कल्याण शतक रँग कल्ला राठौड़ रो दीप चारण कृत

भूमिका / प्रस्तावना 

मेवाड़ वा भौम हैं जिणरी माटी रा कण-कण सूरवीरां रै सूरापै रा अर सतियां रै सतित्व रा गुण गाता नी थके।
इणरो इतिहास अनूठो हैं, रणबाकूंरा रो ओ खूंटो हैं ।
बात उण बखत री हैं जद मुगल पात्सा अकबर आपरी साम्राज्य बढोतरी लगेटगे कर चुक्यो हो कैई रिहासत - ठीकाणा नै आपरी अधीनता मनवा चूक्यो हो। पण मेवाड़ उणरी आंखां में खटकतो हो, बो किण ही रीत किणी भांत मेवाड़ नै आपरै अधीन करण रो हर सम्भव कोसिसां करे हो। अठीनै मेवाड़ माथै उदयसिंह रो राज हो। चित्तौड़गढ़ सूं ही राजकाज सुचारू हो। अकबर आपरी विशाल मुगल फोजां लेय'र चित्तौड़ रै किले ने घेर लेवे। जुद्ध री स्तिथि देख सभा में सरदारों अर सामंत निर्णय लेवे कि आयुध अर सैना कम हैं अर मुगलों रै विरूद्ध आगे जंग जारी राखण खातर राणा उदयसिंह जी रो सुरक्षित रेवणो जरूरी हैं सामंत अर सिरदारां रै अणूतो आग्रह करण कारणे उदयसिंह जी सैनानायक जयमल्ल जी मेड़तिया नै चित्तोड़ सूंप सुरक्षित स्थान सारू वहिर हो जावे। इण रै उपरांत मुगलां ऊं लोहो लेवतां हेक छोटी सी ऐतिहासिक घटना 1567-68 के काल री हैं जिणमें अकबर साबात सुरंगा मांय बारूद भर किले री भींतां ने धोड़'न री खपत करे पण ज्यां दिन रा भींतां तोड़े रात नै जयमल जी पाछी चुणावै। लालटेण रै चानणै जयमल्ल जी चूणाई करावता हुवै का अकबर नै किले उपरां रात रा चानणो दिसे  तो संग्राम नामक बंदूक सूं गोली दाग दे अर गोली सीधी  जयमल जी रै जांघ माय जा लागे अर सैनानायक जयमल्ल जी घायल हो जावै। पण ऊंणा ने घायल होवण री रति भर चिंता कोनि ही, चिंता तो आ ही कि अबै म्हैं जूद्ध किकर करूं। इण मेवाड़ री रक्षा खातर भीड़ूं कीकर क्योंकि पग जख्मी होवण कारण घुड़सवारी करनी मुस्कल ही। आ पीड़ा जयमल जी आपरै भतीज कल्ला जी राठौड़ नै बतावै। (जयमल जी कल्ला जी रै पिताजी रा बड़ा भाई हा) कल्ला जी कैवे बालपणे आप म्हनै आपरी पीठ माथे रमायो आप चिंता मति करो अबै म्हैं आपने रण रमाऊं अर आपां मुगलां रा दांत खाटा कर देवां।

म्हुं हतो बरस आठरो , रमतो  थांरी  पूठ्ठ ।
रण आज हूं रमावसूं , मुगलॉ (में)करसां जूठ्ठ।। 

 भतीज रै मुंडे इतिज बात सूंणतां ई जयमल जी री पीड़ तो ठा नी कठीनै ही गी अर तन रां रूं रूं उभा व्है ग्या। हमें खटाव कठे ऐं ताऊ अर भतीज और उपस्थित सगलां सरदारों खोबा भर भर अमलां मनवारां कर हर हर महादेव री हाकलां कर चितोड़ गढ रा द्वार खोल केसरिये रो आगाज कर देवे। 

