14 - 15 वी सदी से भी प्राचीन की पूजा की एक पेटी का सिरवे (जैसाण) सें देशनोक तक का सफर।




कहानी

तेमड़ेराय मढिये में रखी लकड़ी की पेटी कब व कैसे पहुंची सिरवे से देशनोक।

जो मैंने दंत कथाऐं सुनी उसी आधार पर अपने टूटे फूटे शब्दों में लिख रहा हूं त्रुटि हेतु क्षमा करें।

ओम लिखा जो लकड़ी की पेटी देख रहे हैं ये लकड़ी की पेटी करणी माता जी की दादी सासू जी सिरवा गांव(जैसलमेर) से लेकर साठिका आये थे।  सिरवा में उनकी माता जी (करणी माता के दादी सासूजी की माता जी) इसमें आवड़ माता की पूजा की सामग्री रखती थी।
फिर ये पेटी (बॉक्स) करंड साठिका से करणी माता अपने साथ ले गये।  वर्तमान में देशनोक तेमड़ेराय जी रे मढिये रखी हुई हैं। इस पेटी की भी लम्बी कहानी हैं।

ये दोहा शायद करणी जी के दादा ससुर जी बोड़ जी बीठू का कहा हुआ हैं।

मैं जाणंतां मेलियो, पनंग तणो सिर पांव।
अणखुटीह खूटे नहीं,खूटी  बधे न आव।।

जय हो तेमड़ेराय, जय हो करणी मात।

घणी जुनी बात छै एकर बोड़ जी बीठू साठिके सूं पैदल तेमड़ेराय रै दर्शन खातर वहीर हुवा,

मारग घणो पेचीदो हो अर माड़ धरा घणी धधकती नीर तो कोसो - कोसो नी सुझे।

 मन में तेमड़ेराय रा दर्शन री आश लियां बाजी सा लपरक टपरक चालता चालता सिरवे गांव तांइ आय पूगा,

बुड़की में इक बूंद इ पाणी नी, गलो काठो सूख रयो हो, जोर री तिरस लागगी,

जितरे एक घर दिसियो रत्नू चारण रो घर हो, ओ घर खेत में हो रत्नू राणी अर वां बेटी बसतुबाई  हतायां करती करती खेत रो ही काम करे ही।
इतरे बोड़ जी बीठू खैंगारो करता पूगिया।

अर वानै थान जावण रो मारग पूछियो अर पाणी पावण रो कह्यो रत्नू राणी पाणी पावण लागा।

बाजी बूक मांड पाणी गट गट पीवण लागा।

इतरे वां बाजी ने पूछियो आप कांई जात रा हो।

बाजी कह्यो हूं साठिके रो बीठू चारण हूं।

रत्नू राणी झट सूं घूघटो काढ लोटो बाजी रे हाथ में दे दियो।

बोड़ जी बीठू रो रंग सांवलो हो डील कद काठी ठीक ही पण रूप रंग सूं ज्यादा फूटरा नी हा। उमर ही खासी हूयगी ही।

तो रत्नू राणी घूघटो काढ अफूटा फिरतां मसखरी करतां थका कैह दियो,

ऐ ही किणरा फूटा है ( अर्थात किसी कन्या का दुर्भाग्य होगा जिसको आप जैसा वर मिला हो। )

आ मसखरी बाजी रै मन मांय ठसक गी (मन में चूब गयी)

बाजी भिंजियोड़ा हाथ मुंडो गमछे सूं पौंछ आपरै गंतव्य री दिस वहीर हुवा।

तेमड़ेराय डोकरी रा दर्शन कर थोड़ी विसाई लेय पाछा जैसाण गढ सामा रवाना हुवा।

जैसलमेर दरबार में एक व्यांव हो बारात आयोड़ी बाजी ने दरबार सामंता रोक लियो अर कह्यो दो - चार दिन रूक जाओ बारात मेहमान सिधायां पछै आपने सीख देवसां।

