सिंढायचों री कुलदेवी बायण जी


देख कृपा कर दीप पर, बायण माई बाप।
ऊभो शरणे आपरी, काटो कष्ट अनाप।।

चितरउ राख्यो छांव में, भट जूंझ्या कर चाव।
पड़ियो दीपड़ पांव में, करजो बायण छांव।।

°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°दीप चारण

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