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Showing posts from March, 2016

सुहाता नहीं जाम

सुहाता मेरे हाथों में तुझको ये भरा हुआ जाम नहीं । आठ पोर तेरा  रूठनें के सिवा कोई और काम नहीं । इबादतें इश्क की ये कैसी इम्तिहान तुम लेती हो । सुन सनम बेदर्दी महखानों का मैं महकश बदनाम नहीं । ••••••••••••••••••••••••••••••••दीप चारण

मोगल मो- गल सांभलो

मोगल मो-गल सांभलो, नित प्रत लेऊँ नाम । मोटी  तुहीज मावड़ी , धरु हिये बीच धाम ।। ••••••••••••••••••••••••••दीप चारण

मन

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कबु डाडे कबु नाचतो , फोरे पल पल टेर । मन जाणे ज्यों मोरियो ,पँख फैलातो फेर ।। •••••••••••••••••••••••••••••दीप चारण मन्न घणोई मौजिलो, खोजिलोह अणनामि। जिण जन जन ने जकड़ियो, डोरी हाथां थामि।। °°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°दीप चारण मन्न रा मता है मौकला, भ्रांति मेट श्री कान्त। पीड़ा ना है प्रीत री, मन फिर क्यूं अशान्त।। °°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°दीप चारण मौजा मन री मौकली,गमी कमातां नोट। दोनूं खानी दौड़ता,ठावा ठावा ठोठ ।। °°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°दीप चारण

कवि काग बापू अर भगत बापू री कविता

🔪🔪🔪🔪🔪🔪 "सीहॉ सापुरसॉ तणी; जो नह खाली जाय ! कॉन अजा रौ काटियौ; कमध कटारी वाय!!१!! 🐯🐯🐯🐯🐯🐯 सिंह तथा सूरवीर का वार कभी खाली नही जाता ! दिल्ली के भरे दरबार में जब अमरसिंह राठौड़ की कटारी चली तो अपने रास्ते में आने वाले अर्जून सिंह गौड़(विश्वासघाती एंव गद्दार था!)का कान भी उड़ाती चली गई और अपने मकसद तक पहुँची!! 💥💥💥💥💥💥💥 हिंद की राजपुतानीया *** यह रचना हिंदी, गुजराती, चारणी भाषा मे है, जिसमे हिंदुस्तान की राजराणी व क्षत्रियाणी का चित्र है, उसका वर्तन, रहेणीकहेणी, राजकाज मे भाग, बाल-उछेर और शुद्धता का आदर्श है. उसका स्वमान, उसकी देशदाझ, रण मे पुत्र की मृत्यु की खबर सुन वो गीत गाती है, पुत्र प्रेम के आवेश मे उसे आंसु नही आते, लेकिन जब पुत्र रण से भागकर आता है तो उसे अपना जिवन कडवा जहर लगने लगता है, उसका आतिथ्य, गलत राह पर चडे पति के प्रति तिरस्कार, रण मे जा रहा पति स्त्रीमोह मे पीछे हटे तो शीष काटकर पति के गले मे खुद गांठ बांध देती है. फिर किसके मोह मे राजपुत वापिस आये? उसके धावण से गीता झरती है, उसके हालरडे मे रामायण गुंझती है, भय जैसा शब्द उसके शब्द कोश मे ...

उरवी चौहान

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मित्र सों स्नेह मोकळो , चपला सी चहुआण । उरवी  रूपरि  उर्वशी , तपे  जद  बणे  भाण ।। ••••••••••••••••••••••••••दीप चारण

होली (कृष्णा और पणिहारी )

