां तेग ढाळ।। भौं भौं भौसता कुत्ता आया समर्पण को बुलाया, धाड़ धाड़ धाड़ बाया फायर अनाफ। नेतॉ ऐ बीज बोया माता ने ऐक बेटा खोया, खूटो मांग रो सिंदूर टाबरांरो बाप।। जूत जूळम्यां जीमावणआळा ऐ के सैतालीआळा, संगी थारा धोळा काळा बणायो त्नॉ ढाळ। जैल सूं छूडावण वाळा जेल सूं दौड़ावण वाळा रांडा भांडा होय भेळा मरायो आणंद पाळ।। गोलो कह चिड़ायो त्नॉ फिर उंचो चढायो त्नॉ, राजनीति खेळ रांडा भांडा ठायो त्नॉ शेर। चाळ ढाळ जो चुनावी खतरों जाण त्नॉ भावी, दूतॉ कुत्तों छोड़ लारे धोखे कियो  ढेर।। °°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°दीप चारण आनंदपाल चालिसा अणंद पाल तु दे दे परचा।  (दीप चारण कृत)                   ।। दोहा।।  बैरण सूण बिछूंदरी, गले न थारी दाळ।  भैला बोलो भायळां, जय जय अणंदपाल।।  बिछायो नेता पुलिस मिल, हत्या रो ...

मात सूं बड़ो बाप

निज सुत सुधार कारणे, थपथपि अरु दे थाप। पेट     किताई  पालतो, मात सूं   बड़ो  बाप।। संतान सुख्ख कारणे, दूख्ख भोगतो आप। देख्यो तें तो दीपड़ा,    मात  सूं  बड़ो  बाप।। °°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°दीप चारण

दृग चावै दीदार( दीप चारण कृत)

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दृग चावै दीदार( दीप चारण कृत)  ||दोहा|| त्यार सुराही प्याळियाँ,  लबालब भरि शराब। आ जा अब परदेशिया, पूरा कर दे ख्वाब ।। पूर्सूं भर भर प्याळियाँ, सीझ रह्यो कबाब। आ जा अब परदेशिया, पूरा कर दे ख्वाब ।। असाढ बिन बरसे गयो, धधकत घणी धराह। सावण आयो साहिबा , पधारो अब घरांह।। पावस बण आवो पिया,स्नेह छींटाह छांट। गिला शिकवा भूल जा, मत राखो ना आंट।। गड़ड़ हड़ड़ घन गरजता, कड़ड़ कड़कती बीज। रो - रो काढूं   रातदिन, खामद   मत  ना  खीज।। जावे तन-मन तोड़ती, बहती ठंडी ब्यार। सावण आयो साहिबा, दृग चावै दीदार।। || कुंडलिया|| नद्य तट घट भरन गई, भींज्यो सगळो बैस। खांच लियो पंछी रिबन, खूलग्या सारा केस।। खूलग्या सारा केस, घनघोर छाय कळायण। पिया बसे परदेश, इण रुत याद आए घण।। जबर छटपटे जीव, मीन सम करती मटमट। पधार अब तो पीव, भरन चली नदी तट घट।। [1] गाबा सगला भींज गा, उघड़ गया सब अंग। कस्स कांचली टूट गी, तन पर कूर्ती तंग ।। तन पर कूर्ती तंग,  झुक झुक सब अंग झांके। फैला पंछी पंख,  मुवा म्नॉ उड़ उड़ ...

