मीरा और सांवरा कवित


मेरो तो हैं नंदलाल, जैरै मोर पंख भाल,
जैरै रंग रंगी लाल, नैण जाय लड़ीया।
मन में माधव तेड़,इकतारे तान छेड़,
पद्य री बणार मेड़,मीरा खेत खड़ीया।
बिरहा बरखा नोय, बोल तणा बीज बोय,
नेह रा निदाण होय, कोठा लाटा घड़ीया।
फसलां रा लागा ढेर, मधुसूदन की मैर,
तन मन गाय टैर, माधे मांहि बड़ीया ।

°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°दीप चारण

भावार्थ

मीरा कहती है कि मेरा तो सिर्फ नंदकुमार हैं वहीं जिसके सिर पर मोर पंख हैं मैं तो उसी के रंग में रंग गई हूं उसी को मेरी आंखें देखती हैं मैने अपने माधव की छवि बनाकर इकतारा वाद्य यंत्र पर तान छेड़ अपनी रचना रूपी मेड़ बनाकर अनुराग से ह्रदय रूपी खेत खड़ दिया हैं उसमें बिरह रुपी बादल बरसाये अर्थात आंसू से भी उसे सींचा हैं, मैंने उस श्याम नाम उच्चारण के बीज बोये हैं, स्नेह से निदाण कर खपतवार हटाकर तथा भक्ति रुपी फसल लेने व रखने के लिए कोठियां और लाटा बनायें हैं अर्थात हृदय को शुद्ध कर उसका स्थान बनाया हैं। दयानिधान उस मधुसूदन की कृपा हुई है भक्ति रुपी फसलों का ढेर लगा हैं तन मन से उसका गुणगान करते करते मैं उसमे समा रही हूं।



Comments

Popular posts from this blog

काम प्रजालन नाच करे। कवि दुला भाई काग कृत

आसो जी बारठ

कल्याण शतक रँग कल्ला राठौड़ रो दीप चारण कृत