विरहणी
भोंह धनंख भुजंग सिख , तके प्रत्यंचा ताण ।
मार मस्त मारत पिया , बावरे नयन बाण ।।
मगरा बोले मोरिया , पिउ पिउ मचाय सोर ।
नैणा गमाय नींदङी , बिरह जगाये जोर ।।
सोल सिणगार सजण री, आइने जगी आस ।
भाल समो भरतार जी , हरछिण हजार मास ।।
सजनी सेज सजावती , पुरण कद होय आस ।
बात दीप जलहल पुछत,पीय कद सोय पास ।।
प्रीत पीर पनंग डसियू , गरल गालियू अंग ।
भुजंग भगा भरतार जी ,कर विस झाङ सुचंग ।।
म्हारै बागां मोरिया , ना कर पिउ पिउ सोर ।
ज़ोर बिरह ज्वाला जगे , कद मिल सी चितचोर ।।
दिन उगे अरुं आथमे , तजु नी आवण आस ।
पलकां पंथ बिछाय पिय , अडिकुं बारै मास ।।
खामंद बिन सेज सुनी , कुण सुलझावै केस ।
अहनाण आंगलियां रा , पिय दे गयो विदेस ।।
खामंद बिन सेज सुनी , कुण सुलझावै केस ।
अहनाण आंगलियां रा , लखाय लाम हमेस ।।
वीणा बजाय बिरहणी , गीत बिरह रा गाय ।
नाह नरायण आय सुण , आतुर अधर बुलाय ।।
वीणा बजाय बिरहणी , तणणनं करत तार ।
घन स्याम मन भिंजोय दे , मीरा गाय मलार ।।
मीरा मन बन मोर बन, झुमती नचती जोर ।
आय घुमंत घिरंत अति ,स्याम घटा घनघोर ।।
वीणा बजाय बिरहणी , गीत बिरह रा गाय ।
मीरा कंठ राग मधुर , सुणे सांवरा आय ।।
बरसालो अर अनावङो
आंधी आय अड़ड़ अड़ड़ ,घररर घन गरजीय ।
पलकै चपला पल पला , घोर मेघ बरसीय ।।
कड़कै खैण कड़ड़ कड़ड़ , पड़ड़ड़ पड़े पनाल ।
पीय परदेस रंजियो , सेजां धण बेहाल ।।
आसाढ अंबर गरजियो ,घम घम मेघ घुरंत।
तेग वेग बीज चमकै , धण ऐकली डरंत ।।
काळ भइ रैण कालकी , घरां ऐकलि डरंत।
बाट जोउ आ बारनै , बेगौ आये कंत ।।
तड़ित भयी हिड़की घणी , खीण खीण मुइ खाय ।
परदेस जा बसे पिया , जल झर तन झुलसाय ।।
चपला देखे चापली , सजनी रजनी माय ।
प्राणहीन तन लाधसी ,नाह जे तु नह आय ।।
••••••••••••••••••••••••••दीप चारण
हंसिणी - सजणी
सजणी हंसिणी एक गत , झुलसाय बिरह झाल ।
बिलखै दउ बिन बालमा , अडिके सरवर पाल ।।
सजणी हंसिणी हेक गत, बिन पिया बिन चक्रांग ।
बिलखै दउ बिन बालमा , तकीय पाल तङांग ।।
सूखा पात सूखी लता , सूखा सब तरुवर ।
भरतार जी सावण बणे, लबा लब भर सरवर ।।
मृग तृस्णा ले म्हूं मरी , पिय तज दे परदेस ।
कर दे हियो हरो-भरो , माही आ मरुदेस ।।
दे आ पाती हंसिणी , मना थारो मराल ।
सावण माहि उड़ा सजण , लाये सरवर पाल ।।
……………………………………दीप चारण
सावण
सावण आय सुहामणो , खामंद तू मत खीज ।
सांध सुं लाडु सांतरा , मति भूले ना तीज ।।
हिवड़ो ललचै हिण्डवा , मांडू खेजङ डाल ।
हिण्डा सागै हिण्डसां , रमसा सरवर पाल ।।
हरिया भरिया खेत है , पिउ पिउ बोले मोर ।
लहरे बाजरियां लरर , पाकै फसलां जोर ।।
मूंग टिंडसी मोठड़ी , तोरू ला सूं तोड़ ।
साग बणा सूं सांतरो , पिया परदेस छोड़ ।।
हरिया हरिया खेत में , खेजड़ले री छांव ।
रमत रमसां नवी नवी , पिया पधारो गांव ।।
•••••••••••••••••••••••• दीप चारण
कुण्डलियो छंद
बिरहणी
भाल बिंदी सीस बोरियो , सोहे धण सिणगार ।
कंचन कगंन हथ्थ मा , कण्ठा दुलङी हार ।।
कण्ठा दुलङी हार , कर्ण झन झुमरी झनकै ।
कचंन वरणी देह , पगां छनन छङा छनकै ।।
पक्या रसिला अंब , गल रहत गाल गुलाबी ।
बलम झङ रहे बाग , कंत आ घर सम भालो ।।
•••••••••••••••••••••••••दीप चारण
बिरहणी अर चौपट
अबकै हार सुँ बालमा , होय हर पुरण चाह ।
रमसां रमत बिन रुगड़ी , नह कपट करुं नाह ।।
°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°दीप चारण
छाय बिरह री कैसी छांया । झुर झुर झुरगी मोरी काया ।। 1
पिय तुम जाय बसे परदेशा । अडिकूं अँखिय बिछाय हमेशा ।।2
पलक बंद कर तोहे पावां । नैन खुलत ही तोय गमावां ।।3
भितर तुमइ तो बाहर आवो । छुपत काहे मोहे दरश दिखावो ।।4
•••••••••••••••••••••••••••••••••••••••••••••••••दीप चारण
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