सिणगार

।। कुण्डलियो ।।

भाल बिंदि सीस बोरियो , सोहे धण सिणगार ।

कंचन कंगन हाथ मा , कण्ठा  दुलङी   हार ।।

कण्ठा  दुलङी   हार , कर्ण  झन झुमरी झनकै ।

कंचन   वरणी  देह , पगां छनन छङा  छनकै ।।

पक्या रसिला अंब , बैगा आय थें खा लो ।

बलम झङे ऐ बाग , आय ने घर सम भाळो  ।।
  
                       ।।दोहा ।।

छनके बिछिया बाजणा ,पगा बजे पाजेब ।

झूमर घूमर घण रमे , छूकर कपोल सेब ।।

खींच्यौ लावै बालमो , गोरी थारी गंध ।

आपने जोय आइने , मुलकै मंद मदांध ।।

सीस सज सीसफूलड़ो , बिछाय बैठी केस।

नशिला पूछे  नैण ऐ , किसो पैरुँ पिय बैस ? ।।

••••••••••••••••••••••••••••••दीप चारण


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