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Showing posts from 2015

दो हज़ार सोल

यार होया सब तैयार कोई दो कोई च्यार , सगलां करे इंतज़ार साल लागे सोल । कोई बीयर तो दारू कोई पिये ढोला मारू, डीयर हेपी न्यू ईयर बोले ओ  डोल  ।। इंतज़ार बारे बजी रो करे ओ इंतज़ाम, फड़ा फड़ आज करसी फटाका फोड़ । कोई नाचे बजा डीजा कोई खावै आज पीजा होडा होड करे कोड लगावतो  होड़ ।। ••••••••••••••••••••••••••••••दीप चारण साल ओ दो हज़ार सोले लावै खुसियां हौले हौले रंग ले मांडै रोज़ रंगोली हो हर दिन दिवाली होली मीठ बोले बागां रा मोर चोरी नी करे कठैई चोर सुख समृद्धि री उड़े पतंग ऊँची ऊंची चढ़े बढ़े उमंग डाल डाल कोयल बोले डीयर ऐसो हो सगलां रो हेपी न्यू ईयर •••••••••••••••••••दीप चारण

राधा कृष्णा रास

वृंदावन कानो वहिर , धेनॉ टोले धोल । भेलो भातो भायला , खवाईस मन खोल ।। गौ टोले गोपाल , गीत मुरलिये गावतो । भूली गोपी भाल , काम निवेड़ा कालिया ।। खेतां चराय खोपियां , खेलतो रास खेल । ग्वाले राधा गोपियां , मोकली प्रीत मेल ।। लइगो मन हर संग , नैण बाण मारि नट बण । रति रलि गोपी रंग, मदन सदन अँग माधवा।। मन मोहन बजत मुरली , पुगी गोपियाँ पास । बलम बिन बनी बावली , रमे स्याम सँग रास ।। गोपी सुध बुध बिसर गी , पाय स्यामलो पास । डग डग बजाय डंडिया , रमे स्याम सँग रास ।। डणण डणक्का डंडिया , छणण छड़ा छणकार । राधे माधे सँग रमी , घट पटक घूँघट घटा'र ।। •••••••••••••••••••••••••••••••••दीप चारण

कालिये रा सोरठा

कंस करे घण कोड , देय वसुदेव देवकी । फुटो गगन कन फोड़ , काल आवसी कालियो ।। ताला जन्मे तोड़ , गयो नंद रे गामड़े । हुवै न थारी होड़ , कलजुग माही कालिया ।। धेनां टोले धोलकी, बंशी मधुर बजाय । लुकै लुगड़ा लुकाय , कालिन्दी तट कालियो ।। कल कल करती कालिँदी , मधरा कहुकै मोर । घिरे देख घन घोर , कोड करे जद कालियो ।। हालिया आय हिरणिया , टणकी सुणते टेर । मांडै डग डग मेर , कला ग़ज़ब री कालियो ।। नाथण नकटो नाग , दरे नाग नाखी दड़ी । झटक्के फणा झाग , कालिँदी कूद कालियो ।। नट बण नचियो नाच , फण फुटरा  तें फोड़िया । पूंछ नाग री खांच , कालिँदी बीच  कालियो ।। गोपियां पिँचे गाल , चोर ठाय चितचोर ने । भल मोर पंख भाल , कुंवर फुटरो कालिया ।। रमतो लीला रास , सुर छेड़तोह सांतरा ।  खामंद तुँही ख़ास , क़रतो करतब कालिया ।। सोरठा करे शोर , सब कवियां रा सांतरा । डग डग थामे डोर , कला करतोह कालिया ।। जलधि पोढया जाग , कलकी कलजुग मां कठे । कांव कांव सम काग , कवि सब कूकै कालिया ।। भाव बिना भगवान , जग मा कोय न जोवसे । गलै सुँ निकले गान , कवि हिवड़े घन क...