बाजी रै अलगी जात्रा सूं थाकेलो तो हो इज जणे बाजी रूकग्या।

अठै रैयाणा मांय हथाई, अमलां, मनवारां री दपट्टा बैवे ही।

 हुक्का चिलमा रै धूवे रा हफीड़ उठै हां।

कैई वातां रा कवितावां रा दौर चाले हा।

बाजी रे हियें में वा मसखरी रै रै कांटे ज्यां रड़कती ही।

अठीने महलां मांय व्यांव री रश्मा पूरी हुई ।

बींद राजा राज कुंवर ने मेलायत मांय लेजावतां दासियां एक कोगत करी।

एक नकली नाग बणा'र दासे (ड्यौढी) पर मेल दियों अर बींद राजा ने जनाना कक्ष कानि छोड़'र दासियां लूक गी अर
देखण लागी की बींद राजा कितरा बहादर हैं नाग सूं डरे कि कोनि डरे।

ड्योढ़ी तक पूगतां ही बींद राजा री नजर नाग (नकली) पर पड़ी अर विचारियों की अठे म्हारै माथे कितरा लोगां री नजर हैं,

अर बींद बणियोड़ो नाग माथ कर कूदतो भी कोजो लागू,

इण भांत विचारतां तुरंत बींद राजा नाग रै मूंडे माथैं पग मेल आराम सूं कक्ष माहि बड़ग्या।

बींदराजा साहित, कवि,विद्वानों,अर काव्य रा रसिया हा।

रात आली घटना देख रैयाण में घोषणा करी, कि म्हारै मन री इक पंक्ति री जको कवि सटीक पद़पूर्ति करी बिनै मुंह मांगो इनाम मिलसी।

अर बींदराजा एक ओली कही

"मैं जाणंतां मेलियो"

खासा कवि रैयाण मांय मौजूद हा  कैई कवियां पद पूर्ति करण री जुगत करी। पण सटीक नी ढूकी।

साठिके सूं आयोड़ा बोड़ दान जी बाजी बींदराजा ने कह्यो हूं पद पूर्ति करसूं पण म्हानै वचन देयर कैवो हूं मांगसू जको देवसो।

बींदराजा हाथ पाणी लेयर कैय दियो कविराज ओ म्हारो वचन आप कैवसो जको होवसी।

बाजी भैरू जी रो तगड़ो ईस्ट राखता भैरू जी बाजी रै हैले हाजिर हा।

बाजी सा भैरू जी ने सिंवर 'र दोहो फटकारियो

"मैं जाणंतां मेलियो ", पनंग तणो सिर पांव।
अणखुटीह खूटे नही, खूटी बधे न आव।।

दोहो सुनतां ही बींदराजा वाह कविराज! वाह कविराज! वाह कविराज! करतां बाजी ने गले लगा लियो।

बींदराजा कह्यो मांगो कविराज आपने कांई पुरस्कार देवां।

बाजी कह्यो जैसलमेर रिहासत माहि सिरवो गांव हैं गांव माहि फलाणी फलाणी ठोड़ रत्नू चारण रो घर छे बी घर माहि विवाह योग्य कन्या हैं उण कन्या सूं म्हने परणावो।

बींदराजा जैसाण भूप ने फरमायो कि जितरे बाजी रो व्याव नी हूवे जितरै जैसलमेर राजकुंवरी भी आपरै ससुराल नी जावेला।

जैसलमेर दरबार सिरवा गांव रे रत्नू चारण ने बुलाय कह्यो ऐ साठिके रा चारण ही हैं आं ने आपरी बेटी परणावणी पड़सी नी तो आप म्हारे राज्य माहि नी रह सको।

रत्नू कविराजजी आपरै घरे बात करी कि महारावल रो ओ आदेश है सगळो खरचो दरबार करसी धूम धाम सूं व्याव होसी। दरबार इतरो दबाव देवे वर चारण हो योग्य इज हुवैला।

आपां री तो भगवती चिंता ही मेट दी रत्नू कविराज अर वांरै घरे सूं रत्नू राणी भी राजी हा।

जैसलमेर शाही दरबार री देखरेख में बाजी रे व्याव री त्यारियां हूई।

बारात जैसलमेर सूं धूम धाम सूं वहीर हूई

दिन आथमतां सिरवै पूगी सामेलो हुवो जितरे अंधारो पड़ग्यो, बाजी (बींद राजा) ने चंवरी चढावण लेयगा।  खाता खाता (जल्दी जल्दी ) पंडित फेरा निवेड़ दिया।  फेरा हुवां पछै बाजी जान रे डेरे आय'र सूयग्या।

