बाल कृष्ण लीला


कृपा कानुड़ा कीजिए ,
तुक्का लागै तीर ।
गैडी बांउ गिन्डक के , 
धूजै पड़ रणधीर ।।

••••••••दीप चारण

स्यामो आसी साय ,
नितरो धरे रूप नवो ।
पात्सा पड़सी पाय , 
दैख्तो जाजै दीपड़ा ।।

•••••••दीप चारण









। किरीट सवैया ।

मोहन साध सुरं बजती मुरली मधुरं मन कानन होयन ।

राग सुनी मधरी मधरी चल गोपि निहारि लगी मन मोहन ।

माधव लोचन लाल लगे मद मादक मोहक नाचत गोपन ।

मोर बनी रमती रमिया कर थामत आपु बनी मधुसूदन ।

•••••••••••••••••••••••••••••••••••••••••दीप चारण

अरसात सवैया 

बातइ मानव मानत गोकुल ग्वाल नटीवर माधव राज की ।

साम सदा इक बात कहे मत मुरत पूजत वासव राज की ।

भोग न देवत देवन को अब कोप करी मघवा घन राज की ।

गाज पङी बरखा बरसी गिरि धार लियो जय हो जदुराज की  ।

••••••••••••••••••••••••••••दीप चारण

सुपंखरो

चढी ऐराऊत देवराज  घोर मेघ घेर आयो  ।

तपे ब्रज कै तणो   तड़ीत  छोड़  तोप ।।

हर ओर  हाहाकार हरेक  देखे  हरि को  ।

डबो डब  ब्रज  डूबे  करी  सक्र  कोप  ।।  [1]

तेग वेग  मेघ  गाज गुड़ायकै घणा गड़ा  ।

खला खल खाला बाजै थर्र कंपे हाङ  ।

 आय हरि हांसतो पहाड़  उपाड़ आंगली   ।

    ताड़ - ताड़ कियो दम्भ भंज फंद फाड़ ।। [ 2]

••••••••••••••••••••••दीप चारण

झमाल

मुख माखण चुपड़योङो  , जसुदा पकड़त कान ।

म्हैं नाहि   माखण  खायो ,  मावड़ी  बात  मान ।।

 मावड़ी   बात    मान   ,  खायगो   भाउङो ।

काट   भाउ   रा   कान ,  फांसयो   कानड़ो ।।

रमावै     नाहि     साथ ,  चिड़ावै    हैं   मनां ।

मैया   मेरी       मात ,  मोल    लाया      तनां ।।

सदा  भिड़ावै  सखा नै , राजा   बणतो  आप ।

चुतर कैवै  कर  चौरी  , अजरो  दाउ  अनाफ ।।

अजरो    दाउ   अनाफ , मटका       फुड़ावतो ।

करतो   माखण   साफ ,  न  मनां   चखावतो ।।

चौपड़   ठायो    चौर ,    माखण      चुराणियो ।

भाउ      तेरो     भौर ,  मोल   मम     आणियो ।।



मनहरण घनाक्षरी

घुंघराले काले काले , लाम तेरे नंद लाल ,

लोचन विशाल लाल , चाल मराल सम ।

सीस मोर पंख सोहे,धनंख सी तोरी भोहें ,

मैया उभी रूप जोहे , चांद को चकोर सम ।

सांवरी सलौनी छवि , मुख पर तेज रवि ,

छंद तोरा गावै कवि , नदी के निनांद सम ।

मधुर बंशी बजावै , बन में धेनू चरावै ,

छवि कवि दीप गावै , पण शब्द ग्यान कम।        [1]

जन्मियो आप जेल में , रमियो सखा भेल में ,

नाथयो नाग खेल में , रचे लीला नित हैं ।

सब देवन में न्यारौ , मैया नंद को दुलारौ , 

ब्रज गोपियां को प्यारौ,राधा की तुं प्रीत हैं ।

बंसी मधुर बजावै , नाता प्रीत रा निभावै ,

राग सब ने रिझावै , गावै मीठा गीत हैं ।

 गुण जै थारा गावै , शरण जो थारी आवै ,

पल माय मुक्ति पावैं , साचो थुं ही मीत हैं ।   [2]

जाणे तुंही जुद्ध द्वंद , हारे तोसे जरासंध ,

पुष्प की तुंही सुगंध , काव्य तुं प्रबंध हैं ।

मैं बालक बुद्धि मंद , माधा काट मेरो  फंद, 

सब्द ग्यान दे जै चंद , रचे दीप छंद हैं ।। 

•••••••••••••••••••••••••••••दीप चारण


जन हरण घनाक्षरी

नटवर नटखट पनघट पर धर पग मम कलइ नह पकड़ किसना ।


पनघट पर घट भरन चलत पणिहरि कहत घट मत पटक किसना ।

घट पटक पटक कर मम कर नह पकड़  जल न हर लज रख किसना ।


मम भँमर नयन अटक जकड़इ बिच नटखट नटवर कमल नयना । 

•••••••••••••••••••••••••दीप चारण


••••••••••••••••••••••••••••••••••दीप  चारण

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