पृथ्वीराजसी सोलंकी

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जबरी योगा जाणता, युगां   सुँ  योगीराज । धिन धिन तु बांसड़ा धणी,प्रणपाल पृथीराज ।। ठाये  हिवड़े   ठोड़ , ठावी  म्हारे   ठाकरां । कहि दीप कलम तोड़ ,पीथल रीत न पांतरे ।। नमक खिलावत जग्ग नाॅ ,खाय सेठ अरु दीन । कर्जा चुकाय कोय नह , नमक कढे नमकीन ।। सदा रीत रखि सांतरी , सत ज्ञानी सोलंक । इण गुण कारण आपने, अम्बे रखियो अंक ।। ••••••••••••••••••••••••••••••••दीप चारण हे ! धन्य बांसडा राज्य के स्वामी प्रण का पालन करने वाला पृथ्वीराजसी  आप कैई जन्मों से अनोखी योग विद्या को जान रहे हो आप योगीराजसी हो । 1 हे बांसडा के ठाकर आप मेरे लिये अपने ह्रदय अच्छी जगह सदा बनाये रखना दीप चारण कलम यह तोड़ते हुवै कहता हैं हे राजन !पृथ्वीराजसी अपनी रीत रिवाज परमपरां का सदैव वहन करना रजपूती रीत कभी मत भूलना । 2 आप तो सब को नमक खिलने वाले उस सागर या झील की तरह जो सबको नमक खिलाता हैं पर उस नमक को सभी अमीर और ग़रीब हर वर्ग के लोग खाते है पर नमक का कर्ज कोई भी नहीँ चुकाता हैं । सागर सभी के जिव्हा को स्वाद देता हैं पर सभी उसे खारा ही कहते हैं पर वो सभी को नमक देता...

सरकार के दो साल के कार्यकाल जश्न पर दो दोहे सोरठे

टके रो रयो टश्न , काम न करियो कामको । ठालो ठोके जश्न , भइ  भूंडी  भू  राज ए ।। 1 कुङी योजना कागदी ,  ज्यों जांफल को जूस । जनता तो बम जाणियो ,  फुसकी निकली फूस ।। 2 बरस तो दोउ बीतिया , बड़ो राज  बेकार । वीरां री इण भूमि पर ,  भइ भू राजे भार  ।।   3 बती लाल पी पी बलै , रूलती फिरै रंड । टंगै घत्त फंद गलै , बालक भोगे दंड ।।   4 चार बोतल वोडका  काम मेरा रोज़ का        :-दोहा-: ऐट पी एम आफटर , अइ एम न सी ऐम । बदला न लुँ गत बोट का , (तो) भू राजि (माई) नोट नेम ।। •••••••••दीप चारण

बोर (गहना ) / बोर (फल)

भगवत सिंह जी बाला राठौङ कृत दोहे रो पड़ुत्तर बिसरा न कनक बोरियो , कदरो मांगूं कंत । बोरड़ी झड़े  बोरिया , खावै सबरी संत ।। •••••••••••• भगवत सिंह बाला राठौङ पड़ुत्तर घाते हिये हेत घणो, सोनो खरो सुहाग । कंत म्हारो खरो कनक, गैहणा खोट जाग ।। चाबो दंतां बोरिया , बोर चोरसी चोर । मिसरी जैङा मीठङा , खाजै आठों पोर ।। स्वर्ण खोटोय साज़ ना , दब्ब चब बोर दंत । जाणे सब जग चारणां , सक्ति सूर अरु संत ।। ••••••••••••••••••••••••दीप चारण

सासरियो अर गांव

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सजनी थांरो पीहरो , यादां बीच हमेश । सुरगां सुं ओ सुहामणो , सासरिये रो देश ।। •••••••••••••••••••••••••••दीप चारण लारे रयो सुहामणो ,सासरिये रो देश । पाछा चालो दीपसा , बाढाणे बस बेस ।। ••••••••••••••••••••••••••दीप चारण घण चोखो लागे तनां , सासरिये रो देश । भाई बाटां जोवतां , बैह जाओ नरेश ।। ••••••••••••अभिषेक चारण बैह चारणान हिये माहि होवै हरख , सुणे गांम रो नाम । सरगां सुँ ओ सुहामणो , धिन धरा बैह धाम ।। सुणे गांम रो नाम , मधुकर सम होय मनड़ो । जसुदा सुं पाय स्याम , पप्पी जिसि बैह(लगै) पमिया । ••••••••••••••••••••••••••••दीप चारण

फुटकर चौपाई

कोय निवाला निगल न पांवै। जब जब पत्नी भोग लगावै ।।

कांई करो दाता ?