शिव स्तुति 2 दीप चारण कृत

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शिव स्तुति ( दीप चारण कृत)  जय भुतेश्वर जय महेश्वर जय नगेश्वर शंकरम।                        ।। दोहा।।  भक्त तारेह भोळियो,  होय'र शिखी सवार।  मनहर सावण मास में, नित पूजत नर नार।। सिमरु सुरसती नै सदा,सिमरु सदाय गणेश। पलकां पर मांँ पार्वती, मनड़े बसे महेश।।                    ।। छंद गीतिका।।  बह त गंगे चाल चंगे  नीर झर झर झिरमिरम। भंग घोलम रंग रोलम पग्ग डोलम थिरथिरम ।।  डमडमाडम डमडमाडम डैरु डम डम डंकरम।  जय भुतेश्वर जय महेश्वर जय नगेश्वर शंकरम।। 1 हे कपालम मूंडमालम चंद्रभालम सोभियम। ताल तांडव नाच मांडव पांच पांडव तारियम।।  बम्म बोलम, नाग डोलम फन्न फोरम रूद्र रम।  जय भुतेश्वर जय महेश्वर जय नगेश्वर शंकरम।। 2 सति सखीयम बसि अँखीयम कूद यज्ञं तन तजम।  धाररूपम वीरभद्रम दक्ष यज्ञं नाशवम।।  रूद्ररूपम मार भूपम नाच नृत्यम तांडवम।  जय भुतेश्वर जय महेश्वर जय नग...

अपसरा साधना

अप्सरा वशीकरण मंत्र सभी साधक अपने जीवन को अप्सरा वशीकरण मंत्र साधना सिद्धि का प्रयोग कर किसी भी कार्य को पूर्ण कर सकते है| आकर्षक शरीर, चेहरे से छलक पड़ने वाली सुंदरता, मोहित कर देने वाली बाॅडी लैंग्वेज या कहें शरीर विन्यास, बलशाली व सेहतमंद निरोगी काया के साथ-साथ लंबी उम्र की तमन्ना हर किसी को होती है। सुख-संपदा के साथ-साथ आंनद से भरी जीवनशैली और मनोवांछित जीवनसाथी कौन नहीं चाहता है? इसे पाने के लिए तंत्र-मंत्र साधनाअें में अप्सरा वशीकरण मंत्र और साधना का अहम् स्थान है। मान्यता है कि इस साधना से सुंदर अप्सरा जैसा सुख-सौंदर्य व समृद्धि हासिल की जा सकती है, जो जीवन में खुशियां भर देती हैं। इसके साधकों को ऐसा विश्वास है कि अप्सराओं की मंत्र साधना से वह सबकुछ हासिल हो सकता है, जिसकी कल्पना सपने में भी नहीं की जा सकती है। इसकी सिद्धि स्त्री व पुरुष अपने लिए सर्वश्रेष्ठ जीवनसाथी का अथाह प्रेम पाने और इच्छाओं की पूर्ति के लिए सदियों से करते आए हैं।  अप्सरा वशीकरण मंत्र धर्मग्रंथों के अनुसार समुद्र मंथन में विभिन्न वस्तुओं के अतिरिक्त आठ अप्सराएं भी प्रकट हुई थीं। इनमें मुख्य हैं- ...

जयमल मेड़तिया

जयमल मेड़तिया ई. स. 1567-68 मेवाड़ सेनाध्यक्ष। माह सतरह सितम्बरे, सन पनरै सौ सात। वीरमदे घर आवियो, जयमल जग विख्यात।। संवत पनर सौ चउसठे, वार शुभ शुक्रवार। आश्विन शुक्ल एकादशी, जनमियो जय जुझार।। खोसया मालदेव सूं, न रख्या चिह्न नगार। जयमल जोद्धा जोर रो, उच्च कोटिय उदार।। लारो भूंडो मालदे, जा जा लियोह जोर। खोस्या बैरी खोट सूं, मेड़त अरु बदनोर।। चित्त बसा चित्तोड़, अकबर सम जाय अड़ियो। सरदार तु सिरमोड़, वीर वीरमदेराउत।। झेल्या पग पग जूद्ध, जंग किताई जीतियो। मुगल हुय मंत्र मुग्ध,वीर वीरमदेराउत।। चारभुजा चित धार, चतुर्भुज रूप रण रमे। कर मुगला पर वार, वीर वीरमदेराउत।। भेलो रमे भतीज, काको उंच खंदोलिये। पलकती पाण बीज, पड़ कड़ड़ड़ अरि पाड़ती।। °°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°दीप चारण