जयमल मेड़तिया ई. स. 1567-68 मेवाड़ सेनाध्यक्ष।

माह सतरह सितम्बरे, सन पनरै सौ सात।
वीरमदे घर आवियो, जयमल जग विख्यात।।

संवत पनर सौ चउसठे, वार शुभ शुक्रवार।
आश्विन शुक्ल एकादशी, जनमियो जय जुझार।।

खोसया मालदेव सूं, न रख्या चिह्न नगार।
जयमल जोद्धा जोर रो, उच्च कोटिय उदार।।

लारो भूंडो मालदे, जा जा लियोह जोर।
खोस्या बैरी खोट सूं, मेड़त अरु बदनोर।।

चित्त बसा चित्तोड़, अकबर सम जाय अड़ियो।
सरदार तु सिरमोड़, वीर वीरमदेराउत।।

झेल्या पग पग जूद्ध, जंग किताई जीतियो।
मुगल हुय मंत्र मुग्ध,वीर वीरमदेराउत।।

चारभुजा चित धार, चतुर्भुज रूप रण रमे।
कर मुगला पर वार, वीर वीरमदेराउत।।

भेलो रमे भतीज, काको उंच खंदोलिये।
पलकती पाण बीज, पड़ कड़ड़ड़ अरि पाड़ती।।

केसरिया वागा पाघ पैरने केहरीयां ज्यां टूट पड़े मुगलां उपरां जयमल्ल रै दोय हाथां माय दो भवानी तलवारां लियां कल्ला जी रै खंधोलियां अर दोय भवानी तलवारां कल्ला रै हाथां जाणे चार हाथां आलां कोई देव प्रगटिया हो। फेर मचे घमासाण - मुगलां मांय हाये-तोबा।

बे करां भवानी धरे , कूदे खोल कपाट ।
काको कांधे चाढकै , घड़े मुगलॉ री टाट।।

रूप चतुर्भुज चौतरफ ,चले चतुरँगदल चीर ।
देखे लड़तो देवता , अकबर हुवो अधीर ।।

इणी ऐतिहासिक प्रसंग माथैं म्हें कल्याण सतक  (रंग कल्ला राठौड़ रो) छोटी सी रचना करी। दोहा सोरठा छंदा माय लिखण रो प्रयास करियो अर वेणसगाई बैठावण खातर ताऊ - भतीज री जागां काको भतीज संबंध प्रयोग करियो हैं । इण रचना माय म्हारो कृति नायक कल्ला जी राठौड़ हैं जका जयमल्ल जी अनुज अचलसिंह रा पुत्र हा। आं री माताजी रो नाम श्वेता कुंवरी हो। भक्तमणी मीराबाई कल्लाजी रै बुआ सा लागता हा।

सोम सरिता रै तट माथे किणी गुफा माय भैरूनाथ नामक गुरू कृपा ऊं कल्ला जी योग साधना भी सीखे ।वे कैई योगिक क्रियावां में पारंगत हा । 


भोंरईगढ रै आखे पाखे कैई गांमड़ा में पेमलो नामक दस्यू रो अणूतो आतंक व्है। कल्ला जी आपरे साथिड़ा साथे मिळ'र पेमले रै सगलां दस्यू रो अंत कर आतंक रो अंत कर देवे। 
कल्ला जी रै इणी उपलब्धि सूं प्रसन्न होयर राणा उदयसिंह जी छप्पन गांवां रो परगनो भेंट करे। 

इण कृति री नायिका वागड़ रै शिवगढ राव कृष्ण दास जी री तनया कृष्णा कुंवरी हैं। कहयो जावे हैं कृष्णा कुंवरी दस्यू पेमले रै संहार में कल्ला जी रो साथ दियो हो । 



एक'र कल्ला जी शिवगढ राति वासो लेवे अर वठे ही कृष्णा कुंवरी री आवभगत घणी दाय आवै। थोड़े बखत पछै वां रो रिस्तो  तय हो जावे अर ब्याव ही मंड जावै। इणी बीच जयमल्ल जी रो रूक्को (पत्र) मिले जिणमें मुगलां रै चित्तोड़ घेरण रा समाचार मिले। अर कल्ला जी आपरी सैना साथे चित्तोड़ रै रक्षार्थ वहिर हो जावे। 

अकबर आँधी ऊमटी , बेरण करे बिगाड़ ।
दूत खत लाय दौड़तो , मुड़ो जल्द मेवाड़ ।।


किवदंती है के चित्तोड़गढ उपरां मुगलां सूं लड़ता थका जयमल जी रै भैरू प्रोल खनै जुद्ध माय काम आयां  पछै कल्ला जी राठोड़ रो सीस कट जावे। जणे उणां रो कबंध (धड़ ) लड़े जाणो आंखां सीने माथै निकलयोड़ी हुवै। मुगलां डर अठी उठी भाजे टोटरमल रै आग्रह करण उपरांत अकबर कबंध नै सस्त्र सलामी देयर कबंध रो रास्तो छोड़ देवे। कबंध वठै सूं कैई गांव पार करनै रनैला आपरे रावले माय आर पड़े कृष्णा कुंवरी सति होवतां थकां उणां रै मन माय लखावै आं रै धड़  उपरां सीस कोनि तो सीस बी बखत स्वतः ही प्रगट होवे (जको चितोड़गढ रै रक्षार्थ कटग्यो हो ) अर कृष्णा कुंवरी कल्ला जी रो तन आपरी गोद में लेयर सति होय जावे। 

