आसो जी बारठ

(कौटङै रा बाघ जी )
कवि आसो जी बारठ

भारमली रा घाट पर बाघौ लुम लटक्क ।

जहँ तरवर तहँ मोरिया,जहँ सरवर तहँ हंस ।
जहँ बाघौ तहँ भारमली , जहँ दारू तहँ मंस ।।
बाघा हालै बेग , दुख सालै दूदा हरा ।
आठूँ पहर उदेग , जातौ देगौ जैत वत ।।
हाठोँ पङी हङताळ , हमेँ मद सूंगा हुआ ।
कूकै घणाँ कलाळ , बिकरौ भागौ बाघजी ।।
कूकङ ज्यू कुरळावियौ , ढलती माँझल जोग ।
कै थनैँ मिनङी झाँपियौ , कै बाघा तणौ विजोग ।।
बाघा आव वलेह , घर कौटङै थूँ धणी ।
जासी फूल झङेह , वास नँह जासी बाघजी ।

ठौङ ठौङ पग दौङ , करस्याँ पेट ज कारणै ।
रात दिवस राठौङ वीसरस्याँ नहिँ बाघ नैँ ।।
की कह की कह की कहूँ की कह करूँ बखाँण ।
थारौ म्हारौ नँह कियौ , ऐ बाघा अहनाँण ।।

आसो जी बारठ

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