कविता पुष्प की नियति( दीप चारण)
कविता
पुष्प की नियति
ऐ पुष्प तुं खिलता हैं ,
अक्सर कीचङ में ।
कोई नहीं आता हैं ,
तेरे पास महक लेने ।
एक रोज कोई भक्त जन ,
ले जायेगा तुझे यहां से तोङ ।
बङे किसी मन्दिर में ,
हरि चरण की शरण में ।
सच्चा सम्मान तुं वहा पायेगा ,
धूप अगरबत्ती की महक में
अपनी महक मिलाकर ।
लेकर आने वाला यहां,
अपने मन की मुराद ।
तेरे सामने कर जोङ नैण मुंद ,
करके कोई उनसे फरियाद ।
तेरी कुछ पंखुङियां पंडित से ,
निज मस्तक लगाय ले जायेगा ।
अपने घर के देव स्थान पर ,
सम्भाल कर अच्छे से रख लेगा ।
या कोई बनमाली तुझे तोङ
सुई से एक धागे में पिरोकर
रंगबिरंगी माला बनायेगा ।
वर वधू के द्वारा
एक दूजे को
पहनाई जाऐगी ।
या ये माला किसी
चापलुस द्वारा
भ्रस्ट नेता के गले मे
डाली जायेगी ।
या किसी देशभक्त की
चिता में जलेगी ।
या गजरा बन किसी के
गैसुओं में सजेगी ।
दो आतुर मिलन के
नवविवाहित वर वधु
कि सेज की सोभा बन
दो देहो के एकाकार का
साक्षी बन कर हे ! पुष्प
तुं मसला कुचला जायेगा ।
अनेक परभक्षियों की
तुं सुधा मिटाता हैं ।
टुटकर भी तु सदैव
महक ही लुटाता हैं ।
स्वयं मिटता पर परमार्थ में
खुश्बू छोङ जाता हैं ।
अक्सर कोई आवारा पशु
खिलने से पूर्व चर जाता हैं ।
मरकंद से शहद
मीठी औषधि बन
छालों और उर के
छालों का इलाज करता हैं ।
गुलकंद बन चुने सुपारी संग
पान में स्वाद बढाता हैं ।
मर मिट कर भी ऐ पुष्प तु
किसी न किसी रूप में
किसी न किसी के भीतर
जिंदा रह जाता हैं ।
क्हां क्हां ले जाता तेरा भाग्य
विधाता नियति लिख मुस्कराता हैं ।
तु भी हर क्षण हर घङी
हर दम खिलखिलाता हैं ।
जीवन मरण कोई तुमसे सीखे
हे ! पुष्प हे ! पुष्प हे ! पुष्प
जय पुष्प जय पुष्प जय पुष्प
………………………दीप चारण
पुष्प की नियति
ऐ पुष्प तुं खिलता हैं ,
अक्सर कीचङ में ।
कोई नहीं आता हैं ,
तेरे पास महक लेने ।
एक रोज कोई भक्त जन ,
ले जायेगा तुझे यहां से तोङ ।
बङे किसी मन्दिर में ,
हरि चरण की शरण में ।
सच्चा सम्मान तुं वहा पायेगा ,
धूप अगरबत्ती की महक में
अपनी महक मिलाकर ।
लेकर आने वाला यहां,
अपने मन की मुराद ।
तेरे सामने कर जोङ नैण मुंद ,
करके कोई उनसे फरियाद ।
तेरी कुछ पंखुङियां पंडित से ,
निज मस्तक लगाय ले जायेगा ।
अपने घर के देव स्थान पर ,
सम्भाल कर अच्छे से रख लेगा ।
या कोई बनमाली तुझे तोङ
सुई से एक धागे में पिरोकर
रंगबिरंगी माला बनायेगा ।
वर वधू के द्वारा
एक दूजे को
पहनाई जाऐगी ।
या ये माला किसी
चापलुस द्वारा
भ्रस्ट नेता के गले मे
डाली जायेगी ।
या किसी देशभक्त की
चिता में जलेगी ।
या गजरा बन किसी के
गैसुओं में सजेगी ।
दो आतुर मिलन के
नवविवाहित वर वधु
कि सेज की सोभा बन
दो देहो के एकाकार का
साक्षी बन कर हे ! पुष्प
तुं मसला कुचला जायेगा ।
अनेक परभक्षियों की
तुं सुधा मिटाता हैं ।
टुटकर भी तु सदैव
महक ही लुटाता हैं ।
स्वयं मिटता पर परमार्थ में
खुश्बू छोङ जाता हैं ।
अक्सर कोई आवारा पशु
खिलने से पूर्व चर जाता हैं ।
मरकंद से शहद
मीठी औषधि बन
छालों और उर के
छालों का इलाज करता हैं ।
गुलकंद बन चुने सुपारी संग
पान में स्वाद बढाता हैं ।
मर मिट कर भी ऐ पुष्प तु
किसी न किसी रूप में
किसी न किसी के भीतर
जिंदा रह जाता हैं ।
क्हां क्हां ले जाता तेरा भाग्य
विधाता नियति लिख मुस्कराता हैं ।
तु भी हर क्षण हर घङी
हर दम खिलखिलाता हैं ।
जीवन मरण कोई तुमसे सीखे
हे ! पुष्प हे ! पुष्प हे ! पुष्प
जय पुष्प जय पुष्प जय पुष्प
………………………दीप चारण
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