चन्दन री चूणे चिता ,कमधज लेय'र गोद।
पति संग होयगी सती , करने कृष्णा मोद।। 

पनरै सौ अड़सट्ठ री , फरवरीह षट-बीस  ।
पति संग होवतां सती , कबंध प्रगटे सीस ।। 


प्रेरणा 

इण रचना री प्रेरणा चित्रकार कृष्ण देवसी ओडेदरा पोरबंदर  रै उकेरियोड़े पेंसिल स्क्रेच सूं मिली। इण नैं देख एक दोहो बणायो जणे अंतर्मन ऊं आवाज आई क्यों नी शेषावतार कल्लाजी रै विषय बाबत किं लिख्यो जावै । अर कल्याण सतक नामक रचना करी। 

दिलीपसिंह चारण ( दीप चारण )





कल्याण शतक  रँग कल्ला राठौड़ रो दीप चारण कृत


सब्द दे मात सारदे , गणपति दीजौ ग्यान ।
लेतो कर जद लेखनी , धरूं आपरो ध्यान ।। 1

गायां रुखालि ग्वालरी ,वीर किताइक वार ।
पाबू गोगा कल्लजी , रूप शेषावतार ।। 2

अश्विन सुक्ला  अस्टमी , सँवत सोल सौ हेक ।
अचल घर सेस आवियो , हरखे  मेड़तों  देख  ।। 3

माता श्वेता कुंवरी , तात अचलसीं राव ।
भक्तमणी मीरा भुवा, ग्रास गजब रो गांव ।। 4

भाले भावज(रा)ओलभा , मरवड़ तजि राठौड़ ।
भाई अर सँग भायळा , कल्लो जाय चितौड़ ।। 5

जय उदय करे ज्वारड़ा , वातां छेड़ी वीर ।
दृग कल्ले रा देखनै , दि रनैला जागीर।। 6

अनुज तेज सँग अचलसुत , टुरै रनैला गांव।
चौहान कृष्णदास जी , रोक्या शिवगढ राव ।। 7

कल्ले  कृष्णा  कुंवरी , चपला  दीठी  तेज ।
नैण बाण झट लागतां , जगा नेह बिन जेज ।। 8

कृष्णा चपला कुंवरी , विदा करण नैं वीर ।
भेली सोमेश्वर हली , व्यापी वलते पीर ।। 9

ढोल नगाड़ा ढम्ककै , ग्रामवासी बधाय ।
वीर वागड़ सुँ हो विदा , पुगा रनैला आय ।। 10

करतो रातदिवस कलो ,दुख जनता रा दूर ।
प्रेम  प्रजा  रो  पीवतो  , भर प्याला  भरपूर ।। 11

मिल्यो कल्लो राजवी , भूलाँ न भगवन भाल ।
लोकगीत नित गावता , खेत खड़े खुशहाल ।। 12

दस्यु घणा दुख देवणा ,कुलखणाह बदजात ।
डाकु गमेती पेमलो , मचात नित उत्पात ।। 13

अति अन धन धण लूंटतो , घण पसारतो पंख।
पालां    टोकर   भौरई ,  अति   इण रो आतंक ।। 14

गौ जद लूंटे लेयगा , दस्यां दो सौ एक।
समझाय दे सँदेशड़ो ,पेमा बणजा नेक ।। 15

नाजोगो  नी  नेक , पेमो   घुड़लो  पापरो ।
कल्ले भरतो देख ,फ़ौड़न चढियो फ़ौज़ ले।। 16

भोरईगढ चले भँजण ,तेज विजय रणधीर ।
गैयां लावण गांव री, बुहा  कले  सँग  वीर ।। 17

कृष्णा  चपला  कुंवरी , धरे  वीर  रो  वेश ।
फोजां भेली आ भिली , केसरियो बँध केस ।। 18

मौजां  फौजां  मोकळी , खारी उडाइ खेह ।
आंधी ज्यां नभ ऊंमटी ,मंडियो दृश्य ऐह ।। 19

गगन सँख नाद गूँजियो ,घुरे नगाड़ा घोर ।
पाण खाग पळ पलकती ,जुद्ध मंडियो ज़ोर ।। 20

खाग खड़ाखड़ खड़कती , हय हिंहिंहिन्नाट ।
खप्पर धर चंडी खड़ी , मंडी जद मार काट ।। 21

