पृथ्वीराजसी सोलंकी
जबरी योगा जाणता, युगां सुँ योगीराज ।
धिन धिन तु बांसड़ा धणी,प्रणपाल पृथीराज ।।
ठाये हिवड़े ठोड़ , ठावी म्हारे ठाकरां ।
कहि दीप कलम तोड़ ,पीथल रीत न पांतरे ।।
नमक खिलावत जग्ग नाॅ ,खाय सेठ अरु दीन ।
कर्जा चुकाय कोय नह , नमक कढे नमकीन ।।
सदा रीत रखि सांतरी , सत ज्ञानी सोलंक ।
इण गुण कारण आपने, अम्बे रखियो अंक ।।
••••••••••••••••••••••••••••••••दीप चारण
हे ! धन्य बांसडा राज्य के स्वामी प्रण का पालन करने वाला पृथ्वीराजसी आप कैई जन्मों से अनोखी योग विद्या को जान रहे हो आप योगीराजसी हो । 1
हे बांसडा के ठाकर आप मेरे लिये अपने ह्रदय अच्छी जगह सदा बनाये रखना दीप चारण कलम यह तोड़ते हुवै कहता हैं हे राजन !पृथ्वीराजसी अपनी रीत रिवाज परमपरां का सदैव वहन करना रजपूती रीत कभी मत भूलना । 2
आप तो सब को नमक खिलने वाले उस सागर या झील की तरह जो सबको नमक खिलाता हैं पर उस नमक को सभी अमीर और ग़रीब हर वर्ग के लोग खाते है पर नमक का कर्ज कोई भी नहीँ चुकाता हैं । सागर सभी के जिव्हा को स्वाद देता हैं पर सभी उसे खारा ही कहते हैं पर वो सभी को नमक देता हैं जीवन मे स्वाद बढ़ता हैं ।3
आपके पूर्वजों ने सदा अच्छी परमपराऐ निभाई है हे सत ग्यानी सौलंकी पृथराजसी आप तो सत ग्यानी है इसी गुण को देखकर मां अम्बे ने सदा आपको अपनी गोद में बिठा रखा हैं ।4
•••••••••••••••••••••••••दीप चारण
कुंवर साहेब पृथ्वीराज सिंह जी बांसड़ा स्टेट को जन्म दिवस की हार्दिक शुभकामनाएं।
वंदे वासी वांसड़ा , योग पथिक पृथुराज।
अनकही नित्य आपरी,आई सुणे अवाज।।
योग सुधारे योगिनी, जन्म-सदा जगदीश।
विपद हरे हर शिव सदा, अम्बा दे आशीष।।
साधक सच्चे योग के , दिल के वड दातार।
आपे दीप शुभकामना, जन्मदिन की अपार।।
°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°दीप चारण
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