फुटकर दुहा सौरठा


छंद मस्त छलकावतो ,
तड़- बड़ तबले ताल ।
गढवी मजै मा गावतो ,
जबरा झटकै बाल ।।

•••••••••दीप चारण

बिन अमल जमे रँग नही , नींद बिन नहीं ख्वाब ।

कविता बिन कविराज के ,सुन्न दरबार साब ।।

••••••••••••••••••••••••••••••••••दीप चारण





धर कर धनु तलवार , रण रज रज रलिजावतो ।
उर कविजन रो त्यार , गीत रण रमत गावतो ।।

••••••••••••••••••••••••••••••••दीप चारण

जे रण चारण संग , 
न जमदूत आवत निकट ।
वरते हूरां दंग , 
धड़ मुण्ड छड किकर लड़े।।

••••••••••••••दीप चारण

भावार्थ 
यदी रण भूमि में चारण साथ में होते वीरों  तो यमदूत व यमराज भी निकट नहीँ आते है कहीं कट नहीं जायें   इस डर से ।( अर्थात ये चारण लोग अपनी वाणी से इतना शोर्य जाग्रत करते हैं । ) तब अपसराओं को भेजा जाता हैं ताकि वीरों का ये गुण है कि वे स्त्रियों पर हाथ नहीं उठाते जब सीस धड पर नहीं होता हैं आंखे भी नहीँ होती है धड के फिर भी हूरों पर वार नही किया यह देखकर वरण करने आयी परियां दंग है कि सीस धड से अलग हो गया ये वीर कैसे लड़ते है ?ओर किन करों (हाथों )से लड़ते हैं ? किन नेत्रों से देखते हैं?

दीपचारण




भौं भौं कुतिया भुंसता  , (पण) बदले  नी पद  ताल ।

मदमस्त अति मस्ति भरी , चलतो गयंद चाल ।।

••••••••••••••••••••••••••दीप चारण

तुर्वा करतो तोडियो , उछल'र बैठो ऊँठ ।

चाय धेगड़ी चाढकै , बाले बैगो ठूंठ ।।

••••••••••••••••••••••दीप चारण


🙏🙏🌺🌺🙏🙏

कवि कथन अन्यौक्ती अलंकार में..??

"दाद री खाज"

आवे नही आखर ;

भाखर मोटा भोंगतो !

चावै चैल चाकर ;

 दाद'री खाज 'दीपसा'!!
***कृत***
"कवि विश्वास रंजन"
[०८६९६५११९२०]
🙏🏿😂😇😇😂🙏
🙏🙏🌺🌺🙏🙏

" सुकौमल लय अर स्वर ;
गावै मुरधर गीतड़ा !
भणंकै पुहप भंवर ;
कौकिळ कँठ ओ किणरौ !!१!!
***कृत***
"कवि विश्वास रंजन"
[०८६९६५११९२०]
💎💎💎💎💎💎

पडूतर

लिख्या ब्रह्मा लेख ,  लेय फेरा घर लायो ।

हियें री बाट हेक , जगावती दीप जिणरौ ।। 

••••••••••••••••••••••••••••दीप चारण

पीथल आयगो पाछो, रूप धर दिव्य राज ।

छंदोबद्ध वेद छठो , सिरजावण रे  काज ।।

••••••••••••••••••••••••📝दीप चारण

नेह नगरी नरेस , विजयसिं सुँ मिले (जाम) विजयसी ।

दे कर पुष्प विशेष , करत याद (राज) कवि पिंगलसी ।।

••••••••••••••••••••••••दीप चारण

पाकै फसलां ज़ोर , थो थो थो नाखुं  थुथको ।

बेचो भर-भर बोर , उंचां चढतां  भावड़े ।।

•••••••••••••••••••••••••दीप चारण

🌹🌹🏃😇🙏🏽🙏🏽
हद है सपने हूर;
किस नही किशना किजिये!
चक भर चकनाचूर ;
गइ हिवड़ो सुळगावती!!

भाल कवि नज़र हेक , पेज फेसबुक पलटतां ।

द्वार रोकयो देख , बातां बीती बांचते ।।

••••••••••••••••••••दीप चारण

जपतो जा कर जोड़ , मीठा दोहा मीठिया ।

द्वारे आसी दौड़ , सामलो सब्द सांभले ।।

••••••••••••••••••••••••••••दीप चारण

सीता चरित

जनक की कनक जानकी , शील तप त्याग संग ।

रोम रोम से रामकी , देखि सिय राम दंग ।।

•••••••••••••••••••••दीप चारण

बरी सलमान 

ख़रीदे सब खड़े खड़े 
खिलाड़ी बड़ो ख़ान ।
बक बक बकील कर बरी , 
बाईज्जत सलमान ।। 1

कॉर्ट कचहरी सब कुड़ा, 
नोटां सुँ बिके न्याव ।
पीर पुकारां कुण सुणे,
भारी जज रा भाव ।। 2

••••••••दीप चारण

रतनसिंह चांपावत के सब्द कलस रचना पर 
सब्द कलस है सांतरो , 
रतन भरियो रे रंग ।
रंग  नचे  मीरा  रमी ,
रली सांवरै संग ।।

•••••••••दीप चारण


पीर पराई मेटिये ,
 पुण्य पाऐ अपार ।
तेरी कोई मेटसी , 
करसी बेड़ा पार ।।

••••••••दीप चारण

छोटो जाण न छोड़ये , गवाड़ औरू गांव ।
सहरां ठाढी ठोड़ ना , खेजड़ देवे छांव ।।

•••••••••••••••••••••••दीप चारण

भावार्थ 

अपने गांव को छोटा समझकर न भूले गांव की गवाङी व लोगों को न भूलें । जिस सहरां की चकाचक सोन्दर्य बजार मॉल को देखकर ख़ुश होते है । हक़ीक़त तो यह की शांति से दो पल विश्राम कर सके ऐसी शांत सीतल जगह नहीं मिलती अरे यहां तो पड़ोसी पड़ोसी को नहीँ जानता पर गांव का तो हर कण कण हमे जानता हैं हमे थका देखकर खेजङी जैसा पेड़ भी अपना स्नेह बरसा कर हम पर अपनी सीतल छांव हम पर करता हैं जैसे वो हमे जानता हैं ।


भल उगतो मुख भाण,
अरियां दल भय आकरो।
पलकती तेग पाण, 
पाड़े दलां प्रतापसी।।

•••••••••••दीप चारण

दोहा

खटकतो जिण नैण पतो ,
मान ने उण रो मोद ।
आँसू दे उण आँखियां 
सिधाय जग सुँ सिसोद ।।

सोरठा

मान ने उण रो मोद ,
खटकतो जिण नैण पतो ।
सिधाय जग सुँ सिसोद ,
आँसू दे उण आँखियां  ।।

••••••••••••दीप चारण

भावार्थ 

जिसकी आँखों को महाराणा प्रताप खटकता था । उस अकबरिये के बल पर मान सिंह  मोद घमंड  करता था । पर जब महाराणा प्रताप इस जग से सिधाये थे तब बैरी अकबरिये की आँखो को भी आँसू देकर सिधाये ।

•••••••••••••दीप चारण

सब्द कोस ठा सांतरो , करियो जबरो काम ।
डगला दिखाय डिँगलरा , रँगही सीता राम ।।

•••••••••••••••••••••••••••••••••••दीप चारण


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