होली (कृष्णा और पणिहारी )
गौउ उछेरे गोपियां, गौ टोले गोपाल।
हे हो हे हो हांकता, बूहा ब्रज रा बाल।।
वृंदावन कानो वहिर , धेनॉ टोले धोल ।
भेलो भातो भायला , खवाईस मन खोल ।।
डीगी हाथों डांग, बगल भात री पोटली।
लोचन घूघट लांघ, ग्वाल निहारे गोपियां।।
गौ टोले गोपाल , गीत मुरलिये गावतो ।
भूली गोपी भाल , काम निवेड़ा कालिया ।।
खेतां चराय खोपियां , खेलतो रास खेल ।
ग्वाले राधा गोपियां , मोकली प्रीत मेल ।।
रसिया आई रमणिया, रास री लेय आश।
छनन छड़ा छनकारती,राधा माधे ! खास।।
मन मोहन बजत मुरली , पुगी गोपियाँ पास ।
बलम बिन बनी बावली , रमे स्याम सँग रास ।।
रंग ले माखण मट्टका, पूगी भर पिचकार।
मुख ऊपर रगड़े मखन,छोड़ रंग बौछार।।
गोपी सुध बुध बिसर गी , पाय स्यामलो पास ।
डग डग बजाय डंडिया , रमे स्याम सँग रास ।।
डणण डणक्का डंडिया , छणण छड़ा छणकार ।
राधे माधे सँग रमी , घट पटक घूँघट घटा'र ।।
ले गो मन हर संग , नैण बाण मारि नट बण ।
रति रलि गोपी रंग, मदन सदन अँग माधवा।।
श्याम भिगे राधा भिगे, भिगे गोकुल ग्वाल।
रलल रल श्याम रंगमें, गोपियां भयि गुलाल।।
°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°दीप चारण
फागण श्यामो गावै कुंडलियो
फाग गावतो फूटरा, चैल बजाता चंग।
होली खेलण हालियो, श्यामो राधा संग।।
श्यामो राधा संग, रंगबिरंग रंगीज्यो।
रंग गोपियां अंग, भंग पी भेलो भींज्यो।।
रंग में रला राग, अधर मधुरम मुलकावै।
पिचरंग पैर पाग, फूटरा फागण गावै।।
°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°दीप चारण
फूलां रंग गुलाल बिन, कपोल कर्या लाल।
मखण चोर रा मखमली, गोपे पींचे गाल।।
गोपे पींचे गाल, ग्वाला लुकाई चाबी।
लाय रंगभर थाल, गुलाल रगड़ें गुलाबी।।
गोपे गावै गाल , ढबती कोनी धमालां।
नाचे हैं नंदलाल, गावतो उड़ा गुलालां।।
°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°दीप चारण
बनकर उड़ू गुलाल, संग तोरे गली गली ।
तन मन कर दे लाल , रसिया रँगके रूह को ।।
•••••••••••••••••••••••••••••••••दीप चारण
कटी लचक लचक कूच उचक उचक
धर घट पनिहारी पनघट जात हैं ।
वन में आज बनवारी भरके पिचकारी
काहे राहे रोककै मंद मंद मुस्कात हैं
कान्हा कंचुकी मोरी तंग लगा ना मोहे रंग
भिगा ना मोहे संग अंग उघरी जात हैं ।
दयानिधे करो दया हरो नाहि मोरी हया
यो जग बड़ो निर्दयी बनावत बात हैं ।
••••••••••••••••••••••••दीप चारण
मनहरण घनाक्षरी (कवित्त दीप चारण कृत)
रंग अबीर गुलाल,मळ मळ गाल गाल,
रमे होली नंदलाल,रंग गोपी ग्वाल को।
चटक चटक चाल,भंग रंग चढ्यो भाल,
भीजोय करि बेहाल,खींच पट्ट साल को।
पीला हरा नीला लाल, अंग अंग गाल भाल,
उर खग फांसे जाल, शिकारी गौपाल को।।
सुध-बूध भूल-भाल, देख रस्यो मतवाल,
पहराय पुष्पमाल, बाला ब्रजबाल को।
°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°दीप चारण
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