हुकुम आदेश जे हुवे ,रमेह ओ रणधीर ।
सीस पेमे रो लाव सूं ,चिबड़ी ज्यां अरि चीर।। 22

तुरँगों लगाम ताण , ताचकियो बड़ दलबिचे ।
 ढलते पैली भाण, पटकियो झट्ट पेमलो ।। 23

छाती पर दे लात , मुँडे मथे दी मूठरी ।
तेग वेग कँठ घात ,बकरे ज्याँ कियो झाटकौ।। 24

धङ तड़फड़ेह धूज , मुंड बीन ओ पेमलो ।
खोल दे कलो भुज्ज , रँग सबास रणधीर नै।। 25

दुसटी चार हज़ार , पापी दस्यां पाड़िया।
जूंझ वीर जूंझार , पूगा सुरगां पाँच सौ ।। 26

सुर्यास्त संख नाद , झट्ट थमी झड़ांफड़ां।
खींडी दस्याँ री खाद , लाल भयी अम्बर धरा ।। 27

भुर्यो देख गढ भौरई , अंबर धरा ऐकमेक ।
वेला  देखो  गौधुली , हरखे  गाँव हरेक ।। 28

अनुज तेज सँग अचलसुत , नदी निहारे सोम ।
सरिता सोम निहारते , दिठी गुफा निज भोम ।। 29

तपसा करतो तपसवी , नाम भैरवा नाथ ।
कल्लो तेजो जा मिले , दोनूं जोड़े हाथ ।। 30

गुरुदेव कले ने कहे , सीख साधना योग ।
कष्ट काल तुं काटसी , मेट मोकळा रोग ।। 31

राजपाठ रूखालता , व्हेगो कलो वयस्त ।
राह रुकै री जोवती , कुंवरी विरह ग्रस्त ।। 32

प्रीतम तुं क्यों पांतरे , बता कारण विसेस ।
चिंतित थारी चातकी , सिघ्र भेज संदेश ।। 33

सटकै भेज सँदेशड़ो , जातो  रेसी   जीव ।
बिरह जगाकै बेरिया , पांतरियो क्यां पीव ।। 34

बिलुखूं तो बिन बालमा , चित नै नाही चैन ।
आठ पोर चोसठ घड़ी , काटू  गिन दिन रैन ।। 35

सखरी  सीखी साधना , योगी   करनै    योग ।
अठ सिधि नव निधि पावसी, भंज मेरो वियोग ।। 36

वरवा  वैगो  आव  रे , पैरा  मो  वरमाळ ।
बिरह भंजजै बालमा , बाथॉ बाथां घाल ।। 37

देखे दिकरी री दसा , चिंतित भूप अत्यंत ।
खोज्यो सोच विचार नै , योग्य कलोजी कंत ।। 38

गवर ईसर ज्युँ सांतरो , आं दोनां रो मेल ।
भेज्यो द्विज सँग भूपजी , नरैला इ नारैल ।। 39

बरस एक अध बीतियाँ ,  बैगो मांडे ब्याव ।
 सिवगढ सजियो सांतरो , राज़ी  अणुता राव ।। 40

कृष्णे कृष्णे केवतां , बाँहां भरली बींद ।
जोवे सुपना जागती , नैना नाहीं नींद ।। 41

सिरदार सब सजधजे , सजधजियाह तुरंग ।
बींदराज कलजी बणे, सजधज जान्याँ संग ।। 42

जानि हरखता जात , गीत लँगा जद गावतां।
गज बाज़ि चढि बरात , गाजा बाजा बाजतां ।। 43

फाबै साफो फूटरो , माथे कलँगी मोड़ ।
हौले तुरियो हाँकतो , रणबंको राठौड़ ।। 44

अमल हिलमिल अरोगता, थाकेलियो उतार ।
सामेले  सैंण मिलिया , मोकळी  करी  मनवार ।। 45

गीतड़ा लँगा गावता , ब्याव री रीत विसेस ।
हौळे कलजी  हालतां , सासरिये  रै  देश।। 46

सामा ऊभा सासुजी , देवे  दही ललाड़ ।
तोरण कलजी बांधियो, कन्यावां री ताड़ ।। 47

अकबर आँधी ऊमटी , बेरण करे बिगाड़ ।
दूत खत लाय दौड़तो , मुड़ो जल्द मेवाड़ ।। 48

सुणते वधू सँदेशड़ो , पैराई वरमाळ ।
आफत आधी आयगी , हयड़ा बैगो हाल ।। 49

भीड़ पड़े जद भोम पर , तजु नी तब तलवार ।
काम निवेड़'र आवसूं , अडिके तीज तिवार ।। 50

