इन्द्र ने फाग गन्ध्रवां गावौ ।

बेरुत बरसी बादली , लेकर आंधी ओल।

कटि करसे री तोड़कर ,मार फ़सल रो मोल।।

मार फ़सल रो मोल , रंगहिन करगी होली ।

कांटे घाटो तोल , राग फाग कृसे ढोली ।।

कहे दीप कविरज्ज , इन्द्र अब चढ ऐरावत ।

भंज हूर री खज्ज , बरसा बादली बेरुत ।। [1]

बेरुत बरसा बादली , ओला अणुता ढोल ।

रुत तें सायत पांतरी , भाल रम्भा रा बोल ।।

भाल रम्भा रा बोल , वरुण ने भेज्यो बारे ।

छूकर कूच कपोल , मद्य पीय मस्ति मारे ।।

चाट हूर रो भूत ,  इन्द्र चढ़कर ऐरावत ।

दे चाँदी रा जूत , बरसा बादली बेरुत ।।  [2]

अरियां दल जिम आवतो, करे इन्द्र ओ कोप ।

नृतकियां संग नाचतो,  तड़ित  छोड़कर तोप ।।

तड़ित छोड़कर तोप , लेय करसां रो लावौ ।

साची बातां सौंप , गन्ध्रव गालां  गावौ ।।

तजे सक्र दरबार , धरा पर आवौ परियां ।

खुलो दीप रो द्वार , परियां हराओ अरियां ।। [3]

••••••••••••••••••••••••••दीप चारण

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