मेनका अप्सरा रा सोरठा दीप चारण कृत

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मेनका अप्सरा रा सोरठा दीप चारण कृत तज सुरसरि तट वास, हे कश्यप कपिलासुता, बुझा दिदार प्यास, मृगनयनी हे मेनका।। 1 सह्या किताहि श्राप,निज धरम नित निभावते। दीप रा धोय पाप, मृगनयनी हे मेनका।। 2 नृत्य पर करत नाज, देव सब नित्य देखके। आय दरश दे आज, मृगनयनी हे मेनका।।  3 दीदार चहे दीप, भोग की नाहि भावना। साद सून आ समीप, मृगनयनी हे मेनका।। 4 छमम छड़ा छनकार, घम घम घूघर घम्मका । नटखट सुरपुर नार, मृगनयनी हे मेनका।। 5 झटक झटक लाम लट्ट, मंदाकिनी तट नाचती। झलक पलक दे झट्ट, मृगनयनी हे मेनका।। 6 विश्वामित्र कर वश्श, करि रिछा पूर्ण इन्द्र री। जबर लियो तें जस्स, मृगनयनी हे मेनका।। 7 अप्सरा ऋषि अंश , दीनी सुता शकुंतला। वधा दुष्यंत वंश, मृगनयनी हे मेनका।। 8 तोह शकुंतला अंश, नानी दुष्यंतउत री। आपसूं भरत वंश, मृगनयनी हे मेनका।। 9 मेघ मेघ पग मेल, मंदाकिनी में भींझती। परियां में तू पेल, मृगनयनी हे मेनका।। 10 छणण नुपुर छणकार, नाज लाज कर नाचती। स्वर्गे खूब सत्कार, मृगनयनी हे मेनका।। 11 नट बन करती नृत्य , गान सुन गन्धर्व का । नव योवना तुं नित्य , मृग...

गीत सपाखरू कवि दुला भाया काग कृत

वाह घोडा वाह गीत सपाखरू कवि दुला भाया काग छूटा ग्राहबे वोम बछूटा रोकता धराका छेडा उठाहबे पागा महि शोभता अथोग धाहबे खगेश तके वेगरा अथाह धख्या साहबे नाखता पागा नटव्वा अमोध         (1) डाबला मांडतां धरा धमंके साबधी दणी झमंके साजहीं कोटे रंभरा झकोळ चमके वाहसे जाणी वीजळी जालदा चळी भ्रम्मवाळा भारे ठाळा गतिवाळा मोर      (2) वांभशी सांकळांवाळा टांक कानसोरी वदां कुरंगां आंखडीवाळा मूलरा करोड भालावाळा लटां केश फोरणां उलंधी भजे जटाळा जोगंद्र नहीं पटाळाकी जोड        (3) छाछरा भालरा छातीयां ढालरा समां चोडा त्रींग बाजोठरा खाळीया सढाळ साकाबंधी तांसळीरा ओपता डाबला चोडा ठमकंता घोडा नाडा तोड सांधे ठाळ       (4) अंजळिमां पीता पाणी मोकली वखाणी आप जांगळां थोकरा धरा पूंछरा झपाट केशवाळी ढींचणारा ओवाराणा लीये काजु थडक्के धरास वांसा डाबकी थपाट       (5) लगामे गराया हाथ ऊतरे गढांपे लाया टोळे मृग्गवाळा फोळे खीजीया तोखार चडाया वा'णरा सढां देखी कंपे निज छाया नाचरा नचाया के हसाया नरां नार   ...

