सिंढायचों का इतिहास (दंत कथा आधारित )
एकबार राजा नाहङराव कहीं से अकेले ही आ रहे थे अरावली की पहाङियो से होते हुवै । गर्मी का मौसम भरी दोपहरी का समय तेज तावङो तपती घरा लाय रा थपिङा बावै । राजा जी नै रास्ते मे जोरदार प्यास लग गयी । दुर दुर तक पानी नहीं । गलो होठ सागेङा सुकग्या अंतस तकातक सुक गयो । आथङता 2 राजा जी डुंगरा री ढाल सुं नीचे आया उठै गाय रो खूर सुं खाडो पङियोङो जिणमे 2 - 4 चलू बरसात रो पाणी ठेरियोङो हो प्यासा मरतां थका नी आव देखयो नी ताव चलू भरनै खाताक सुङका लिया अर पानी पिवतां ई राजा रै हाथां मे कोढ (कुस्ट रोग ) जकी झङगी । अर सरीर मे एकाएक ताजगी आयगी । राजा देखयो आ कोई चमतकारी तपो भूमि है ।अठै सरोवर खुदाणो चहिजै ।
राजा बी जगां सरोवर खुदाई सुरु करावै पण ज्यां दिन रा खोदे पण रात वहैतां ई पाछो पैली हतो जङो व्है जावै । अर्थात बुरीज जावै काफी प्रयास करनै के बावजुद भी तालाब खोद नही पाते फिर राज विद्वानो गुणी व्यक्ति यों से।पुछवाता है ऐसा क्यो हो रहा हैं । तब बात सामनै आती हैं कि पैहले यहां बहुत बङा तालाब था इसके किनारै एक तपस्वी साधु का यहां आश्रमं था जिसकी बहुत सी गांये थी । अरावली की पहाङियो में सेर रहते थे वे तालाब में पानी पिने आते थे और कई बार ऋषिं कीगायो को खा जाते थे इस कारण ऋषि इस तालाब को श्राप देकर यहां से चला जाता है और श्राप देता हैं कि इस तालाब में पानी नहीं ठेहरेगा । इस कारण ऐसा होता हैं पर राजा नाहङराव नै तय कर लिया था कि तालाब तो खुदाना ही हैं ।तब बङे बङे पंडित विद्वानों से पता किया की इस श्राप का तोङ क्या है तब किसी ब्राह्मण देवता ने बताया जिसके सैकङो सेर मारे हुवै हो उसी के हाथो से तलाब खुदाई की नींव रखे तभी कार्य सम्भव हो पायेगा । तब यह समस्या आई की सैकङो सेर कौन मारे ऐसा आदमी कहा मिलेगा तब पता करते करते नरसिंह भाचलिये का नाम सामने आया जो गुजरात के गीर कि तलहटी में{ जाखेङा गांव (दयाल दास री ख्यात)और [भाचलिया चारण बिजाणंद सिंढायच सैणी चारणी री वात मे गुजरात रौ भाछली गांव भी बतावै ]}रहता था | नरसिंह भाचलिया के पिता को सेर नै मार दिया था जिस कारण उसे सेरो पर गुस्सा आया और प्रण कर लिया जब तक कोई सेर नही मारु तब तक अन्न मुंडे में नी लुं इस तरह वह रोज सेर मारकर ही भोजन करता था उसके सैकङो सेर मारै हुवै थे ।नाहङराव नै उनसे आग्रह कर उनहे अजमेर पुस्कर ले आये और पुस्कर तालाब की खुदाई आरम्भ की नरसिंह भाचलिये के पुस्करणा ब्राह्मणो ने मिल कर तालब खोदा । नरसिंह भाचलिये को नाहङराव ने मोगङा गांव दिया ।सैकङो सेर मारनै के कारण नरसिंह भाचलियै से सिंहढायक सिंह +ढायक (ढानै वाला , मारने वाला , पाङनै वाला ) सिंहढायक से अपभ्रंस में सिंढायच हो गया । मोगङा से ही अनेक राजाओ से इनाम स्वरुप गांव प्राप्त कर फैलते गये बसते गये सिंढायच जोधपुर , बीकानेर , मेवाङ , नरसिंहगढ (मध्य प्रदेस ) दरबारो में कवि पद पर थे ।
सिंढ़ायच
💥💥💥💥💥💥💥
गीत-सपंखरो
💥💥💥💥💥💥💥
बुधसिह जी सिढ़ायच मौगड़ा खुर्द कृत नरसिह गढ़ महाराज हणवन्तसिह जी रो
🔺🔺🔺🔺🔺🔺🔺
वाचै वाखॉण प्रथमी भूप सवाई खूमॉण वीर ;
जॉण भैद कायबॉ सुदत्तौ भौज जैम !
