बोर (गहना ) / बोर (फल)

भगवत सिंह जी बाला राठौङ कृत दोहे रो पड़ुत्तर

बिसरा न कनक बोरियो , कदरो मांगूं कंत ।

बोरड़ी झड़े  बोरिया , खावै सबरी संत ।।

•••••••••••• भगवत सिंह बाला राठौङ

पड़ुत्तर

घाते हिये हेत घणो, सोनो खरो सुहाग ।

कंत म्हारो खरो कनक, गैहणा खोट जाग ।।

चाबो दंतां बोरिया , बोर चोरसी चोर ।

मिसरी जैङा मीठङा , खाजै आठों पोर ।।

स्वर्ण खोटोय साज़ ना , दब्ब चब बोर दंत ।

जाणे सब जग चारणां , सक्ति सूर अरु संत ।।

••••••••••••••••••••••••दीप चारण

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