जुझार काठी आलेक करपड़ा

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जुझार काठी आलेक करपड़ा खाग बरछि खांधे खमी, पाय घाव पैंतीस। आलेक काठी आपने, सदा नमे जग शीष।। 1 जीत जातो ई खेल, बारहठ बैण बोलियू । पासा फेंक्यां पैल, आवतो जे आलेकड़ो।। 2 रचे मोरबी राज, सेनापति रै संग मिल। इक षडयंत्र आज, काठी परखण करपड़ो।। 3 धर सरला सरहद्द, सेना आई सजधजे। वीर रा सुण विरद्द,जोवा आया जीवजी।। 4 माँ ने बंदि बनाय, लसकर लगो ल्लकारने। जड़ेज नाग जगाय, काठी परखण कारणे।। 5 मोरबि रा मुट्यार , आलेक परखण आविया । वाय धड़ाधड़ वार, भट्ट जिवे जाड़ेज रा।। 6 साद भगवान भाण, घूमर घळ रण समर में। कमी न राखी काण, काठी आलेक करपड़ा।। 7 खींच बैरियां (री) खाल, खैण जिम खाग खड़खड़े। त्रण दिन ढाब्यो काल, अतिथि आग्ल आलेकड़ा।। 8 धिंगाणा धमरौळ, घोड़े घूमर घालियू। तेगां भाला तोळ, आलेक अरि उखाड़िया।।9 बखतर कड़ियाँ तोड़ , रुंड मुंड रगदोलिया। तुरंग ताबड़तोड़, अँतड़ियां नभ उछालतो।। 10 सेनापति रो शीष, काट्यो काठी करपड़े। अम्बर दे आशीष, अमर हुजा आलेकड़ा।। 11 दे दे मूछां ताव, जबर जंग थूं जूझियो। घण लूकाया घाव, अतिथि आग्ल आलेकड़ा।। 12 स्व पगां गयो श्मसाण, पाण निज इण चिता चुण...

नखशिख सिणगार

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चम्मकै पाण चूड़ियाँ,सिर पे रखड़ी सेट। चिल्लकै प्योवर चूनड़ी, लेहँगो एडि ठेट ।। मोती समान दंत हैं, नवलख कंठा हार। घेरदार घुमे घाघरो, नाचे मुळकै नार।। तेज  दुधारी  तेग सूं, खारो इणरो  वार। आर पार हिवड़े हुई, कातिल नैन कटार।। गजरो महकै गैसुओं, मेंहदी हाथों माय। शिख बलखाती नागणी, बजत पाजेब पाय।। कामण कँवली फूल सी, कंचन वरणी देह। पिव भटकै परदेशड़े, छोडे धण धन ऐह ।। काठी कटि तक कांचली, जबरी थिरकत जांघ। बलम देख बिलमायगी, झूमे सीमा लांघ।। °°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°दीप चारण

दीप चारण

पत्नी जा जद पीहरे, हिवड़ो होय विरान। टिंगर जै संग टूरिया, (तो) घर लागै सुनसान।। °°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°दीप चारण एटेंड फंगसन एक, कियो ना किणी कारणे। देख दीपिया देख,  सब्ब रिसाज्या सासरिया।। °°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°दीप चारण जोरू रूठी जोर, बात रात सों नह करे। छाय तिमिर चहुँओर, दिखे नही कछु दीपला।। °°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°दीप चारण के अपणो से रूसणो के अपणो से खार। मतभेद भूल माफ़ कर पड़सी जद ही पार।। अपनों से क्या तो रूठना और क्या द्वेष रखना। मतभेद भूल,माफ़ करेंगे तभी काम चलेगा।। परणी देख्यो पीवतां,(मैं) गुड़काय दी गिलास। सखा शराबी जाणियो, ख्यालां कर्यो खलास ।। °°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°दीप चारण कामण फूल गुलाब रो, खामँद सरवर कीच। बालम चातक बिलखतो,देख चंद  दृग मीच।। °°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°दीप चारण साजण आयो हे सखी, टूट्यो न गल्ल हार। झूक न कर्या ज्वारड़ा, रूठ गयो भरतार।। °°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°दीप चारण बालम बाढाणे चला, सजणी सूण संदेश। पीहरिये तूं पोढजै, दीप छडे भू देश।। °°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°दीप चारण बालम बाढाणे चला, सजणी सू...