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गौउ उछेरे गोपियां, गौ टोले गोपाल। हे हो हे हो हांकता, बूहा ब्रज रा बाल।। वृंदावन कानो वहिर , धेनॉ टोले धोल । भेलो भातो भायला , खवाईस मन खोल ।। डीगी हाथों डांग, बगल भात री पोटली। लोचन घूघट लांघ, ग्वाल निहारे गोपियां।। गौ टोले गोपाल , गीत मुरलिये गावतो । भूली गोपी भाल , काम निवेड़ा कालिया ।। खेतां चराय खोपियां , खेलतो रास खेल । ग्वाले राधा गोपियां , मोकली प्रीत मेल ।। रसिया आई रमणिया, रास री लेय आश। छनन छड़ा छनकारती,राधा माधे ! खास।। मन मोहन बजत मुरली , पुगी गोपियाँ पास । बलम बिन बनी बावली , रमे स्याम सँग रास ।। रंग ले माखण मट्टका, पूगी भर पिचकार। मुख ऊपर रगड़े मखन,छोड़ रंग बौछार।। गोपी सुध बुध बिसर गी , पाय स्यामलो पास । डग डग बजाय डंडिया , रमे स्याम सँग रास ।। डणण डणक्का डंडिया , छणण छड़ा छणकार । राधे माधे सँग रमी , घट पटक घूँघट घटा'र ।। ले गो मन हर संग , नैण बाण मारि नट बण । रति रलि गोपी रंग, मदन सदन अँग माधवा।। श्याम भिगे राधा भिगे, भिगे गोकुल ग्वाल। रलल रल श्याम रंगमें, गोपियां भयि गुलाल।। °°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°दीप चारण फागण श्यामो गावै क...

इन्द्र ने फाग गन्ध्रवां गावौ ।

बेरुत बरसी बादली , लेकर आंधी ओल। कटि करसे री तोड़कर ,मार फ़सल रो मोल।। मार फ़सल रो मोल , रंगहिन करगी होली । कांटे घाटो तोल , राग फाग कृसे ढोली ।। कहे दीप कविरज्ज , इन्द्र अब चढ ऐरावत । भंज हूर री खज्ज , बरसा बादली बेरुत ।। [1] बेरुत बरसा बादली , ओला अणुता ढोल । रुत तें सायत पांतरी , भाल रम्भा रा बोल ।। भाल रम्भा रा बोल , वरुण ने भेज्यो बारे । छूकर कूच कपोल , मद्य पीय मस्ति मारे ।। चाट हूर रो भूत ,  इन्द्र चढ़कर ऐरावत । दे चाँदी रा जूत , बरसा बादली बेरुत ।।  [2] अरियां दल जिम आवतो, करे इन्द्र ओ कोप । नृतकियां संग नाचतो,  तड़ित  छोड़कर तोप ।। तड़ित छोड़कर तोप , लेय करसां रो लावौ । साची बातां सौंप , गन्ध्रव गालां  गावौ ।। तजे सक्र दरबार , धरा पर आवौ परियां । खुलो दीप रो द्वार , परियां हराओ अरियां ।। [3] ••••••••••••••••••••••••••दीप चारण

दो दोहा इंतज़ार रा (कारा अरुण सुर्यवंशी की फ़ोटो )

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गजरा लगा'र गैसुओं , सज नित नव सिणगार । खिड़की हिय की खोलके , करत आ इंतजार ।। ••••••••••••••••••••••••••••••••••दीप चारण मृगतृष्णा ज्यों माहिया , जोवत पाछल फोर । पलकें प्यासी पीवजी , भयी अडिकतां भोर ।। ••••••••••••••••••••••••••••दीप चारण

विरहणी बजावै वीणा

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वीणा बजाय विरहणी, पिउ पिउ रही पुकार। प्रीय  बसे  परदेशड़े,   सूझे    नह   सिणगार।। °°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°दीप चारण विरहणी बजावै वीणा वन में वीण बजावती , मन में भरके मौज । पल पल पिया पुकारती , राग छेड़ती रोज़ ।। राग छेड़ती रोज , गीत मधुर आ गावती  । अति वाणी में औज , सुने टिलोड़ी नाचती ।। सुन राग सुवो सुन्न , जल माहि जलज जागतो । छेड़ी कैसी धुन्न , वीणा बजाकर वन में ।। [1] पिया तोहे पुकारती ,तणण झँकार तार । वीणा ले कर विरहणी , बिलखै बारं बार ।। बिलखै बारं बार , नार आ नाह तोय बिन । हर पल बरस हज़ार, कंतजी दिन काढां किम ।। चित को न तनिक चैन, चितचौर कारणे चिंतित । निहारते पथ नैन , पावन तो दरसन पिया ।। [2] कड़ड़ कड़ड़ कड़कावता, तडित तेज तलवार । अति घिर घिर घन आवता , सुनकर राग मलार ।। सुनकर राग मलार , मोरिया कहुकै मधरा  । पिउ पिउ करे पुकार , बिरहि पपिया प्रीतम बिन।। हिवड़े उठती हूक , बिलखती बिन मैं बलमा । कोकिल तूं मत कूक , खींवै खैण कड़ड़ कड़ड़  ।। ••••••••••••••••••••••••••••दीप चारण ...