पत्नी चालीसा बिरह वर्णन

                      [ पत्नी चालीसा]

                         [बिरह वर्णन]

                         ।।दोहा।।

पल पल आवै याद पिय , आजा जल्दी यार ।
दीप को सुझी दिल्लगी , आय दिजौ दीदार ।।

सिणगार बिना सादगी , सिधा सादा रंग रूप ।
बिन्दिया लाल भाल पर, अंजन नैन अनूप ।।



               ।।चौपाई।।



 नमो नमो जय पत्नी अनुपम ।
 जांउ देख डर तोरो रूपम ।। [1]
जयो जयो बच्चों की मैया ।
गावै जय जय तोरे सैंया ।। [2]
ललाट ओपे बिन्दी लालम ।
कर में थामें झाड़ु विशालम ।। [3]
पीहर जब जाय ह्रदय प्यारी ।
मन तड़पन होय बहुत भारी ।। [4]
मोरा जिया पिया माहि बसा ।
फूं - फूं मुवा बिरह नाग डसा ।। [5]
बिरह घटा आ डाले डेरा ।
भया अंधकार चहूंमेरा ।। [6]
बिरहा के बाण बने बैरी ।
घोर घटा बन बिरहा घेरी ।। [7]
पड़त बिरह की कैसी छांया ।
सूख गई रे मोरी काया ।। [8]
जलहल जले दीप दिन रातां ।
 तन-मन होय याद में ताता ।। [9]
बिन तोरे अब किसे चिढ़ाऊं ।
 किसका बेलन झाड़ू खांऊं ।। [10]
देख लुँ  कोय इक नज़र बाला ।
 धरती रूप तुहीं विकराला ।। [11]
किजौ न कोप शांत हो देवी ।
फिर से खता न होगी ऐवी ।। [12]
जबही मारे मोहे बेलन ।
चकला ढाल मार को झेलन ।। [13]
स्नेह भरा तुम्ही हो सागर ।
तोरे सन्मुख पीर उजागर ।। [14]
किसे देख जुल्फें संवारूं ।
बिन तोरे अब किसे निहारूं ।। [15]
डील दुखै जब कौण दबावै ।
 बाम तोय बिन कौण लगावै ।। [16]
तुम्ही मोरा राग तराना ।
तुम बिन तन्हा ह्रदय हमारा ।। [17]
तुझ बिन ना जागा ना सोया ।
 रहुँ  रात दिवश तुझमें खोया ।। [18]
जबही इत उत फाड़ूं बाका ।
कौण करत बिन तोरे हाका ।। [19]
खटमल बन अरि खावै खाटां ।
 पाहा फौरे रातां काटां ।। [20]
बिन तोरे अब बरसे आंखां ।
 उड़ आऊं जे रब दे पांखां ।। [21]
खिल्या उस दिन मोरा चेरा ।
तोरे सँग जब लिन्हां फेरा ।। [22]
तन मन रंगा तुम अरधंगा ।
 मन कर चंगा पावन गंगा ।। [23]
जीवन संगी तुम सत रंगी ।
तोरी मोरी जोड़ी चंगी ।। [24]
मोरा तुम चांद हम चकोरा ।
कुमोदनी तुम हम भी भौंरा ।। [25]
जकड़े पकड़े मोहे फांसा ।
तोरी गिरफ्त मोरी सांसा ।। [26]
तुम मुझमें हम तुझमें पीया ।
तुम बाती हम रज का दीया ।। [27]
मैं हाला तुंम मोरा प्याला ।
मैं महसर तुम भी मधुशाला ।। [28]
तुम मुझमें हम तोरे अन्दर ।
तुँ  मदारी  हम तोरो बंदर ।। [29]
भीतर मिलकर फुदकां कूदा ।
मैं सीप तुँ  हैं स्वाती बूंदा ।। [30]
मोरी तुम्ही इश्क़ इबादत ।
कायनात तुम तुमइ क़यामत ।। [31]
बिन तोरे अब कछु न सुहाता ।
तोरे बिन अब कुछ ना भाता ।। [32]
पिहर सुँ सजनी जल्द पधारो ।
बिरह भंज आय पिय हमारो ।। [33]
तुझ बिन अंधकार घनघोरा ।
पल पल कटे तोय बिन दौरा ।। [34]
मेघ उमड़ बिरहा का गाजा ।
नाहि लगे जिय पिय अब आजा ।। [35]
पिया घरां आय पिहर छोङे ।
 अरज करे दिपसा कर जोड़े ।। [36]
आओ तुम तो मिटे उदासी ।
 तुमसे ही मम घर प्रकासी ।। [37]
जबहि पिया आ जाये पासू ।
मिटत बिरह हो जाय उजासू ।। [38]
जो यह करते पाठ हमेशा ।
समीप रहे न कबहु कलेसा  ।। [39]
पढ़े सदा जो यह चालीसा ।
मनें देव सब अरु पत्नीसा ।। [40]


              ।। दोहा ।।


तुम प्रतिमा हो कृष्ण की , मैं मीरा बन गांउ ।
रंग चढाकै प्रीत का , मैं तुझमें गुम जांउ ।।


•••••••••••••••••••••••••दीप चारण कृतं




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