समाज रा ठेकेदार

मोटी मोटी हस्तियां, मोटी मोटी गल्ल। स्वारथ सोधण आपरो, टणकी राखे टल्ल।। मोटी मोटी हस्तियां, मोटी मोटी गल्ल। बाले कच्ची बस्तियां, हलावता निज हल्ल।। मोटी मोटी हस्तियां, मोटी मोटी गल्ल। दीन री डूबो कस्तियां, माल खा करे मल्ल।। लूंठा बणे समाज रा, ठावा ठेकेदार। ठोकता माल ठावको, काढ काढ कलदार।। छोटा ने नाही गिणत,(ऐ) मोटा मोटा लोग। चमचा राखे चौतरफ, भोगे छप्पन भोग।। पापी बडा प्रवीण,सोशण खून समाज रौ | बजावै चमचा बीण,बोळां आगै बापड़ा|| बार बार धिक्कार , डग पर म्हैं नी डगमगां। आंख समों अंधकार, देखतां जगे दीपड़ो।। °°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°दीप चारण

सात सहेलियाँ

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सत उभी सँग सहेलियाँ, गाती करती गल्ल। लाज रख लाजवंतियां, भोली भाली भल्ल।। સત ઉભી સઁગ સહેલિયાં, ગાતી કરતી ગલ્લ । લાજ રખ લાજવંતિયાં, બોલી ભાલી ભલ્લ ।। °°°°°°°°°°°°°°°°દીપ ચારળ (બૈહ ચારળાન)

ईशा अंबानी

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साड़ी सोल करोड़ री, अरबा रा अलँकार। ईशा पूजण शिव गवर, सजे सोल सिणगार।। °°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°दीप चारण

फूटकर दोहे सोरठे 3

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दल इण खातर दौड़ता,भाज्पा या कांग्रेस। जन ने  खवाय जूमला ,ऐ तो करसी ऐस ।। °°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°दीप चारण दल बदलने से कुछ नही होगा सब दल सब नेता एक ही थैली के चट्टे बट्टे हैं । तन मरकट नथु बावरा, सिंढायक सदा समीप। दयाल कैलास ऊज्लियो,अर ठावो कवि दीप।। °°°°°°°°°°°°°°°°°°नाथुदानजी आशिया गिन गिन गुजरै रैन, आवण साजण आश में। नाही लागे नैन, औजका कर हुं अडिकती।। °°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°दीप चारण ढोली ढमका ढोल, घूमर गोरड़ घालियू। कर्सी घणीह घोळ, नार निहारे नाहड़ो।। ઢોલી ઢમકા ઢોલ, ઘૂમર ગોરડ ઘાલિયૂ । કર્સી  ઘણીહ ઘોલ, નાર નિહારે નાહડો ।। °°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°दीप चारण धोरा-धरती, आंधी, अरु पीव री अडीक। पल्लो उडावती पवन, नैणा रलगी रेत। बाटां जोवे बावली, खामद अडिकै खेत।। પલ્લો ઉડાવતી પવન, નૈણા રલગી રેત । બાટાં જોવે બાવલી, ખામદ અડિકૈ ખેત ।। °°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°दीप चारण

भूपत दान संचाणा

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संचाणो दे साद,पुकारे सागर लेहरां। यदुवंश करे याद, भूपत ग्या भगवान रे ।। °°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°दीप चारण

गणतंत्र

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हमारे भारतदेश का संविधान कई देशों के संविधान की नकल कर करके बनाया हैं जैसे मूल कर्तव्य, नीति निर्देशक तत्व, मूल अधिकार, इत्यादि....................... । पढ पढ पढ पर तंत्र, विद्वानांह बणाइ विधि। गजब मना गणतंत्र, जन गन मन जन गावता।।  छिन छिन चूंसे खून, नेहरु गांधी री अकल।  कढ्यो अंध कनून, नाजोगाॅ कर कर नकल।। °°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°दीप चारण

