बैह चारणान्


जोधपुर दरबार सुर सिंह एक बार कहीं से युद्ध जीत के वापिस लौट रहे थे । उनकी सेना में मोगङा गांव के चारण राम दान जी सिंढायच साथ में थे। रात हो गयी रास्ते में तो लुणी नदी की आछी रेत में डेरा दिया । विश्राम कर रहे थे । तो रात के दुसरे पहर राम दान जी को कुछ देवीय दृस्टांत हुआ ।उन्होंने ने सेना पति से कहा की हम यहां नहीं सोयेगें पहाङी पर डेरा ले जाणे के लिये राजा से कहो पर सैनापति ने क्हा सो जावो बाजी रा अमल डोडा उतरियोङा हो ई इंज गांगरा करे सो जाओ तब राम दान जी स्वयं जाकर राजा को यही बात कही राजा बात मानकर सैनिको को कहा जो हमारै साथ आना चाहे वो पहाङी पर आ जाओ और जो यहीं सोना चाहें यही रहो ।आधे से ज्यादा सिपाही साथ चले गये कुछ सैनिक वही नदीं की आछी रेत में सोते रहे। रात में अजमेर नाग की पहाङी पर जोरदार बारिस हुई ।
जिस कारण जो लोग नदी में सोये थे । वो बह गये ।पहाङी पर जो गये वो बच गये। राजा ने रामदान जी को जान बचाने के लिये सुक्रिया अदा किया ओर युद्ध के बाद छुट्टी जाकर वापिस आने पर जागीर में गांव देने का वादा किया ।

रामदान जी मोगङा गये वहा परिवार में आपसी कलह के कारण कटार खा कर आत्म हत्या कर ली ।

कुछ माह बीत जाने पर राजा सुर सिंह जी को जब ये बात पता चली तो उन्हें बहुत दुख हुआ ।और अपना वादा पुरा करने के लिए उन्होंने राम दान जी के तीन पुत्र थे । एक को उजलां गांव( जैसलमेर) दिया ।एक को डेरवा गांव दिया  ।तीसरे राम दान जी के पुत्र थे टिकम दास जी (हमारे पुर्वज) उनको बिलाङा गांव दे रहे थे । इतने में किसी ने राजा को भङका दिया । कि जोधपुर की 50-60% आय बिलाङे से होती है । ये चारण टेक्स देंगे नहीं ।तब राजा ने कहा वचन तो दे दिया अब क्या किया जाये ।तब रात को एक पार्टी रखी शराब पीते 2 लोग बातें करने लगे कि इन बाजी के लिये राजाने तीन गांव का विकल्प रखा हैं 1बिलाङो 2सिलाङी 3 बैहगढ ।
जब अगले दिन राजा ने क्हा बाजी कौनसा गांव लेंगे ।बिलाङा सिलाङी या बैहगढ ।

तब बाजी ने कहा बिलाङे पर पटको सिलाङी हम तो बैहगढ लैगें ।

गढ के चक्कर में धोखा हो गया ।जब बैहगढ जाकै पुछा गढ कहा हैं तब सिपाङी हशे हाहाहा यही हैं बैहगढ
वहां आकङो के सिवा कुछ नहीं था ।

पुराना दोहा

बाण गंगा ज्युं बोलियो (कुआ),बिलाङे ज्युं बैह ।
बिलाङे गेहूं निपजै , बैह आकङां री थैह ।।

पर अब ऐसा नहीं हैं।बैह अति सुन्दर स्थल हैं रमणीय हैं चारौं तरफ से पहाङ और धोरो से घिरा हुआ हैं ।ट्युबेल बहुत हे इस वजह से हरियाली हैं ।धरती पर स्वर्ग हैं तो यहीं हे यहीं हैं और यहीं हैं ।

अगर फिरदौस बररुए जमीनस्तो
अमीनस्तो अमीनस्तो अमीनस्तो

या

गर फिरदौश जमीं रूएँ अस्त हिंए अस्त हिएँ अस्त।

इस तरह जोधपुर नरेश सूरसिंह बैह चारणान गांव 1764 में हमारे पूर्वज टिकम दास जी बगसीस किया ।






