कविराज रो कुण्डलियो

रस ले सुणता राजवी , केता जद कविराज ।

खमता हा खोटी  खरी , इक पासे रख ताज  ।।

इक पासे रख ताज , सुनता  ग्यान री बातॉ।

राज नीति पर नाज , कविवर सुँ अटूट नातॉ ।।

बाज़ी  रा सुण बोल , कायर बगत्तर कस ले ।

ढम ढम ढमका ढोल , सुणतो नी कोय रस ले ।।


••••••••••••••••••••••••••••••••••दीप चारण


अरक मुखां पर आकरो , जिह्वा माथे ज्वाळ।
गुण निपजै ऐ चारणां, लहु मा लाय उबाळ।।
लहु मा लाय उबाल , चूहो गयंद गुड़ावै ।
लोचन खीरै लाल , जल मा ज्वाला  जगावै।।
आखर री कर खोज , तत्काल देवतो तरक।
अति वाणी मा औज , मुखां पर आकरो अरक ।।

•••••••••••••••••••••••••••••••••दीप चारण

•••••••••••••••••••••••••••••••दीप चारण



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