जुद्ध अर जौहर बणाव ।
जुद्ध अर जौहर
कवि दीप चारण कृतं
बज रही रणभेरी वीरों, द्वार आई सेना प्रचण्ड ।
कमर कस लो वीरों,शत्रु सेना है बङी उदण्ड ।।
आओ सुरां बण -ठण ।
कहता रण कण-कण ।
आतुर रहो मरण मारण ।
डिगंल गान गाते चारण ।
कटार डाल कमर में , बांध कमरबंद केसरी ।
वाघा पाघ केसरी ,हो केसरिया झपटा केहरी ।।
वीर प्रत्यंचा तेज ताण ।
धनंख ते छोङ बाण।
जुद्ध मण्ड दे घमसाण ।
शवो से भर दे समसाण ।
चहुंओर गुंजे भचीड़ भचीड़ भड़ा भड़।
ढाल खड़ग जोर खङक्कै खड़ा खड़।
गड़ गड़ांक गड़ गड़ांक घुरै नगाड़े ।
खचा खच खचा खच सुरां बैरी पाड़े।
मुख मुख पर चमकै तेज भाण ।
दो दिसै कायर को दस पाण ।
झुण्ड से झुजते झुमते झुण्ड ।
धड़ धड़ धड़ से गुड़ते मुंड ।
धड़ धड़ धड़ से गुड़ाता मुण्ड ।
नर नाहर पाङे झुण्ड के झुण्ड ।
धमा धम धमा धम मचाय धमचक्क ।
निहारे रणवीर नूं रण भूमि भरचक्क ।
खड़ड़ खड़ड़ खड़ खड़ंग खड़क्कै ।
हींहींहीं हींहींहीं हींहींहीं हय भड़क्कै ।
धड़ा धड़ धड़ लड़े मस्तक गुड़क्कै ।
बम बम भोले बोले लड़े उड़ उड़क्कै ।
करि चीर फाड़ ,अंग ताड़ ताड़ ।
मारौ मारौ अरि, करि कै दहाड़ ।
भरी भारी हुंकार ,बिखरा पहाड़ ।
कायरौ का कांपा , हाड़ - हाड़ ।
रण छोङ भजे , कायर बैरी कपूत ।
मरे कायरो को ,लेने आये जमदूत ।
हस हस लङते ,मारे मरे रजपूत ।
क्रिडा ये देख रहे ,देव गण अर भूत ।
अतिव कोमल कुंवर ,छत्राणी का लाल।
देख बैरी छतिया पर ,बन गया महाकाल ।
चहुंओर उड़ा उड़ा कर, रक्त का गुलाल ।
बाल होली रण में रमा यूं ,भू भयी लाल लाल ।
खून बटोरती फिरै भोगणी ,खप्पर खप्पर भर भर कर ।
गटक लहू गटक्कै जोगणी ,आक्क डकारै धप धप कर ।
फुटी इक आँख ,कटा इक कान ,इक टांग , इक पाण ।
सुर वीर डटा रहा ,बैरी हटा रहा ,कृपाण ताण ।
हुआ शंख नाद , लाल लाली छायी, छीप रहा भाण ।
बिरदावणा कर बंद ,मरसिया पढ कर ,चारण करे बखाण ।
होने को सति , निसरि महलों से नार ।
सज धज कर , कर सोलह सिणगार।
वीरांगनाऐ चली ,करने अंतिम अग्नि स्नान ।
लाजवंतियां रख लाज ,कुल कियो महान ।
धधक धधक धधक रहा हुतासण कुण्ड ।
आहुतियां देने चल पङा , वीरांगनाओ का झुण्ड ।
रामा सामा करके , राजपुत वीरांगनाऐ सारी ।
ठुमक ठुमक ठुमक चढी , महल की अटारी ।
कतार बना कर हो गई खङी , हजारो के झुण्ड में ।
एक एक करके कुद गई , सभी अग्नि देव के कुण्ड में ।
रणवीरों ने पाई , रण में वीरगति ।
वरण को आई ,अपसराऐ सुंदरअति ।
हाथ वीरों का पकड़ कर ।
ले चली चढ स्वर्ण रथ पर ।
रथ उङ चला, उंचा आकाश ।
ज्यों आगे बढे ,स्वर्ग आया पास ।
बुझते ही जौहर की ज्वालाऐं ।
आ गई पीछे वीरांगना बालाऐं ।
सौतन देख सामने पीव संग ।
झपट पङी ज्युं उछले तुरंग ।
अरि कुलटा ! क्हा ले जा रही मेरा भरतार ।
हाथ पगरखा ले भाजी अपसराऐं मुंह उतार ।
सति करे जौहर ,रण रमा रणबांका।
केसरिया जौहर मिलकर बना साका ।
ग्यान का अभाव ,फिर भी अतीव अतीव करके चाव ।
कवि दीप चारण रच्यो केसरिया जौहर जुद्ध बणाव ।
इति श्री दीप चारण कृतं जुद्ध अर जौहर वर्णनं सम्पुर्णम् ।
Comments
Post a Comment