बरसालो अर अनावङो
अड़ड़ करत आय आंधी ,घररर घन गरजीय ।
पला पल बीज पलक्कै , घोर मेघ बरसीय ।।
कड़ड़ कड़ खैण कड़क्कै , पड़ड़ड़ पड़े पनाल ।
पीय परदेस रंजियो , सेजां धण बेहाल ।।
असाढ अंबर गरज्जै ,घम घम मेघ घुरंत।
चमक तेग वेग चपला , धण ऐकली डरंत ।।
काळ भयी रैण काली , घरां ऐकल डरंत।
बाट जोउ आय बार्ने , बेगौ आये कंत ।।
घणी होय तड़ित हिड़की , खीण खीण मुइ खाय ।
परदेस जा बसे पिया , जल झड़ तन झुलसाय ।।
चपला देखे चापली , सजनी रजनी माय ।
प्राणहीन तन लाधसी ,नाह जे तु नह आय ।।
••••••••••••••••••••••••••दीप चारण
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