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कांई करो दाता ? अछी दाड़ी मूँछ वाला , दाता नाथू दान । बजाय मस्त धुन बैठा , मुरली मुख पर तान ।। [1] कांई करो हो दाता , पुछत है रोज़ पोति । राम राम रोज़ रटतां , बस इती बात होति ।। [2] किशन किशन करो दाता , शब्द ऐसो सुनाय । दादु मीरा के पद्य पर , बैठा धुनां बजाय ।। [3] गल छोटी भाव गहरा , शब्दां कह्यो न जाय । दादो पोती मिलसि कद , कोय म्हानै बताय ।। [4] ••••••••••••••••••••••••दीप चारण

सवैया (मतगयंद) नारी

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नारी (महिला)                         ||दोहा|| नारी बिन घर नर नहीं, नारी सृष्टि सृजन्न। पवन अगन जल नभ नहीं, नार बिन भू निर्जन्न।। मतगयंद (मालती ) सवैया हूकम सीस तणो मनती अपने पिव को कबहू न सतावै । पीहर छोड़'र आवत हैं पति को घर आप सजाकर गावै । घूंघट  लज्ज तणो रखती ससुराल सजा कढती मुसकावै । खूदबखूद खुदा धर नार रुपं धरती पर जीव रिझावै । ••••••••••••••••••••••••••••दीप चारण

पत्नी चालीसा बिरह वर्णन

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                      [ पत्नी चालीसा]                          [बिरह वर्णन]                          ।।दोहा।। पल पल आवै याद पिय , आजा जल्दी यार । दीप को सुझी दिल्लगी , आय दिजौ दीदार ।। सिणगार बिना सादगी , सिधा सादा रंग रूप । बिन्दिया लाल भाल पर, अंजन नैन अनूप ।।                ।।चौपाई।।  नमो नमो जय पत्नी अनुपम ।  जांउ देख डर तोरो रूपम ।। [1] जयो जयो बच्चों की मैया । गावै जय जय तोरे सैंया ।। [2] ललाट ओपे बिन्दी लालम । कर में थामें झाड़ु विशालम ।। [3] पीहर जब जाय ह्रदय प्यारी । मन तड़पन होय बहुत भारी ।। [4] मोरा जिया पिया माहि बसा । फूं - फूं मुवा बिरह नाग डसा ।। [5] बिरह घटा आ डाले डेरा । भया अंधकार चहूंमेरा ।। [6] बिरहा के बाण बने बैरी । घोर घटा बन बिरहा घेरी ।। [7] पड़त बिरह की कैसी छांया । सूख गई रे मोरी काया ।। [8] जलह...

कवि भोंगल दान जी दैथा की रचनावां

 भोंगल दान दैथा (दैथा चारणों के दाता ) कहे जातें हैं आपने सात बार हिंगलाज धाम की यात्रा की थी । इनको वरदान था की सदैव उल्टी रचना करेंगें । जिस दिन सिधी रचना की तब तक ही रहेंगे । परन्तु अंत में एक बार सिधी रचना कर देते हैं । थोङी बहुत और भी जानकारी हैं । अधिक जानकारी किसी गुणी दैथा विद्वान से लें तो सही रहेगा । मुझे बहुत सालो पहले एक मित्र से एक पुरानी फटी पुरानी नोट बुक मिली थी उसमें इनकी कुछ रचना है मैं टंकन कर रहा हुं त्रुटियां हो सकती हैं काफ़ी फिर भी लिख रहुं गलती के लिए पुर्व ही माफ़ी मांगता हुं । ••••••••••••••••••••••••••••दीप चारण    कवि भोंगल दान दैथा ।।गणेश स्तुति ।। साधा सांभलों सारा नित पदवी रा अखर नारा । सामीं सुंडालो कुडालों वालो जाने पीन्डारो । टीबकै भ्रया लाडू टंकरा , खाई ने थीतो खुस्स । हकल दंतौ मुड़स हूतों , कुरड़ा सुफड़ कन्न । गज हाथी ज्यों बनामां , घुमतो नाम थयों गजानन्द । …… सामेला में आवतो सीगें , बजता ढोल बीच्च । बीमारो विणाकियो थातो , खावतो गुल ने खीच्च । मेवेरी मिठाई करतो , कन्दोई जो काम । रमण सारु उदेरो रखतो , तीणनै...

