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Showing posts from February, 2015

जुद्ध अर जौहर बणाव ।

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जुद्ध अर जौहर                          कवि दीप चारण कृतं बज रही रणभेरी वीरों, द्वार आई सेना प्रचण्ड । कमर कस लो वीरों,शत्रु सेना है बङी उदण्ड ।। आओ सुरां बण -ठण  । कहता रण कण-कण । आतुर रहो मरण मारण । डिगंल गान गाते चारण । कटार डाल कमर में , बांध कमरबंद केसरी । वाघा पाघ  केसरी ,हो केसरिया झपटा केहरी ।। वीर प्रत्यंचा तेज ताण । धनंख  ते  छोङ  बाण। जुद्ध मण्ड दे घमसाण । शवो से भर दे समसाण । चहुंओर गुंजे भचीड़ भचीड़ भड़ा भड़। ढाल खड़ग जोर  खङक्कै खड़ा खड़। गड़ गड़ांक गड़ गड़ांक घुरै नगाड़े । खचा खच खचा खच सुरां बैरी पाड़े। मुख मुख पर चमकै तेज भाण । दो  दिसै कायर को दस  पाण । झुण्ड से झुजते झुमते झुण्ड । धड़ धड़ धड़ से गुड़ते मुंड ।  धड़ धड़ धड़ से गुड़ाता मुण्ड । नर नाहर पाङे झुण्ड के झुण्ड । धमा धम धमा धम मचाय धमचक्क । निहारे रणवीर नूं रण भूमि भरचक्क । खड़ड़ खड़ड़ खड़ खड़ंग खड़क्कै ।  हींहींहीं हींहींहीं...

मांग मा हिगंलाज से ।

दरबार मिलकर गळे , कहे आऔ कविराज । बोलुं धीरे से मैं , फिर भी बुलंद लगे आवाज ।। कण्ठ से जो निकळे कविता बने ,सह स्वत: नगाङे बाज। घोङे सङपङ भाग्य के दोङे, मांगा और कि माँ हिगंलाज ।। कवि दिप चारण

भोला बाबा शीव ताडंव कवि दिप कृतं

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  भाग भगङ दा , मुझको प्यारा लगदा,    मेरा भोला भोला बाबा । अल्लाह अल्लाह बकदा,करता सजदा ,जैसे मुल्ले को प्यारा काबा ।। डिम्मं डिम्मांक , डिम्मं डिम्मांक , डिम्मं डिम्मांक, डमका डमरु का । छम्मं छम्मांक, छम्मं छम्मांक ,छम्मं छम्मांक छम्मंकारा घुंघरू का।। फम्मं फम्मांक , फम्मं फम्मांक, फम्मं फम्मांक , फुंक्कारा  नाग दा । घम्मं घम्मांक  ,घम्मं घम्मांक घम्मं घम्मांक भोला बाबा नाच दा ।। गळे मुण्ड माल , चंद्र साझै भाल । ह्रदय प्रीत पाल ,रच उम्या ख्याल ।। मृदंग ताल पर, धीमी धीमी चाल । घननं घननं , गहरी घुमर  घाल ।। त्रिलोचन मे त्रिकाल , भृकुटी पर गुलाल। नाग कुंडली जटा जाल , हे! रूद्राल विघ्न टाल ।। ना दे पाये ,मुझको कोई राङ । तम का दे ,परदा परदा फाङ । दु:ख को मेरे दामन से झाङ । किस्मत का खोल दे किवाङ । दु:ख की घाटी घमोङ ,मुझको नही मिलती ठौङ । तम को तोङ , मेरे गम गम को मौङ  मरोङ । मुँह मत मत  मौङ, भौला बाबा ध्यान छौङ। जग में मच्यौङी,हौङ कवि( दिप) ध्यावै नैण मुंद कर जौङ ।। कवि दिप चारण

अरज

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सिव भक्त साद दे। गणपति ग्यान दे । सरसत सार दे । मां लछमी माल दे । सोना चांदी भरभर थाल दे । भोला भभूतभाल दे । मां शेरोवाली शेरवाली चाल दे । भैरूजी मित्र कोई भूप दे । मां राजल मुझको रूप दे । ज्वालिका मां जगमगाती ज्योति दे । माल्हण मां मटका भर भर मोति दे। विस्णु आस दे , विश्वास दे । विधाता खुशियां बारह मास दे। हे ! कृस्ण कोई अनोखी कला दे । हे ! राम मुझे सज्जन  कोई भला दे। आवङ मां आसीस अखण्ड दे। हे ! चण्डी तेज  चमक प्रचण्ड दे । हे! भगवति हमें भक्ति में भाव दे । नौलाख लोवङयाली लाख पसाव दे । आय माय , चालराय, सीस नमाय , लागु पाय , चरण दे। मां तुं दातार  , बीसहथ पसार , सुणे करुण पुकार  ,  सरण दे । दु-ख री घाटी घमोङ, म्नैं नी मिली ठोङ, तम तोङ ,गमने मरोङ, खङा हु कर  जोङ , तरणी मेरी सिधे मारग मोङ दे। भीङ बधी ठोङ ठोङ,  जग मे मच्योङी होङ , थाकगो में दौङ दौङ , किस्मत रो  बंद द्वार तोङ दे। कर जोङ अरज करू , करणी तरणी मेरी तार दे । अब और कुछ ना कर सके तो हे!अम्बे, अवगुणी असुर समझ कर मार दे । कवि दिप लगावेआ...

