चारण इन रणखेत
चारण In रण
तुरंग नाच मंडे ,नगाङे करे डङण्क डङाण्क ।
राग सिंधू गुंजता था, जब धङण्क धङाण्क ।।
वीर भरते थे जब हुंकार, सामने शत्रु देखकर ।
हर हर महादेव दे नारा, अरि मारा भाला फेंककर ।।
सीस पङते ,धङाधङ धङ लङते ,देख देखकर ये मंजर ।
मान मौत बलम ,छोङ कलम ,कूद पङते थे, ले कर खजंर ।।
कवि दिप चारण
अरक मुखां पर आकरो , जिह्वा माथे ज्वाळ।
गुण निपजै ऐ चारणां, लहु मा लाय उबाळ।।
लहु मा लाय उबाल , चूहो गयंद गुड़ावै ।
लोचन खीरै लाल , जल मा ज्वाला जगावै।।
आखर री कर खोज , तत्काल देवतो तरक।
अति वाणी मा औज , मुखां पर आकरो अरक ।।
•••••••••••••••••••••••••••••••दीप चारण
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