मॉणरा द्रुजौध गिरब्बॉण पती जैम गुणॉ ;
औढ़ी चाळ धारियौ दीवॉण जूँझ एम !!१!!
खैळणॉ अनमी खत्री वाटरा अखैळा खैल ;
गजौं भार ठैळणा सँग्राम गाढ़ैराव !
रैहॉण का उबैळणॉ प्रभती वसाउ राजा ;
अनौखा विरद्दौं लीधॉ क्रौधँगी अभाव !!२!!
वरीसण रैणवॉ भिड़ जौं गजौं माठी वार ;
काटण कैवियौं -दळौं सँग्रहै कैवॉण !
जाळणॉ सूमड़ा छाती दॉनरा करन्न ज्यूँहीं ;
तैज-अँशी झौका झौका ऊंची तॉण !!३!!
सुजाव सौभाग वसू शीश वातॉ रखै साजा ;
रूपगॉ खरीछै जाझा अभीड़ा दातार !
हणुतॉ निवाजॉ पातॉ आजॉ अचळैश-हरा ;
साहियॉ ऊधरा आछॉ सिरै दानं सार!!४!!
***संकलन्***
रिड़मल दान दैथा,साता(रम'सा')
🔻🔻🔻🔻🔻🔻
भांचलिया नरसिंह भढ़ पुष्कर कियो पड़ाव।
विरद सिंहढायच बख्सियो राजा नाहर राव।।
भांचलियो नरसीह भड पुष्कर कियो पडाव।
विरद सिंहठायक बगसीयो राजा नाहड़राव।।
मानसरोवर मोगड़ो जल सु भरीयो जाण।
गिरब छाला बांको दिये रिझे सिहठायक राण।।
भांचलियाः शाखा के अन्तर्गत ही सिढायंच शाखा मानी गई है। इसमें भादा, बासंग, उज्जवल शाखाएं भी आती है। नरहरिदास नामक भाचलिया (भादा) चारण द्वारा अधिक सिंह मारने पर “सिंहढायच” की पदवी दी गई। जिससे इनके वंशज सिंढायच कहलाते है। कहते हैं पुष्कर के निकट शेरों द्वारा गायें अधिक मारी जाती थी। इस पर नरसिंहदासजी भांचलिया ने शेरों को मारने का प्रण लिया तथा 100 शेरों को मारने पर ज मंडोवर महाराज नाहड़ राव द्वारा सिंहढायच की उपाधि दी गई। इन्हें प्रथम गांव मोगड़ा प्राप्त हुआ। तब वहां से मदोरा (नरसिंहगढ़, म.प्र.) जागीरी का गांव मिला। कालांन्तर में मण्डा, भारोड़ी (उज्जवल), ओसारा, मादड़ी इत्यादि गांव प्राप्त हुए।
………………………दीप चारण
राजा बी जगां सरोवर खुदाई सुरु करावै पण ज्यां दिन रा खोदे पण रात वहैतां ई पाछो पैली हतो जङो व्है जावै । अर्थात बुरीज जावै काफी प्रयास करनै के बावजुद भी तालाब खोद नही पाते फिर राज विद्वानो गुणी व्यक्ति यों से।पुछवाता है ऐसा क्यो हो रहा हैं । तब बात सामनै आती हैं कि पैहले यहां बहुत बङा तालाब था इसके किनारै एक तपस्वी साधु का यहां आश्रमं था जिसकी बहुत सी गांये थी । अरावली की पहाङियो में सेर रहते थे वे तालाब में पानी पिने आते थे और कई बार ऋषिं कीगायो को खा जाते थे इस कारण ऋषि इस तालाब को श्राप देकर यहां से चला जाता है और श्राप देता हैं कि इस तालाब में पानी नहीं ठेहरेगा । इस कारण ऐसा होता हैं पर राजा नाहङराव नै तय कर लिया था कि तालाब तो खुदाना ही हैं ।तब बङे बङे पंडित विद्वानों से पता किया की इस श्राप का तोङ क्या है तब किसी ब्राह्मण देवता ने बताया जिसके सैकङो सेर मारे हुवै हो उसी के हाथो से तलाब खुदाई की नींव रखे तभी कार्य सम्भव हो पायेगा । तब यह समस्या आई की सैकङो सेर कौन मारे ऐसा आदमी कहा मिलेगा तब पता करते करते नरसिंह भाचलिये का नाम सामने आया जो गुजरात के गीर कि तलहटी में{ जाखेङा गांव (दयाल दास री ख्यात)और [भाचलिया चारण बिजाणंद सिंढायच सैणी चारणी री वात मे गुजरात रौ भाछली गांव भी बतावै ]}रहता था | नरसिंह भाचलिया के पिता को सेर नै मार दिया था जिस कारण उसे सेरो पर गुस्सा आया और प्रण कर लिया जब तक कोई सेर नही मारु तब तक अन्न मुंडे में नी लुं इस तरह वह रोज सेर मारकर ही भोजन करता था उसके सैकङो सेर मारै हुवै थे ।