मेनका अप्सरा रा सोरठा दीप चारण कृत

मेनका अप्सरा रा सोरठा दीप चारण कृत







तज सुरसरि तट वास, हे कश्यप कपिलासुता,
बुझा दिदार प्यास, मृगनयनी हे मेनका।। 1

सह्या किताहि श्राप,निज धरम नित निभावते।
दीप रा धोय पाप, मृगनयनी हे मेनका।। 2

नृत्य पर करत नाज, देव सब नित्य देखके।
आय दरश दे आज, मृगनयनी हे मेनका।।  3

दीदार चहे दीप, भोग की नाहि भावना।
साद सून आ समीप, मृगनयनी हे मेनका।। 4


छमम छड़ा छनकार, घम घम घूघर घम्मका ।
नटखट सुरपुर नार, मृगनयनी हे मेनका।। 5

झटक झटक लाम लट्ट, मंदाकिनी तट नाचती।
झलक पलक दे झट्ट, मृगनयनी हे मेनका।। 6

विश्वामित्र कर वश्श, करि रिछा पूर्ण इन्द्र री।
जबर लियो तें जस्स, मृगनयनी हे मेनका।। 7

अप्सरा ऋषि अंश , दीनी सुता शकुंतला।
वधा दुष्यंत वंश, मृगनयनी हे मेनका।। 8

तोह शकुंतला अंश, नानी दुष्यंतउत री।
आपसूं भरत वंश, मृगनयनी हे मेनका।। 9

मेघ मेघ पग मेल, मंदाकिनी में भींझती।
परियां में तू पेल, मृगनयनी हे मेनका।। 10

छणण नुपुर छणकार, नाज लाज कर नाचती।
स्वर्गे खूब सत्कार, मृगनयनी हे मेनका।। 11

नट बन करती नृत्य , गान सुन गन्धर्व का ।
नव योवना तुं नित्य , मृगनयनी हे मेनका ।। 

नाचती चहूं ओर, आंगण अम्बर आपरो ।
अदाऐं आठ पोर, मृगनयनी हे मेनका।। 

भर कर मन में मौज, नुपुर बजा लुक जावती।
देव सब रया खोज, मृगनयनी हे मेनका।। 

सुमधुर सँगीत शौर , नृत्य संग जो सुने ।
होवत भाव विभोर ,मृगनयनी हे मेनका।। 

ता- ता-धीं-ना तान , तगड़ि तराना ताल हैं ।
गुनगुनात नच गान, मृगनयनी हे मेनका।।

छमम छम छम छमाक, बिछिया बजाय बाजणा ।
धरां पग धर धपाक, मृगनयनी हे मेनका।।

गन्धर्व गान सुन्न , थिरकत पद आनंद में ।
नच नीलकंठ धुन्न , मृगनयनी हे मेनका।।

झनन नुपुर झंकार , आसमान से उतरती ।
विविध अभूषण धार , मृगनयनी हे मेनका।।

जोत रथ अश्व सात , गगन में नित गमन करे ।
भू पर बिताय  रात, मृगनयनी हे मेनका।।

कटि भृकुटी से काम , छलकाती तुं कामिनी ।
जुल्फ से पाय जाम, मृगनयनी हे मेनका।।


तप्प तपस्वी तोड़ , निरखत पावन रूप है ।
 छलकर मुख ना मोड़ , मृगनयनी हे मेनका।।


रिझाय ऋषियां  रूह , जोद्धा जणिया जोर रा ।
किंया बखाण करूंह , मृगनयनी हे मेनका।। 


अृमत कलश से कूच , छलकते छिलाछिल भरे ।
मले सुर असुर मूंछ, मृगनयनी हे मेनका।। 
या
सुघट घट अमिय कूच , छलकते छिलाछिल भरे
मले सुर असुर मूंछ, मृगनयनी हे मेनका।। 

