शोर्य ?



मुश्किल बङा है  रणवीरो को,
जगाना आसान है अब भूतो को ।
वरण को आई अपसराऐ उदास ,
उन पर हस्ते देखा मैनें यमदूतो को ।।
दांत गिना करते थे ,ये  नर नाहर के,
आजकल पाला करते हैं कुत्तो को ।
 चरित्र होता था तेज तङित शा ,
अब चमकाते पोसाक और जूतो को ।।

कवि दिप चारण

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