नाहङराव नै उनसे आग्रह कर उनहे अजमेर पुस्कर ले आये और पुस्कर तालाब की खुदाई आरम्भ की नरसिंह भाचलिये के पुस्करणा ब्राह्मणो ने मिल कर तालब खोदा । नरसिंह भाचलिये को नाहङराव ने मोगङा गांव दिया ।सैकङो सेर मारनै के कारण नरसिंह भाचलियै से सिंहढायक सिंह +ढायक (ढानै वाला , मारने वाला , पाङनै वाला ) सिंहढायक से अपभ्रंस में सिंढायच हो गया । मोगङा से ही अनेक राजाओ से इनाम स्वरुप गांव प्राप्त कर फैलते गये बसते गये सिंढायच जोधपुर , बीकानेर , मेवाङ , नरसिंहगढ (मध्य प्रदेस ) दरबारो में कवि पद पर थे ।
सिंढ़ायच
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गीत-सपंखरो
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बुधसिह जी सिढ़ायच मौगड़ा खुर्द कृत नरसिह गढ़ महाराज हणवन्तसिह जी रो
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वाचै वाखॉण प्रथमी भूप सवाई खूमॉण वीर ;
जॉण भैद कायबॉ सुदत्तौ भौज जैम !
मॉणरा द्रुजौध गिरब्बॉण पती जैम गुणॉ ;
औढ़ी चाळ धारियौ दीवॉण जूँझ एम !!१!!
खैळणॉ अनमी खत्री वाटरा अखैळा खैल ;
गजौं भार ठैळणा सँग्राम गाढ़ैराव !
रैहॉण का उबैळणॉ प्रभती वसाउ राजा ;
अनौखा विरद्दौं लीधॉ क्रौधँगी अभाव !!२!!
वरीसण रैणवॉ भिड़ जौं गजौं माठी वार ;
काटण कैवियौं -दळौं सँग्रहै कैवॉण !
जाळणॉ सूमड़ा छाती दॉनरा करन्न ज्यूँहीं ;
तैज-अँशी झौका झौका ऊंची तॉण !!३!!
सुजाव सौभाग वसू शीश वातॉ रखै साजा ;
रूपगॉ खरीछै जाझा अभीड़ा दातार !
हणुतॉ निवाजॉ पातॉ आजॉ अचळैश-हरा ;
साहियॉ ऊधरा आछॉ सिरै दानं सार!!४!!
***संकलन्***
रिड़मल दान दैथा,साता(रम'सा')
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भांचलिया नरसिंह भढ़ पुष्कर कियो पड़ाव।
विरद सिंहढायच बख्सियो राजा नाहर राव।।
भांचलियो नरसीह भड पुष्कर कियो पडाव।
विरद सिंहठायक बगसीयो राजा नाहड़राव।।
मानसरोवर मोगड़ो जल सु भरीयो जाण।
गिरब छाला बांको दिये रिझे सिहठायक राण।।
भांचलियाः शाखा के अन्तर्गत ही सिढायंच शाखा मानी गई है। इसमें भादा, बासंग, उज्जवल शाखाएं भी आती है। नरहरिदास नामक भाचलिया (भादा) चारण द्वारा अधिक सिंह मारने पर “सिंहढायच” की पदवी दी गई। जिससे इनके वंशज सिंढायच कहलाते है। कहते हैं पुष्कर के निकट शेरों द्वारा गायें अधिक मारी जाती थी। इस पर नरसिंहदासजी भांचलिया ने शेरों को मारने का प्रण लिया तथा 100 शेरों को मारने पर ज मंडोवर महाराज नाहड़ राव द्वारा सिंहढायच की उपाधि दी गई। इन्हें प्रथम गांव मोगड़ा प्राप्त हुआ। तब वहां से मदोरा (नरसिंहगढ़, म.प्र.) जागीरी का गांव मिला। कालांन्तर में मण्डा, भारोड़ी (उज्जवल), ओसारा, मादड़ी इत्यादि गांव प्राप्त हुए।
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