विरहणी बजावै वीणा


वीणा बजाय विरहणी, पिउ पिउ रही पुकार।
प्रीय  बसे  परदेशड़े,   सूझे    नह   सिणगार।।

°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°दीप चारण


विरहणी बजावै वीणा

वन में वीण बजावती , मन में भरके मौज ।

पल पल पिया पुकारती , राग छेड़ती रोज़ ।।

राग छेड़ती रोज , गीत मधुर आ गावती  ।

अति वाणी में औज , सुने टिलोड़ी नाचती ।।

सुन राग सुवो सुन्न , जल माहि जलज जागतो ।

छेड़ी कैसी धुन्न , वीणा बजाकर वन में ।। [1]


पिया तोहे पुकारती ,तणण झँकार तार ।

वीणा ले कर विरहणी , बिलखै बारं बार ।।

बिलखै बारं बार , नार आ नाह तोय बिन ।

हर पल बरस हज़ार, कंतजी दिन काढां किम ।।

चित को न तनिक चैन, चितचौर कारणे चिंतित ।

निहारते पथ नैन , पावन तो दरसन पिया ।। [2]


कड़ड़ कड़ड़ कड़कावता, तडित तेज तलवार ।

अति घिर घिर घन आवता , सुनकर राग मलार ।।

सुनकर राग मलार , मोरिया कहुकै मधरा  ।

पिउ पिउ करे पुकार , बिरहि पपिया प्रीतम बिन।।

हिवड़े उठती हूक , बिलखती बिन मैं बलमा ।

कोकिल तूं मत कूक , खींवै खैण कड़ड़ कड़ड़  ।।

••••••••••••••••••••••••••••दीप चारण



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