बैह चारणान

बायण करणी बैह में, आराधां सुबह शाम।
तहसिल तगड़ी ओसियां, धिन धिन संच्चिया धाम।।

हेक खानि हैं खाबड़ो, हेक खानि खेतार।
बीच बसे इण बैह सूं, अणूतो हेत अपार।।

गोक्लिय केरलिय बंधियो, ब्हालो भरतो जेह।
सरवर छोटा सांतरा, लोड़कि नाडी बैह।।

धोरालाॅ पालाॅ धड़ी, खेड़ा भरेतां जोर।
रूंख खेजड़ रोहिड़ा,कैर कुमटिया बोर।।

बद्रीदान सचो सपुत, करगिल आया काम।
बन्ने दान कवी बड़ो, जन्मियां इणिज गांम ।।

दादूपंथी रतनदास जी, बुदजी मराज संत।
भक्ती कर भगवान री, ज्ञानी हुआ अनंत।।

अनगिनत निपज्या अठै, विद विद भांत विद्वान।
बालक करेह बैह रा , गांव पे अति गुमान।।

बाजी दातार बैह रा,अबखि में दिय उधार।
ठाकर नै जुध कारणे,छः झाल दिया कलदार।।

सेवाभावी अति मनिष, नित काम करे नेक।
स्केच बणातो सांतरा, अजूबोह अभिषेक।।

ट्यूबैला इत टण्णकी, हरियाली हर ओर।
टिंटोली मोर टहूंकता, भाण सँग देख भोर।।

बैह रो गढ अदृश्य है, देख सके नी ओर।
टाबर मेड़ी रम्मता, खा खोखा ढालू बोर।।

धोरा डुंगर सुहावणा,बैह बसे जिण बीच।
मधरा कुकसी मोरिया, जासु जद नैण मीच।।

इतिहास दोहराता हैं

डूबती सैना तारली, कवि राम स्वप्न कैह।
ठगी करी ही ठाकरां, बगसतां गांव बैह।।

जोद्धा सूर सिं जोर रो, डिग्यो बणते दातार।
बाजी ने बिलाड़ो बगसतां, पायो न बांह पसार।।

गढ कह दियो गामड़ो, ऊभा कोरा आक।
ठावा छाने ठाकरा, धोखे जमाइ धाक? ।।

°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°दीप चारण


बाजी दातार बैह रा,अबखि में दिय उधार।
ठाकर नै जुध कारणे,छः झाल दिया कलदार।।

°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°दीप चारण

ये बात होगी करिब 250 -300 साल पुरानी एक गांव के राजपूत ठाकर शा हमारे गांव(बैह चारणान ) आते हैं । और बाजी से जय माता जी की करते हैं

कोटङी में बैठक जमाते है । अमल री मनवार चिलमां भरीजै धुवैं रे छल्लां उङै । बाजी बातां बातां में पुछयों ठाकरां आज अठिनैं किकर आणौ हुवो ।ठाकरां कैयां इज पण बाजी ठाकरां रैं मुण्डै रा भाव देख समझ गया बात  कीं ओर हैं । बाजी कैयों ठाकरां संकिजो मत कैय दो होवे जकी ।ठाकर बोलिया म्हारै कोई किणी बात माथैं टंटो हुयोङो हे किणी सागै जको जुद्ध करणों हे पण जुद्ध सारु फौज भैली करणै बियां रौ खरचो पाणी रौ जुगाङ सारु म्हारै खनै ज्को हैं उण सु छमको ई नी लागे ।आप कनै सलाह लेवण आयो हुं कीं मदद करों तो……

 बाजी पुराणै चांदी रै सिक्का कलदार सुं 6ऊंठ गाडै री झालां भराई ।ठाकर घणा ई राजी व्हैन आपरै गांव गया । जुद्ध री तैयारी करी फोज लूंठी पण सामली फोज भारी पङी ठाकर जुद्ध हार गया । पैईसा सगला नीठग्या पाछा न ठाकरां उ दिरिज्या नी बाजी मांगिया ।

मोरल यहीं हे पहले इंसान की कीमत होती थी ।पैसे की नहीं । आज पैसे की कीमत हैं इंसान की नहीं।

ये कहाणी मेरै गांव की हैं और ठाकरों के गांव का नाम में बताना नहीं चाहता । कहाणी के पात्रों के नाम मुझे याद नहीं ।

ये कहाणी बहुत पहले कहीं सुनी थी ।

कहानी अठेई ज पूरी नी हुवे तो आगे री कहानी सुनो म्हारै गांव रा बन्ने दान जी थाणेदार समाज सेवी अर भला मिनख हा वे थानेदार री नौकरी करता जद वांरे उपर एक अफसर उणीज ठाकरां रै गांव रा आया , नवी नवी अफसराई झाड़न लागा बन्न जी ने कदैई छूट्टी या कोई काम काज रै कारण परेशान करण लागो उण टैम में नया नया अफसर अर पुलीस विभाग में तो सिपाही थानेदार नै तो कठे गीणे।
बन्नजी एक दिन अफसर साहब नै कैयो कि साहब आपां रा गांव खनै खनै इज हैं आप हमके छूट्टी में घरे पधारो जद आप आपरा गांव रा बढेरा बुढिया नै पूछजो कि बैह गांव अर आपरै गांव रा संबंध कैड़ा रैयोड़ा हैं।

अबै अधिकारी साहब घरै गया जद आपरै गांव रा बुढियां नै पूछयो तो उपर्युक्त कहाणी सूणी। अर पाछा जद ड्यूटी पर आया तो अबै साहब रो व्यवहार बन्नजी थाणेदारां रै प्रति बदल गयो अर् आप सिपाही री तरह रैयो और बन्न जी सूं गहरी आत्मीयता हूयगी।

मोरल या सीख आ है कि राजपूत कितोई उंची पद पर हुवै अर चारण कोई मिल जावै तो आपरै भला माणस बढेरा री रीत नी भूलणी चहिजै।।

°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°दीप चारण












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