जुझार काठी आलेक करपड़ा


जुझार काठी आलेक करपड़ा

खाग बरछि खांधे खमी, पाय घाव पैंतीस।
आलेक काठी आपने, सदा नमे जग शीष।। 1

जीत जातो ई खेल, बारहठ बैण बोलियू ।
पासा फेंक्यां पैल, आवतो जे आलेकड़ो।। 2

रचे मोरबी राज, सेनापति रै संग मिल।
इक षडयंत्र आज, काठी परखण करपड़ो।। 3

धर सरला सरहद्द, सेना आई सजधजे।
वीर रा सुण विरद्द,जोवा आया जीवजी।। 4

माँ ने बंदि बनाय, लसकर लगो ल्लकारने।
जड़ेज नाग जगाय, काठी परखण कारणे।। 5

मोरबि रा मुट्यार , आलेक परखण आविया ।
वाय धड़ाधड़ वार, भट्ट जिवे जाड़ेज रा।। 6

साद भगवान भाण, घूमर घळ रण समर में।
कमी न राखी काण, काठी आलेक करपड़ा।। 7

खींच बैरियां (री) खाल, खैण जिम खाग खड़खड़े।
त्रण दिन ढाब्यो काल, अतिथि आग्ल आलेकड़ा।। 8

धिंगाणा धमरौळ, घोड़े घूमर घालियू।
तेगां भाला तोळ, आलेक अरि उखाड़िया।।9

बखतर कड़ियाँ तोड़ , रुंड मुंड रगदोलिया।
तुरंग ताबड़तोड़, अँतड़ियां नभ उछालतो।। 10

सेनापति रो शीष, काट्यो काठी करपड़े।
अम्बर दे आशीष, अमर हुजा आलेकड़ा।। 11

दे दे मूछां ताव, जबर जंग थूं जूझियो।
घण लूकाया घाव, अतिथि आग्ल आलेकड़ा।। 12

स्व पगां गयो श्मसाण, पाण निज इण चिता चुणी।
पछैह तजिया प्राण, काठी आलेक करपड़े।। 13

सत्रह सौ चउसठे संवत, हूवो जुझार हेक।
अपसरा लेयगी वरे,  ऐवु काठी आलेक।। 14

बातां ऐ बतलाय , काठी रामकु करपड़ो।
गढवी दीप गब्काय, सोरठा इ आलेक रा।।15

°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°दीप चारण



 

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