तोरण सूं मोड़ तुरियो , चाल्यो कलो चितौड़ ।
कर तिलक कह्य कुंवरी , रंग तनॉ राठौड़ ।। 51

वचन दे कलो वीर , चित ले चितौड़ चालियो ।
आवसुँ अरियाँ चीर , सजणी सावणि तीज रो ।। 52

सैन्य दल सहित कल्लजी ,चाल्या चितौड़ चाह।
मुगलां  रो  दल  झूमियो , घोसुँडा बिच्च  राह ।। 53

हर हर री कर हाकलाँ ,तेग तीर भल ताण ।
घण घिर घूमर घालियो , घोसुण्डे घमसाण ।। 54

दो हज़ार सथ वीर ले , काको ईसर दास  ।
कल्लोजी सूं आ मिले , घोसुण्डा रे पास ।। 55

दल अरि आवै दौड़ता , भिड़े काको भतीज।
फ़ौज़ होड़ कर फोड़ता , गरज गिरे ज्याँ बीज ।। 56

बैरी   दाल्द   बुहारता , राह  बणा  राठौड़ ।
भीड़ भिड़ा भट पाड़ता , पूगा आय चितौड़ ।। 57

जयमल आधी रात रा , तकतो होकर त्यार ।
आवता देख आप रा , गढ रो खोल्यो द्वार ।। 58

मोर्चो   संभाले   मियो , नकट    ख़ान  आसीफ ।
पलक झपक बिन झाकतों ,स्वाति बूंद ज्याँ सीप ।। 59

रोके रोड़ा राह रा , रणधिर सुण आदेश ।
रोड़ा-होड़ा फोड़कै, पैला  करा  प्रवेश ।। 60

भल भट लेय'र पाँचसौ , रमत रमे रणधीर ।
बैगा गढ में बड़गिया , इसर कले सँग वीर ।। 61

अरियाँ नै पा आकड़ो ,रलियो  रज रण धीर ।
हूरां   गी   हरखावती , वर  कर  ऐसो   वीर ।। 62

काल बणस्यां केसरी , गले लगाकै  मौत  ।
जयमल ईसर सँग कले , बातां करी बहोत ।। 63

अकबर करसी आक्रमण , लगाके ओ अंदेश ।
उदय ने लिख'र भेजियो , सक्ति  सिघ्र संदेश ।। 64

भल गल कैवै भायला ,भल्ल ठौड़ जा भूप ।
कूदे उदै कुँभल्लगढ , चीतॉ (ने)चितौड़ सूंप ।। 65

तलवार दुधारी धरे , झट भट झपटे सेर।
पंचावो पल मा चुणे , लगा धड़ा रा ढेर ।। 66

देख'र भूखा केहरी , साही दलां विरुद्ध ।
कायर अकबर कांपतो , तोड़े नियम जुद्ध।। 67

खोदाय दी अकबरिये,  साबात  दो   सुरंग ।
घण मण भर बारूदड़ो , तोड़ण द्वार दुरंग ।। 68

तोपॉ छोड'न तोड़तो , दिन रा बो  दीवार ।
चँद चानणे चुणावतो  , जयमल बारंबार ।। 69

चिलकतो देख चानणो , बाही उण बंदूक ।
जय रे जा लागो पगां , छरो सँग्राम अचूक ।। 70

जयमल घायल होवतां , फ़ौज़ देख लाचार।
फ़ौरन लैवै फैसलो , साके (रो) सोच विचार ।। 71

दिन फरवरि चौबीस , पनरै सौ अड़सट्ठ रा ।
चोटी चितौड़ सीस,जौहर री ऊठी ज्वालिका ।। 72

गावै गीता सार , चंदन रो कर लेपड़ो ।
हाली तैर हज़ार, जौहर ने  क्षत्राणिया ।। 73

पैर लाल परिधान , निसरी बळवा नारियां ।
गंगा जल कर पान , कूदे पावक कुण्ड मा ।। 74

सोला सज सिणगार , निहारती निज नाह नै ।
हँसते हँसते नार , कूदे पावक कुण्ड मा ।। 75

पनरै सौ अड़सट्ठ रो , दिन फरवरी पचीस ।
केसरियो धर केसरी , चढ़े चढावण सीस ।। 76

खोबा भर भर मोकळी , कर अमलां मनवार ।
जयमल कीन्हो सांतरो , सिरदारॉ सत्कार ।। 77

रिछ्या जयमल राव री,  लड़े लड़तो मरूंह ।
घायल घणीह जाँघ है , किकर हुँ जुद्ध करूंह।। 78