भंशाली संजय लीलो

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पद्मिनी सिंहल द्वीप(श्रीलंका ) की राजकुमारी और मेवाड़ के राजा रतनसिंह की पत्नी थी। 1303 में जौहर किया था इन्होने........ । नागमति चितरउ पथ हेरा। पिउ गये फिर किन्ह न फेरा।। हीरामन सुवा काल भयेहू। ले गवा मुवा मोरा पीऊ।। मलिक मोहम्मद जायसी अधिक जानकारी के लिए मेवाड़ का इतिहास पढो। (सोरठा) मूवी फूहड़ मेक, सजायो जयगढ संजिये । थापॉ दीनी टेक, सेट तोड़ रिधु सैनिकां।। भेला कर कर भांड, सुटिंग करण लायो सँजे। खाय चूरमो खांड, भाज गया सब भांडड़ा।। (रोला) पद्मिनी बने फिल्म, सोचे भंसाली लीलो। पा रजपूतां चिल्म, कर दियो रातो पीलो।। °°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°दीप चारण

शहीद जगदीश विश्नोई बीकानेर

तन अरियां रा तोड़, हेत लड़ियोह हिन्द रै। जम्भ तना कर जोड़, जगदीश जंग जूझियो।।  होली तणा हुड़दंग, वीरले विश्नोई किया। रम जबर लहू रंग, सिधाय जगदिश सूरमो।। °°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°दीप चारण

चारण अर चोहान

चारण चौहान प्राण दे भारत भोम कारणे रच गीत प्रीत रीत रचे इतिहास है। आन बान शान दान की होवण न दे हाण, आद शक्ति आवड़ा पे करत विश्वास हैं। लोक लाज मरजाद रखण करत काज सुमति चित साज ये होवै ना हताश है। उपकार सदाचार वेहार उत्तम करे अरी ओगण भंजकै, करत उजास हैं। °°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°दीप चारण

मीरा और सांवरा कवित

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मेरो तो हैं नंदलाल, जैरै मोर पंख भाल, जैरै रंग रंगी लाल, नैण जाय लड़ीया। मन में माधव तेड़,इकतारे तान छेड़, पद्य री बणार मेड़,मीरा खेत खड़ीया। बिरहा बरखा नोय, बोल तणा बीज बोय, नेह रा निदाण होय, कोठा लाटा घड़ीया। फसलां रा लागा ढेर, मधुसूदन की मैर, तन मन गाय टैर, माधे मांहि बड़ीया । °°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°दीप चारण भावार्थ मीरा कहती है कि मेरा तो सिर्फ नंदकुमार हैं वहीं जिसके सिर पर मोर पंख हैं मैं तो उसी के रंग में रंग गई हूं उसी को मेरी आंखें देखती हैं मैने अपने माधव की छवि बनाकर इकतारा वाद्य यंत्र पर तान छेड़ अपनी रचना रूपी मेड़ बनाकर अनुराग से ह्रदय रूपी खेत खड़ दिया हैं उसमें बिरह रुपी बादल बरसाये अर्थात आंसू से भी उसे सींचा हैं, मैंने उस श्याम नाम उच्चारण के बीज बोये हैं, स्नेह से निदाण कर खपतवार हटाकर तथा भक्ति रुपी फसल लेने व रखने के लिए कोठियां और लाटा बनायें हैं अर्थात हृदय को शुद्ध कर उसका स्थान बनाया हैं। दयानिधान उस मधुसूदन की कृपा हुई है भक्ति रुपी फसलों का ढेर लगा हैं तन मन से उसका गुणगान करते करते मैं उसमे समा रही हूं।

