अन्ना राम सुदामा री दो चार पक्तियाँ

गात मेँ प्रभात जाणूं
आपरी पीतिमा भरी
चंदण सुबास दी
होठां स्यामता
कोकिला बैण कमल नैण
कुण जाणै कितां रै रंग रुप सूं
जादूगरणी तूं धङीजी एकली
मुगत डग धरती
भँवरा री भीङ मेँ छीङ करती
मुळकती सुन्दरी
सिनेमा घर मेँ बङी ।
सो खतम कर
भीङ मेँ कण टांटियै सै भद्र जन
लियो बूकियै पर
कवळै चूंटियै सो चूंठियो भर
जीवतो ही सरग पूग्यो
जीवण री अभिलाख पोरवी
उछळती लैर सो
कुण जाणै कठै मिल्यो
बह चली भीङ री भागीरथी
खनै खङो कवि
उपमा अनुप्रास मेँ डूब्यो
नैण मेँ दै नैण सामनै जोयो
मेघरो मूंढो जोवतै
तिस्से पपैयै सो ।

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