काका मत कर तू फ़िकर , करे कलो दुख दूर ।
जग मा न कोय जोवसे , सरिखों थांरै सूर ।। 79

म्हुं हतो बरस आठरो , रमतो  थांरी  पूठ्ठ ।
रण आज हूं रमावसूं , मुगलॉ (में)करसां जूठ्ठ ।। 80

बे करां भवानी धरे , कूदे खोल कपाट ।
काको कांधे चाढकै , घड़े मुगलॉ री टाट।। 81

रूप चतुर्भुज चौतरफ ,चले चतुरँगदल चीर ।
देखे लड़तो देवता , अकबर हुवो अधीर ।। 82

जय कलो जठे जावता , अरि डर भजे अनाफ।
घूमे घूमर घालता ,  सपासट्ट  रण  साफ़  ।। 83

सूण्ड बँध खाग झालरां , मुग़ल छोड़े गयंद ।
देख रजपूत रोंदता , अकबर ले आणंद ।। 84

तोड़ दंतां दले गजां , ईसर   कर   कर   वार ।
काम न आय कारिगरां , गढँत साज़ सिणगार ।। 85

पाड़ गज कई पोढियो, रठौड़ ईसरदास।
हूरां उतरे हाँसती , वरवा   पूरी  पचास ।। 86

सूरां कलो शिरोमणी , ठोक डक चढे ठेठ ।
गज्ज अणुता गुड़ावतो , क़दि होदे क़दि हेठ ।। 87

जकिया जगना जंगिया , हरखे अकबर छोड़ ।
सबदलिया गज सब दळे , रण रमतां राठौड़ ।। 88

जय कँध चाढ़ कलो लड़े , तड़ड़ड़ तेगां तौड़ ।
बैरि तुँबै ज्यां बोटतो , रण रमतो राठौड़ ।। 89

झड़बट बाढे झाड़ ज्यां ,  नाखै बैरी बाढ़ ।
साफ़ करे रण खेतड़ो , काको कांधे चाढ ।। 90

मुगलां बिच्चे मांडियो, ताण्डव ताबड़ तोड़  ।
 काकु कंध चाढे लड़े ,रँग कल्ला राठौड़ ।। 91

पलक झपकते पाड़ता , चार पाण चालीस ।
मरता मुगलां देखकर , अकबर करतो रीस ।। 92

जबरा दोनूं जूंझता , मारे मुगल मरोड़ ।
काको चाढ खँधोलिये , लड़े कलो राठौड़ ।। 93

खड़ड़ खाग खड़कावतां , गूँज्यों जद आकास।
हूरां  धरा  पर  उतरी ,  छोड़     इंद्र     आवास ।। 94

भल्ल लड़े काको भतिज , सुणता सिन्धू राग ।
वरवा  हूरा  अडिकती , धड़  नी  छोड़े  खाग ।। 95

अरि अगाड़ी न आवतो , वाइ लारैउँ खाग ।
पाड़े अरियां पोढियो , परियां (रो) जागो भाग ।। 95

सैकड़ा घाव साजकै , जैमल लड़तो जाय।
तन भैरुप्रोल पर तजै , परियां प्यास बुझाय ।। 96

लाटो मुगलां (रो )लेवतां ,घुरता घन ज्यां घोर ।
 जुद्ध मा जूंझिया जबर , जयमल कल्लो ज़ोर ।। 97

अरि न अगाड़ी आवतो , लारेउँ वाइ खाग ।
सीस काट नी  संभले , खाय झट कलो नाग ।। 98

कमधज अरियां काटतो , फौजां शाही फोड़ ।
कोल रा बोल याद कर, जा रनेल रण छोड़ ।। 99

अपसुगन सुगन देखकर ,ख्याल पिया रो आय ।
बैन सुँ कृष्णा  ले विदा , जोय  रनेले  जाय ।। 100

कमधज रणतज जा कलो , गांम कई कर पार ।
बचन निभावण बावलो , रुके   रनेले  आ'र ।। 101

कृष्णा संमुख आयकै , तन दियो कले त्याग ।
पीव रे प्यारी लग पगा , लुंबगी हिये लाग ।।  102

आलिंगन करसां अग्न मा ,फैरे बिन हम तेर ।
सेजा सागै सोवसां , मिल'र फलक मा फेर ।। 103

चन्दन री चूणे चिता ,कमधज लेय'र गोद।
पति संग होयगी सती , करने कृष्णा मोद।। 104

पनरै सौ अड़सट्ठ री , फरवरीह षट-बीस  ।
पति संग होवतां सती , कबंध प्रगटे सीस ।। 105

