सवैया (मतगयंद) नारी


नारी (महिला)
                        ||दोहा||
नारी बिन घर नर नहीं, नारी सृष्टि सृजन्न।
पवन अगन जल नभ नहीं, नार बिन भू निर्जन्न।।


मतगयंद (मालती ) सवैया

हूकम सीस तणो मनती अपने पिव को कबहू न सतावै ।

पीहर छोड़'र आवत हैं पति को घर आप सजाकर गावै ।

घूंघट  लज्ज तणो रखती ससुराल सजा कढती मुसकावै ।

खूदबखूद खुदा धर नार रुपं धरती पर जीव रिझावै ।

••••••••••••••••••••••••••••दीप चारण


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