कविता जुद्ध अर जौहर दीप चारण कृत








 कविता :- जुद्ध अर जौहर 


साॅमी उभी सैना अरि सूराँ बाजै रणभेरी,

भाळिये सूरां बणे ठणे पुकारै भोम ।

कटि काठी कसो सूरां फौज बैरी घणी लुँठी,

रण भौम रज्ज करे उभो रोम रोम ।।      [1]

कटि घाते कटार बांधो कटिबंध कैशरी,

पक्खर काठो कसे सजे कैशरी  पाग ।

ढोल नगारे घुरे घोर ढम्मांक ढम्म ढम्मा,

खांचै लगाम हाथाॅ माॅ थाम ढाल खाग ।। [2]

तकै फौजा आमी-सामी वाजै तड़ो तड़ तेगा,

पळक्कै तड़ीत तेगाॅ चाले जद पाण ।

तङाक छोड़ तीर वीर प्रतंचा तेज ताणो,

बुहा बरछी भाला छोड़ धनँख बाण ।।    [3]

करै हाको उभो रैजे लारे वीर आगे बैरी,

दुस्मी तुरंग चढे नाठो दुम्म दुबाक ।

कूदे कड़क्यो  लारै करै केहरी केसरियो,

झप्पट्टो  झड़ाॅ-फड़ाॅ झट्ट मारै झपाक ।।  [4]

खचा खच्च खचा खच्च पाड़े पड़े काटे कटे,

मारे मरे सब्ब ओर सजाया मसाॅण ।

झाका झीक झाका झीक दौड़े घौड़ा जौद्धा झूझै,

घनघोर खैह उडे माण्डे घमसाण ।।        [5]

खड़ंग ढाल खड़ा खड़ जोर जोर खड़क्कै,

भचीड़ भचीड़ चहुंओर गुँजै भड़ाक ।

सूरां खचाक खचाक खच्च खच्च पाड़ै बैरी,

घुरे घोर नगारे गड़ा गड़ं गड़ाक ।।          [6]

तांण पांण क्रपांण मुखां तातो तेज भाण तपतो,

झूमतो झूझतो झड़ा फड़ फाड़े झूण्ड ।

खळ्ळ खळ्ळ बाजै खून खळा खळ बहे खाळा,

मूण्ड बीना धड़ गीड़ंदा  गुड़ावै मूण्ड ।।    [7]

दुम्मा पड़ दुम्मा पड़  सूराँ रा तुरंग दौड़ै,

भीड़ निहारै रणवीर नै भरचक्क ।

धड़ा धड़ मूण्ड गुड़ाकै नाहर झूण्ड पाड़ै,

धम्मा धम्म धम्मा धम्म माँडै धमचक्क ।। [8]

करि अंग ताड़ ताड़ करिकै दहाड़ मारै बैरी,

काटे अरि हुँकार भरी फटा पहाड़ ।

वेग सूँ चले तेग जैसे फरसू को फरसो,

कांपे थरा थर्र कायरों रा हाड़-हाड़ ।।   [9]

भजे कायर बैरी कपूत छोड़े रण भूमी,

मरे कायरों नै लेण आया जमदूत ।

अदेव देव अरुँ भूत देख रिया आ क्रिड़ा,

हसता लड़ता मारै मरे रजपूत ।।          [10]

कंवळो कोमळ कुंवर जी लाल क्षत्राणी रो ,

देखे बैरी छाती माथै बणे महाकाळ।

कड़क्कै  उड़ाकै  चहुंओर गुलाल लहू रो,

बाळ होली रण माॅ रमे भू भयी लाल ।।  [11]

भरकै खप्पर खून बटोरै फिरे भोगणी,

हाले हा-हा  हसंती हसंती मारै हाक ।

गट्टक गट्टक  गटक्कै लहू गिटे जोगणी,

धपकै धपकै धपकै डकारै आक्क ।।    [12]

कटा इक कान टांग पाण हेक आंख फुटी,

बैरी हटा रहा सूरां डटा तेग ताण ।

छूपरयो भाण शँख नाद गूँजे लाली छायी,

मर्सिया पढ नै चारण करे  बखाण ।।   [13]

धधक्क धधक्क हुतासण कूण्ड धूक्क रया ,

निसरैह सति होवा  महलां सूं नार ।

आहुँतिया देवा हल्ले झूँड विरांगंनावां रो ,

सजकै धजकै करै सोळा सिणगार ।।   [14]

राँमा साँमा कर नै रजपूत विरांगंनावां सारी,

करवा हाली आखरी अगनी सिनान ।

ठुमक्क ठुमक्क ठुमक्क चढे  गढे अटारी,

क्षत्राणी रखै लाज कूळ कियो महान ।।  [15]

भग्ग भग्ग भग्ग जोर जौहर ज्वाळा भड़की,

करै कूच क्षत्राणियाँ बणा'र कतार ।

बेस लाल होठां लाली लाल भाल लाल बिंदी,

हुई ललनावां  होम अनेक हजार ।।         [16]

रण माहि  लड़े  पाई  वीरगती  रणवीरां,

वरै सूराॅ सथ्थ ले हूराॅ उड़ी अकास ।

उँचों चढे रथ्थ थामे सूराॅ हथ्थ हूराॅ उङे,

धरा छुटी मेघ छुटा आयो स्वर्ग पास ।।   [17]

बुझता जौहर ज्वाळा पुगी लारै क्षत्री बाला,

खीजी सौतन सागै देखने पीव संग ।

तवे ज्याँ तपी ताती दहाड़ मारै सिंहणी ज्याँ,

झपट्टी झटो झट ज्याँ उछले तुरंग ।।        [18]

रण माॅ रमे रणबँको सति जौहर दाझै,

कुळ्टा थूँ  कठै ले जावै म्हारौ भरतार ।

हटगी आगी हथ्थ  सथ्थ सूरां रो छोड़ हूराॅ,

हाथ पग्गरखा ले भागी मुण्डो उतार ।।    [19]

जाणूं नही शब्द छंद वैणसगाई न जाणूं, 

ज्ञान रो अभाव तोई करै घणो चाव ।

सूरां लड़े  करे सति जौहर जोवती हूराॅ ,

बांचै दीप चारण जोर जुद्ध बणाव ।।        [20]

••••••••••••••••••दीप चारण




कवि -परिचय

नाम -:दिलीप सिंह चारण (दीप चारण )
जन्म -: 20- मई - 1988 
जन्म-स्थान-: देशनोक (ननीहाल में )
पिता -: श्री जगदीश दान चारण 
दाता -: श्री शक्ति दान चारण 
गांव-:  बैह चारणान , त• ओसियाँ ,जिला जोधपुर 
हाल ही निवास -: इन्दिरा कॉलोनी बाड़मेर 
सम्पर्क सुत्र -: 9660525254
email add. Dilipsingh.charan@gmail.com
शिक्षा -: एम • ए ,(राजस्थानी ,राजनीति विज्ञान ) बी•एड, एल. एल. बी ।







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