पोंपा बाई

कूड़ि योजना कागजी, ज्यूं जांफल रो जूस। जनता तो बम जाणियो, फूसकी निकली फूस।। °°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°दीप चारण राजे मुखिया राज री, सिर चढ़गी सरकार। भल आई भरतार तज, आ पोंपा (बाई रो) अवतार।। जीभ चलाइ लुभावणी, इण पोंपा (बाई रे) अवतार। वादा किना वडा वडा, (पण) बजट दियो बेकार।। डीगी डींगा हाक, बोट पोंपा(बाई)बटोरिया। धराह जमते धाक, बचन सकल आ बिसरगी ।। °°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°दीप चारण पोपां थारी प्रोल, ऊंची भलां अकासड़े। बजे वोट रा ढोल, थड़ थड़ थिरकिज जावसी।। °°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°दीप चारण रूलती फिरे......., नोट बुहारै बापड़ी। कंकर गिणाय खांड, पोठे नै पैठो कहे।। °°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°दीप चारण रिक्त स्थान भरिये फिर पढिये विधवा नाहि.................., रैयत काहे रोय। रांड रांड सब जन कहे, रानी कहे न कोय।। °°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°दीप चारण खावे कुतिया खांड, किंवाड़ रसोइ (रै) कोयनी। रानी बणगी........, हिंसा कर कर हिड़कणी।। °°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°दीप चारण मारे    लट्ठ     जोर, बेरहम   बा    बसुंधरा। भल्ली...

लाखन सिंह जोधा

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मानता री मोहताज हैं, मायड़ भाषा दीन। लाखन जोधा लाखिणो, साहित रो शोकीन।। °°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°दीप चारण

दानवीर कलयुग रो मुकेश अंबानी जीयो रिलायंस

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कूटी कपटी कम्पनियां, फोड़े ओफर बंब । मीठा दिय फल मौकला, अंबानी ब्रख अंब।। लूंठो धीरू लाल, दे जियो फोन जिवाड़िया। कर्या मूफत कॉल, रंग घणा रिलायन्स ने।। फोर जी थँब लगार, रेटां बिन डेटा दिया। धीरूसुत दातार, कलयुग मांय कर्ण हैं।। °°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°दीप चारण

गोगली अर तेमड़ेराय मंदर

आवड़ थारो आसरो, तेमड़ेराय थान। सखरो भू मो सासरो, गदगद करु गुणगान।। °°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°दीप चारण गोगली कर गुरूर, तकरांरा ताला जड़े। चारणां रोट चूर, जीमो घरांह जाय नै।। भलीह करसे भगवती,गोगलियां री फ्रस्ट। मांगों  की थे मंदरिये, थांरो  नाहीं  ट्रस्ट।। लंगर नवदिन ल्गावता, चारण आये चार। ताचकिया मढ तेमड़े, खाय गोगली खार।। देख हसे है डोकरी, सुत चारण रजपूत। कूटिजे  हक्क  कारणै, दोनूं  पूत  कपूत।। लंगर ऐथ न लागसे, रोड़ चढ नाप राह। कपूतां नाम काढियो,बाजि री झाल बांह।। °°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°दीप चारण जय हो मां तेमड़ेराय री दोगल गोगल भोगल होयर भेलिय थानड़ तैमड़ हालो। लाय करोत हथोड़ धबीड़ गबीड़ भचीड़ इ तोड़ इ तालो। लालच लोकर माल इ माखन खावन मंदर अंदर वालो। चारण ट्रस्टज कारण कष्टज झैल रयो नित होयर कालो। °°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°दीप चारण

सिंढायचों री कुलदेवी बायण जी

देख कृपा कर दीप पर, बायण माई बाप। ऊभो शरणे आपरी, काटो कष्ट अनाप।। चितरउ राख्यो छांव में, भट जूंझ्या कर चाव। पड़ियो दीपड़ पांव में, करजो बायण छांव।। °°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°दीप चारण