देवी स्तूति छंद कृपाण घनाक्षरी

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प्रणमूं मैं प्रतपाल , करणी सुत रुखाल , करुणा मयी कृपाल, मन में दो सुर ताल । आप मात अति दयाल , पुत्र को राखजौ ख्याल , बिसरै न मात लाल , मान से मां दीप भाल ।। मद्य पी पी मतवाल , गुलाबी नैना विशाल , भलो ओपे बोर भाल , खनकै चुङी भुजाल । राजल मां रखवाल , मां खोड़ल खप्पराल , नमो  डोकरी दाढाल , थांरै बीन कुण हवाल ।। 1 सजकै सिंगार सोल , घुमर गरबे घोल , ढमं ढमं बाजे ढोल , ता ता ता त्रिशूल तोल । रुपां अछी छाछी होल , लांगी गुल ओल दौल ,  संग आवड़ हिलोल ,सातुं बहन सतोल ।। ओपे पोशाक पटोल , झलकै चीर झकोल , रमती मां रमझोल , रलिया असुर रोल । दीदार तोरो अमोल ,तुंही मां राय हिंगोल, करंती माते किलोल , बोले मां-मां दीप बोल ।। 2 छत्राली करजौ छांय , दयाली देशाण राय, मात को भक्त बुलाय , हिगंलाज हैले आय । दीप जयकार गाय , भय विपदा भजाय , सदा तुं किजै सहाय, चालक मां चालराय ।। तुं हीं सुक्ष्म खंड खंड , तुं हीं समस्त  ब्रह्मण्ड , तुं हीं ज्योति अखंड , तुं हीं चंडी चामुंड ।  सोभे गल माल रुंड ,  पाड़या तें दैत्य झुंड , असुर अति उदंड , तें हीं मार्या चंड-मुंड ।। ...

सिव स्तूति भुजंग प्रयात

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अवधूत अष्टकम् दीप चारण कृत गणपति थांरा गांउ गुण , गुणी ग़ज़ब तुं गणेस । सुडाला सदा साद सुण , हरजै कष्ट हमेस ।। सिव सुत सुंडाला जपु हुँ  , सुरसति दीजौ उक्ति । बम बम  भोले बोलतो,n साद सदा  सिवसक्ति ।।    ।।भुजंग प्रयात ।। सदा साद भूतेश रूद्रं महेसं । उमा संग वासं हिमालै निवासं ।। नचे नाच नाटं पिये घोट भंगा । भुजंगेस अंगा धरे सीस गंगा ।। ।1।  सदैवं नमे  नाग  देवं  अदेवं । भयं भंज भोले  करे भक्त सेवं ।। अजन्मा अनोखा अघोरी अढंगा। भुजंगेस अंगा धरे सीस गंगा ।। ।2। पुजे सावणं मास कन्या कुवांरी  । पुजंते -पुजंते  पि पावै  पियारी ।। धरे ध्यान सोमं अऊमं मतंगा । भुजंगेस अंगा धरे सीस गंगा ।।।3। सिवं तांडवं नाच गौरीय तांकै । हहो हांक हांकै सिखीराज बांकै।। पहाड़ं  पहाड़ं  मचा  हूँड़दंगा । भुजंगेस अंगा धरे सीस गंगा ।।।4। धमा धम्म झूमे नचे खोल जट्टा । घमा घम्म घूमे उड़े केस लट्टा ।। बजाते डमा डम्म डैरू मृदंगा । भुजंगेस अंगा धरे सीस गंगा ।।।5। तताकं तताकं तके तीन लोकं । धधक्कै धुणो देय...

गुरु पुर्णिमा

गुरु पावन ज्ञान गंगा , सुरिलो गुरु संगीत । जगावै ज्योति जीव में , मनङा गुरु ही मीत ।। तम मेटे गुरु तेर , गुरु प्रभु गुरु मात पिता। व्है जे गुरु री मेर , दिसे सांतु भो  दीपया ।। ••••••••••••••••••••••••••दीप चारण