दिन उगे बाजी (बींद राजा) ने कंवर कलेवे खातर रश्मां रिवाजा खातर सासरिये घरे सूं बुलावो आयो।

कलेवो करियो सासुजी नैड़ा आय उभा इतरे बाजी कैयो सासुजी औलखियो म्हनै ।
रत्नू राणी आंखां मसलता एक टूक देख्यो,

इतरे बाजी कैयो बी दिन आप म्हनै देख'र कह्यो हो नी की ऐ  कैरा फूट्या है।

ओ देखो ऐ आपरा ईज फूटा है।

रत्नू राणी चकरिज बेहोश हुयग्यो।

दो चार लुगाया पाणी रा छाबका देयर होश में लाया।

तो रत्नू राणी सिधा दौड़िया तेमड़ेराय मिंदर डोकरी आवड़ मां रे चरणों में शीष पटकण लागा। रत्नू राणी आवड़ मां रा अनन्य भक्त हा।

(वां रो रोज नियम हो भकावटे गांयां री दुवारी कर एक लोटो दूध सूरज निकलियां पैली तेमड़ेराय मंदर जाय चढाय पाछां आवता कैइ कोसां भां कम समय में पार कर लेता गजब री आस्था ही।)

हमे रत्नू राणी कह्यो हे डोकरी हूं थारी कितरे बरसा सूं थारी भक्ति करूं आज म्हनै दर्शन दे नी तो हूं म्हारा प्राण थारे चरणां मांय सिर पटक पटक तज दे सूं।

रत्नू राणी एक दो बार शीष पटकियो माथैं में लोई आयग्यो इतरे आवड़ मां तारंग शिला रै लारै सूं प्रकट होय रत्नू राणी ने बैठो कियो अर कह्यो थूं चिंता ना कर थारी पुत्री तो म्हारी ही बेटी हैं आ घणी भागशाली हैं हूं इणरे साथे हूं।

रत्नू राणी हूं किकर विश्वास करूं।

आवड़ मां केयो थूं घरे जा सीखां री त्यारियां कर जान वहीर होवतां बखत थूं म्हारी पूजा सामग्री राखे जकी संदूक पेटी (करंड) हाफे थारी कन्या साथे छकड़ी पर पूग जावेला तो थूं समझ जाजे हूं साथे हूं।

रत्नू राणी आवड़ मां चरणां लाग घरे आयग्या सीख देवण त्यारियां करी कोड करिया नम नैणा सूं बेटी ने विदा करी।

अर डोकरी कह्यो ज्यां ही हुई पूजा आली लकड़ी पेटी (करंड) हाफे (स्वतः) छकड़ी पर पहुंच गयी। बाजी देखतां देखतां चंवरी रे धूवे सुं या डोकरी री कृपा सूं रूपवान,  नवजवान हूयग्या। अर सिरवे सूं वा लकड़ी पेटी साठिके आयगी।  नव विवाहित बीठू राणी बसतुबाई आपरी माता जी री ही भांति इण पेटी में राखयोड़ी मां आवड़ जी री मूर्तियां री विधिवत पूजा करता हां। बोड़ जी बीठू देपों रे ही बडेरा (पूर्वज) हा।
तो आ पेटी (करंड) देपों जी रे ही बंट में आयी ही। अर करणी जी आ पेटी आपरे सासरे साठिके सूं जांगल प्रदेश ले आया।
करणी जी आपरी दादीसासूजी रे ज्यां ही इण पेटी री पूजा करता।  जद सूं आ पेटी हरमेश करणी मां कने ही रही।

वर्तमान में आ पेटी देशनोक में तेमड़ेराय रे मढिये माहि थापित हैं।

एक दो बार सुनी हुई दंत कथाओं पर आधारित जानकारी।

अपनी भाषा में लिखने वाला:-

दीप चारण (दिलीपसिंह सिंढायच)
गांव बैह चारणान तहसील ओसियां,
जिला जोधपुर

हाल ही निवास:- इंन्द्रा कॉलोनी बाड़मेर



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