इतिहास

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सिमट गयो इतिहास सगलो ,अबे  पोथियां रै पांना में । नुवो अध्याय रचण रौ ,नी रह्यो अबे   साहस बन्ना में ।। मायङ भोम रा चारण डुबोङा आपु आप रै सुपना में । वा मिठास नी रह्यी अबै ,रजवट रै खेतां  रै गन्ना में ।। कवि दिप चारण

शोर्य ?

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मुश्किल बङा है  रणवीरो को, जगाना आसान है अब भूतो को । वरण को आई अपसराऐ उदास , उन पर हस्ते देखा मैनें यमदूतो को ।। दांत गिना करते थे ,ये  नर नाहर के, आजकल पाला करते हैं कुत्तो को ।  चरित्र होता था तेज तङित शा , अब चमकाते पोसाक और जूतो को ।। कवि दिप चारण

चारण इन रणखेत

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चारण In रण तुरंग नाच मंडे ,नगाङे करे डङण्क डङाण्क । राग सिंधू गुंजता था, जब धङण्क धङाण्क ।। वीर भरते थे जब हुंकार, सामने शत्रु देखकर । हर हर महादेव दे नारा,  अरि मारा भाला फेंककर ।। सीस पङते ,धङाधङ धङ लङते ,देख देखकर  ये मंजर । मान मौत बलम ,छोङ कलम ,कूद पङते थे, ले कर खजंर ।। कवि दिप चारण अरक मुखां पर आकरो , जिह्वा माथे ज्वाळ। गुण निपजै ऐ चारणां, लहु मा लाय उबाळ।। लहु मा लाय उबाल , चूहो गयंद गुड़ावै । लोचन खीरै लाल , जल मा ज्वाला  जगावै।। आखर री कर खोज , तत्काल देवतो तरक। अति वाणी मा औज , मुखां पर आकरो अरक ।। •••••••••••••••••••••••••••••••दीप चारण

कविता और तूफान

कुछ इस तरह शब्दों के जाल, बुनता चला गया मैं। कविता ओढ जीवन के सारे गमो को,ढकता चला गया मैं ।। रोज आते तूफान जीवन में  ,निलोफर से भी बङे बङे  | बस एक इसी चादर से हर बार बचता चला गया में ।। कवि दिप चारण
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एक डाकू को मार कर जागा वो । जेल तिहाङ तोङकर भागा वो । आतंकियो के अड्डे से ,अस्तिया पुरखो की ले आया । आज शेर सिर्फ वही ,(दिपने ) देखा सिहणी का जाया । मै साथ अपने प्राणो के सिवा, कुछ ना लाया हुं । इस जंगल मे ऐसे ,नर नाहर को खोजने आया हुं । हर एक बाग से ,एक एक फूल चुन चुनकर लाउंगा ।  स्वय सूई ,धागा एकता, पिरोकर एक माळा बनाउंगा । यह माळा राश्ट्र हित मे ,धर्म रक्सा मे ,काम आयेगी । बुचङखानो को करके बंद, गौ माता को पहनाई जायेगी । बिखरे क्यो हो टुटी हुई मोतियो कि माळा  की तरह हे ! रजपूत । नंनदिनी गौमाता पुकार रही हे! दिलीप के कपूत  बन जाओ सपूत । बस लिखना भर मेरा काम रहा । गौ माता का जो  संग्रामरहा । मुझे क्हा कुछ पाना है। केवल आपको जगाना है। मुझे क्हा कुछ पाना है। रोज चाय पीता हुं थैली के दूध की सही , बस मात्र यही ऋण चुकाना है। कर रहे है घात। दुश्मन अनेक अग्यात । क्हा सो रही रजपूती जात । रो रो कर पूकार रही है गौ मात । महलो मे गोरो को चाय कॉफी इसके दूध कि पीलाते हो । बोरिया भर भर रूपया कमाते हो ,जब ये पुकार कर रही तो क्हा छूप जाते हो। मुझे ...