मांग मा हिगंलाज से ।


दरबार मिलकर गळे , कहे आऔ कविराज ।
बोलुं धीरे से मैं , फिर भी बुलंद लगे आवाज ।।
कण्ठ से जो निकळे कविता बने ,सह स्वत: नगाङे बाज।
घोङे सङपङ भाग्य के दोङे, मांगा और कि माँ हिगंलाज ।।

कवि दिप चारण

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