 लाम लहरते खेत , पाण-पग मैंहदी महक ।
 उतरि धर वस्त्र श्वेत, मृगनयनी हे मेनका।। 

पसमिना ओढ साल , शरमाती ऋतु शीत में ।
बिन्दी सोभे भाल , मृगनयनी हे मेनका।। 

मुख पूनम को चांद , दशमलव सो कपोल तिल ।
वर दे मेट विषाद , मृगनयनी हे मेनका।। 

शुक सम तीखी नाक ,  डोरे कंचे डोलते ।
पलकें तितली पांख , मृगनयनी हे मेनका।। 

बांहां बाजूबंद, ओपत गजरा आंवला ।
सरस प्रसून सुगंध , मृगनयनी हे मेनका।। 

रागनियों का राग , सुरपुर की तुम शान हो ।
ब्रह्म रचित हो बाग , मृगनयनी हे मेनका 

कन्दोल लड़ लटक्क, होले कटि पर हिण्डती।
अंखियां रही अटक्क, मृगनयनी हे मेनका।। 


बाला तोर बगेर , सारा सुरपुर विरान हैं ।
सुर पर करती मेर , मृगनयनी हे मेनका।। 


सुरमा लोचन साज , गुंथित गजरा गैसुओं ।
गिराती चलत गाज , मृगनयनी हे मेनका।। 

मोतीन कंठ माल , हीरा जड़ंत हार हैं ।
लालि रचे लब लाल , मृगनयनी हे मेनका।। 

 रथ तेरो हर रात , घूघर घमकावे घणा ।
 सखियां हँसती साथ , मृगनयनी हे मेनका।। 

देव सभा में बस्स , प्याला भर भर प्रीत सों।
पूर्सती सोम रस्स , मृगनयनी हे मेनका।। 

रूपालो रँग रूप, गजगाम्णी मन मोवणो।
शरद सुहानी धूप, मृगनयनी हे मेनका।। 

उपवन सुंदर जान, अँक अलि छिपे अँभोजनी ।
अटूट तेरी आन , मृगनयनी हे मेनका।। 

रतिपति मति अति व्यस्त, नैनन नक्स निहारते।
मद्य पी मदन मस्त, मृगनयनी हे मेनका।। 

शचिपति सदा दुरुस्त, सानिध्य पाय सांतरो ।
इमरत पी सुर चुस्त, मृगनयनी हे मेनका।। 

झँकृत हिय वीण तार, आकर संगीत सुण ले।
पुकारूं बार बार, मृगनयनी हे मेनका।। 

ठाढी रख कर मीठ, वंश अनेक उबारिया।
पलट बता ना पीठ, मृगनयनी हे मेनका।। 

किस्सा हर जुग होय, अनगिनत अठै आपरा।
दे कद दिदार मोय, मृगनयनी हे मेनका 

थांरो लिखतां काव्य, आखर अब ना ऊकले।
दीप जगा हिय दिव्य, मृगनयनी हे मेनका।। 

चावै देव समीप, स्वर्ग सूं किकर आवसो।
दूर जले ओ दीप, मृगनयनी हे मेनका।। 

देख नयन अब खोल, कोय कवि लिखे आप पर।
बैली बन कर बोल, मृगनयनी हे मेनका।। 

दुरसाह गांम दोय, विरद पते रो लिख लिया ।
हूं विरदावत तोय, मृगनयनी हे मेनका।। 

थांरे वस में देव, एक सूं बढ़'र एक है।
मेटो भव रा भेव, मृगनयनी हे मेनका।। 

चातक जोवै बाट, स्वाति बूँद री बादली।
रलल छम नाख छांट, मृगनयनी हे मेनका।। 

बना दे म्हनै बाग, बागवान तुम्ही बनो।
छेड़ो बहार राग, मृगनयनी हे मेनका।। 

हरती कष्ट हजार , हरदम तूं हदपार हैं ।
महिमा अपरम्पार , मृगनयनी हे मेनका।। 

मदमस्त थये मन्न, पढ्यां काव्यं पाठड़ो ।
ताजो करदे तन्न, मृगनयनी हे मेनका।। 


कुल किताई कुलीन, सम्पन्न हुआ आप सों।
दीप रहग्यो दीन, मृगनयनी हे मेनका।। 

जाणूं न मंत्र जंत्र, जाणूं न कोय साधना।
तोड़ दुर्भाग्य तंत्र, मृगनयनी हे मेनका।। 

दूर करो सब दोष, चारण शरणे लेयने।
प्रीत सूं पाल पोष, मृगनयनी हे मेनका।। 

दीपू गढ़वी गाय, सोरठा रचे सांतरा।
तुरंत प्रसन्न थाय, मृगनयनी हे मेनका।। 

मेनका अप्सरा रा सोरठा दीप चारण कृत 

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