कविता जुद्ध अर जौहर दीप चारण कृत

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 कविता :- जुद्ध अर जौहर  साॅमी उभी सैना अरि सूराँ बाजै रणभेरी, भाळिये सूरां बणे ठणे पुकारै भोम । कटि काठी कसो सूरां फौज बैरी घणी लुँठी, रण भौम रज्ज करे उभो रोम रोम ।।      [1] कटि घाते कटार बांधो कटिबंध कैशरी, पक्खर काठो कसे सजे कैशरी  पाग । ढोल नगारे घुरे घोर ढम्मांक ढम्म ढम्मा, खांचै लगाम हाथाॅ माॅ थाम ढाल खाग ।। [2] तकै फौजा आमी-सामी वाजै तड़ो तड़ तेगा, पळक्कै तड़ीत तेगाॅ चाले जद पाण । तङाक छोड़ तीर वीर प्रतंचा तेज ताणो, बुहा बरछी भाला छोड़ धनँख बाण ।।    [3] करै हाको उभो रैजे लारे वीर आगे बैरी, दुस्मी तुरंग चढे नाठो दुम्म दुबाक । कूदे कड़क्यो  लारै करै केहरी केसरियो, झप्पट्टो  झड़ाॅ-फड़ाॅ झट्ट मारै झपाक ।।  [4] खचा खच्च खचा खच्च पाड़े पड़े काटे कटे, मारे मरे सब्ब ओर सजाया मसाॅण । झाका झीक झाका झीक दौड़े घौड़ा जौद्धा झूझै, घनघोर खैह उडे माण्डे घमसाण ।।        [5] खड़ंग ढाल खड़ा खड़ जोर जोर खड़क्कै, भचीड़ भचीड़ चहुंओर गुँजै भड़ाक । सूरां खचाक खचाक खच्च खच्च पाड़ै बैरी, घुरे घोर नगारे गड़ा ग...

सिंढायचों का इतिहास (दंत कथा आधारित )

एकबार राजा नाहङराव कहीं से   अकेले ही आ रहे थे अरावली की पहाङियो से होते हुवै । गर्मी का मौसम भरी दोपहरी का समय तेज तावङो तपती घरा लाय रा थपिङा बावै । राजा जी नै रास्ते मे जोरदार प्यास लग गयी । दुर दुर तक पानी नहीं । गलो होठ सागेङा सुकग्या अंतस तकातक सुक गयो । आथङता 2 राजा जी डुंगरा री ढाल सुं नीचे आया उठै गाय रो खूर सुं खाडो पङियोङो जिणमे 2 - 4 चलू बरसात रो पाणी ठेरियोङो हो प्यासा मरतां थका नी आव देखयो नी ताव चलू भरनै खाताक सुङका लिया अर पानी पिवतां ई राजा रै हाथां मे कोढ (कुस्ट रोग ) जकी झङगी । अर सरीर मे एकाएक ताजगी आयगी । राजा देखयो आ कोई चमतकारी तपो भूमि है ।अठै सरोवर खुदाणो चहिजै । राजा बी जगां सरोवर खुदाई सुरु करावै पण ज्यां दिन रा खोदे पण रात वहैतां ई पाछो पैली हतो जङो व्है जावै । अर्थात बुरीज जावै काफी प्रयास करनै के बावजुद भी तालाब खोद नही पाते फिर राज विद्वानो गुणी व्यक्ति यों से।पुछवाता है ऐसा क्यो हो रहा हैं । तब बात सामनै आती हैं कि पैहले यहां बहुत बङा तालाब था इसके किनारै एक तपस्वी साधु का यहां आश्रमं था जिसकी बहुत सी गांये थी । अरावली की पहाङियो में सेर रहते थे व...

बाल कृष्ण लीला

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कृपा कानुड़ा कीजिए , तुक्का लागै तीर । गैडी बांउ गिन्डक के ,  धूजै पड़ रणधीर ।। ••••••••दीप चारण स्यामो आसी साय , नितरो धरे रूप नवो । पात्सा पड़सी पाय ,  दैख्तो जाजै दीपड़ा ।। •••••••दीप चारण । किरीट सवैया । मोहन साध सुरं बजती मुरली मधुरं मन कानन होयन । राग सुनी मधरी मधरी चल गोपि निहारि लगी मन मोहन । माधव लोचन लाल लगे मद मादक मोहक नाचत गोपन । मोर बनी रमती रमिया कर थामत आपु बनी मधुसूदन । •••••••••••••••••••••••••••••••••••••••••दीप चारण अरसात सवैया  बातइ मानव मानत गोकुल ग्वाल नटीवर माधव राज की । साम सदा इक बात कहे मत मुरत पूजत वासव राज की । भोग न देवत देवन को अब कोप करी मघवा घन राज की । गाज पङी बरखा बरसी गिरि धार लियो जय हो जदुराज की  । ••••••••••••••••••••••••••••दीप चारण सुपंखरो चढी ऐराऊत देवराज  घोर मेघ घेर आयो  । तपे ब्रज कै तणो   तड़ीत  छोड़  तोप ।। हर ओर  हाहाकार हरेक  देखे  हरि को  । डबो डब  ...