सवैया ललना




                                दुर्मिल सवैया

महकै गजरा पिछु आ लगि भौंर दला सरमाय रही  ललना ।

लचकाय कटी चलती सम सांप बही मधरी मधरी पवना ।

सरसां सरसां लहरे जुलफां  लट लाम  लगी  चुभनै नयना ।

झपकाय झपा झप नैन हटा लट लाम कहे पगले  हटना ।


°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°दीप चारण


। किरीट सवैया ।

मोहन साध सुरं बजती मुरली मधुरं मन कानन होयन ।

राग सुनी मधरी मधरी चल गोपि निहारि लगी मन मोहन ।

माधव लोचन लाल लगे मद मादक मोहक नाचत गोपन ।

मोर बनी रमती रमिया कर थामत आपु बनी मधुसूदन ।

•••••••••••••••••••••••••••••••••••••••••दीप चारण







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