जोये सुरगां जावतां , कृष्णा कल्लो सथ्थ ।
रहगी मन मा वरण री , हूरां मलती हथ्थ ।। 106

 लोक देव रजवट्ट रा ,कर कल्ला कल्याण।
 खामि समो मत जोयजो ,कवि(दीप)ने चारण जाण ।। 107

करुणा करजौ कल्लजी ,चारण निर्धन जाण।
दोहा रचिया दीप सा  , ग़ज़ब करे गुणगान ।। 108

आता(जै) कलजी आज ,गज चढ़ा देत गांमड़ा ।
कहता वाह् कविराज , देख'र दोहा "दीपकृत"।। 109


छप्पय छंद

कल्ला कर कल्याण, आओ अरि असुर मारण।
कल्ला कर कल्याण, आओ भक्ता उबारण।। 
कल्ला कर कल्याण, आइए तरणी तारण।  
कल्ला कर कल्याण,  विरदावे दीप चारण।। 
जग आवे कर जोड़तो, चित ले प्रोल चितौड़ री। 
जय जय कृष्णा कंत री , जय कल्ला राठौड़ री।।




कवित

खाग खड़ा खड़ खड़का अश्व गज गुड़का, 
मूंछें मले बैरी लूड़का वीर बेजोड़ हैं। 

तेगां चार चार हाथां, उडा अरियां रा माथा, 
पद धरे खाथा खाथा, मेवाड़ रा मोड़ हैं।

काको खांधे चाढ कल्लो, मुगलां नै बाढ कल्लो, 
भल्लो रण रमे कल्लो, हरखे चितौड़ हैं। 

नाद हर हर करे , रूप चतुर्भुज धरे, 
नाठो अकबर डरे, ऐ कैड़ा राठौड़ हैं? 

 °°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°दीप चारण 



दीपक रचिया दूहरा , मरु कीरत सिर मौड़ ।
रंग बलिदानी रजथळी,रंग कल्ला राठौड़ ॥

••••••••••••••••••••••••गुरूजी नवल जी जोशी 


कविता :- जुद्ध अर जौहर 


साॅमी उभी सैना अरि सूराँ बाजै रणभेरी,

भाळिये सूरां बणे ठणे पुकारै भोम ।

कटि काठी कसो सूरां फौज बैरी घणी लुँठी,

रण भौम रज्ज करे उभो रोम रोम ।।      [1]

कटि घाते कटार बांधो कटिबंध कैशरी,

पक्खर काठो कसे सजे कैशरी  पाग ।

ढोल नगारे घुरे घोर ढम्मांक ढम्म ढम्मा,

खांचै लगाम हाथाॅ माॅ थाम ढाल खाग ।। [2]

तकै फौजा आमी-सामी वाजै तड़ो तड़ तेगा,

पळक्कै तड़ीत तेगाॅ चाले जद पाण ।

तङाक छोड़ तीर वीर प्रतंचा तेज ताणो,

बुहा बरछी भाला छोड़ धनँख बाण ।।    [3]

करै हाको उभो रैजे लारे वीर आगे बैरी,

दुस्मी तुरंग चढे नाठो दुम्म दुबाक ।

कूदे कड़क्यो  लारै करै केहरी केसरियो,

झप्पट्टो  झड़ाॅ-फड़ाॅ झट्ट मारै झपाक ।।  [4]

खचा खच्च खचा खच्च पाड़े पड़े काटे कटे,

मारे मरे सब्ब ओर सजाया मसाॅण ।

झाका झीक झाका झीक दौड़े घौड़ा जौद्धा झूझै,

घनघोर खैह उडे माण्डे घमसाण ।।        [5]

खड़ंग ढाल खड़ा खड़ जोर जोर खड़क्कै,

भचीड़ भचीड़ चहुंओर गुँजै भड़ाक ।

सूरां खचाक खचाक खच्च खच्च पाड़ै बैरी,

घुरे घोर नगारे गड़ा गड़ं गड़ाक ।।          [6]

तांण पांण क्रपांण मुखां तातो तेज भाण तपतो,

झूमतो झूझतो झड़ा फड़ फाड़े झूण्ड ।

खळ्ळ खळ्ळ बाजै खून खळा खळ बहे खाळा,

मूण्ड बीना धड़ गीड़ंदा  गुड़ावै मूण्ड ।।    [7]

दुम्मा पड़ दुम्मा पड़  सूराँ रा तुरंग दौड़ै,

भीड़ निहारै रणवीर नै भरचक्क ।

धड़ा धड़ मूण्ड गुड़ाकै नाहर झूण्ड पाड़ै,

धम्मा धम्म धम्मा धम्म माँडै धमचक्क ।। [8]

