प्रज्वलन by Dilip Singh Charan on Tuesday, 22 February 2011 at 09:12

मैँ मिट्टी का पात्र तेरा , तुं ज्योति मेरी
जग मग करता मैं दिप तेरा , तुँ बाति मेरी
तुं मुझमेँ कब प्रज्वलित होगी ?
कब मेरा दिल चाँद सा होगा।
कब ज्योत्स्ना मुझमेँ होगी ?
क्या मेरे चेहरे पर
सदा अंधियारा रहेगा ?
या फिर कभी मेरी भी
आँखे नूरानी होगी ?
अब तो बता दे मेरे रब्बा
अब तो बता दे मेरे रब्बा
कब होगा तुं मुझसे अबा
कब तेरी मेहर मुझ पर होगी ?
जरा इधर भी तो देख ,
क्या क्या है अरमां मेरे
दिप खङा हैँ दिप पङा हैँ
दर पर तेरे दर पर तेरे

••••••••••••••••••दिप चारण

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