सुपखरो कृष्ण भगवान रो

बिछिया बजावां छड़ा छणकावां गीत गावां, नाचां झूमे घूमे चूमे जपे त्मारो नाम। गोपी कै गा गाना छाना माना छूप ना सुजाना , सूर साधे धेनू बांधे रीझा राधे श्याम।। ग्वाला वृंदावन वाला नाग ने नाथण वाला, नट्ट खट्ट नंद लाला जोड़ा तनॉ हाथ । वनवारी गिरधारी तन्न मन्न सब्ब हारी, दीन री पूकार सूण आओ दीनानाथ।। सारी रो बधायो चीर टेर द्रोपदी री सुण ताण ताण थ्काया दुसासण पाण। कौरवांरी देखे बुद्धि भीर आयो पांडवांरी बंशी बजाये चलाया थें पार्थरा बाण।। °°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°दीप चारण

मित्र स्वरूप सिंह भाटी गोरड़िया

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सासरिये री सैर, सजधज हाल्यो सुगन ले । पाघ पिचरंग पैर, गदगद सरुप गोरड़ियो।। °°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°दीप चारण संभाल ले'र सांतरी, पाल हिये बिच प्रीत। सजधज आयो साहिबो, सखिया गावो गीत।। °°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°दीप चारण भल्लो कुल अति भाटियां,किताई ढाया कंश । भेर आवजो सांवरा, वधाय स्वरूप वंश।। °°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°दीप चारण

फूफोसा रो अश्व पवन

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तिलवाड़ा मेले में मेरे फूफोसा शैंषकरण दान देपावत साब का प्रिय अश्व पवन रहा अव्वल। नस्लॉ मालाणी अवल, सुंदर सुत पवन नाम। टापॉ टपटप टण्णकी, देखो मत ना दाम।। पवन देशाण पल्लियो, मालाणी हय मोड़। मैलॉ छायो मौकलो, तिलवाड़ा रिकॉर्ड तोड़।। लेवणिया तो लेवसी, बेचणिया मत बैच। लाणो कोनी दीपसा, ले लां लगाम खैंच।। तुरियो ताबड़तोड़, खड़ड़ नाल खड़कावतो। देख दीपिया दौड़,पंख बिन उडे पवनड़ो।। °°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°दीप चारण

बैह चारणान्

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जोधपुर दरबार सुर सिंह एक बार कहीं से युद्ध जीत के वापिस लौट रहे थे । उनकी सेना में मोगङा गांव के चारण राम दान जी सिंढायच साथ में थे। रात हो गयी रास्ते में तो लुणी नदी की आछी रेत में डेरा दिया । विश्राम कर रहे थे । तो रात के दुसरे पहर राम दान जी को कुछ देवीय दृस्टांत हुआ ।उन्होंने ने सेना पति से कहा की हम यहां नहीं सोयेगें पहाङी पर डेरा ले जाणे के लिये राजा से कहो पर सैनापति ने क्हा सो जावो बाजी रा अमल डोडा उतरियोङा हो ई इंज गांगरा करे सो जाओ तब राम दान जी स्वयं जाकर राजा को यही बात कही राजा बात मानकर सैनिको को कहा जो हमारै साथ आना चाहे वो पहाङी पर आ जाओ और जो यहीं सोना चाहें यही रहो ।आधे से ज्यादा सिपाही साथ चले गये कुछ सैनिक वही नदीं की आछी रेत में सोते रहे। रात में अजमेर नाग की पहाङी पर जोरदार बारिस हुई । जिस कारण जो लोग नदी में सोये थे । वो बह गये ।पहाङी पर जो गये वो बच गये। राजा ने रामदान जी को जान बचाने के लिये सुक्रिया अदा किया ओर युद्ध के बाद छुट्टी जाकर वापिस आने पर जागीर में गांव देने का वादा किया । रामदान जी मोगङा गये वहा परिवार में आपसी कलह के कारण कटार खा कर आत्म हत्या...