करि अंग ताड़ ताड़ करिकै दहाड़ मारै बैरी,

काटे अरि हुँकार भरी फटा पहाड़ ।

वेग सूँ चले तेग जैसे फरसू को फरसो,

कांपे थरा थर्र कायरों रा हाड़-हाड़ ।।   [9]

भजे कायर बैरी कपूत छोड़े रण भूमी,

मरे कायरों नै लेण आया जमदूत ।

अदेव देव अरुँ भूत देख रिया आ क्रिड़ा,

हसता लड़ता मारै मरे रजपूत ।।          [10]

कंवळो कोमळ कुंवर जी लाल क्षत्राणी रो ,

देखे बैरी छाती माथै बणे महाकाळ।

कड़क्कै  उड़ाकै  चहुंओर गुलाल लहू रो,

बाळ होली रण माॅ रमे भू भयी लाल ।।  [11]

भरकै खप्पर खून बटोरै फिरे भोगणी,

हाले हा-हा  हसंती हसंती मारै हाक ।

गट्टक गट्टक  गटक्कै लहू गिटे जोगणी,

धपकै धपकै धपकै डकारै आक्क ।।    [12]

कटा इक कान टांग पाण हेक आंख फुटी,

बैरी हटा रहा सूरां डटा तेग ताण ।

छूपरयो भाण शँख नाद गूँजे लाली छायी,

मर्सिया पढ नै चारण करे  बखाण ।।   [13]

धधक्क धधक्क हुतासण कूण्ड धूक्क रया ,

निसरैह सति होवा  महलां सूं नार ।

आहुँतिया देवा हल्ले झूँड विरांगंनावां रो ,

सजकै धजकै करै सोळा सिणगार ।।   [14]

राँमा साँमा कर नै रजपूत विरांगंनावां सारी,

करवा हाली आखरी अगनी सिनान ।

ठुमक्क ठुमक्क ठुमक्क चढे  गढे अटारी,

क्षत्राणी रखै लाज कूळ कियो महान ।।  [15]

भग्ग भग्ग भग्ग जोर जौहर ज्वाळा भड़की,

करै कूच क्षत्राणियाँ बणा'र कतार ।

बेस लाल होठां लाली लाल भाल लाल बिंदी,

हुई ललनावां  होम अनेक हजार ।।         [16]

रण माहि  लड़े  पाई  वीरगती  रणवीरां,

वरै सूराॅ सथ्थ ले हूराॅ उड़ी अकास ।

उँचों चढे रथ्थ थामे सूराॅ हथ्थ हूराॅ उङे,

धरा छुटी मेघ छुटा आयो स्वर्ग पास ।।   [17]

बुझता जौहर ज्वाळा पुगी लारै क्षत्री बाला,

खीजी सौतन सागै देखने पीव संग ।

तवे ज्याँ तपी ताती दहाड़ मारै सिंहणी ज्याँ,

झपट्टी झटो झट ज्याँ उछले तुरंग ।।        [18]

रण माॅ रमे रणबँको सति जौहर दाझै,

कुळ्टा थूँ  कठै ले जावै म्हारौ भरतार ।

हटगी आगी हथ्थ  सथ्थ सूरां रो छोड़ हूराॅ,

हाथ पग्गरखा ले भागी मुण्डो उतार ।।    [19]

जाणूं नही शब्द छंद वैणसगाई न जाणूं, 

ज्ञान रो अभाव तोई करै घणो चाव ।

सूरां लड़े  करे सति जौहर जोवती हूराॅ ,

बांचै दीप चारण जोर जुद्ध बणाव ।।        [20]

••••••••••••••••••दीप चारण




कवि -परिचय

नाम -:दिलीप सिंह चारण (दीप चारण )
जन्म -: 20- मई - 1988 
जन्म-स्थान-: देशनोक (ननीहाल में )
पिता -: श्री जगदीश दान चारण 
दाता -: श्री शक्ति दान चारण 
गांव-:  बैह चारणान , त• ओसियाँ ,जिला जोधपुर 
हाल ही निवास -: इन्दिरा कॉलोनी बाड़मेर 
सम्पर्क सुत्र -: 9660525254
email add. Dilipsingh.charan@gmail.com
शिक्षा -: एम • ए ,(राजस्थानी ,राजनीति विज्ञान ) बी•एड, एल. एल. बी ।







चित्रकार कृष्ण देवसी ओडेदरा



https://m.youtube.com/watch?v=x655KSz95XA&feature=youtu.be

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