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Showing posts from April, 2016

सिणगार

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।। कुण्डलियो ।। भाल बिंदि सीस बोरियो , सोहे धण सिणगार । कंचन कंगन हाथ मा , कण्ठा  दुलङी   हार ।। कण्ठा  दुलङी   हार , कर्ण  झन झुमरी झनकै । कंचन   वरणी  देह , पगां छनन छङा  छनकै ।। पक्या रसिला अंब , बैगा आय थें खा लो । बलम झङे ऐ बाग , आय ने घर सम भाळो  ।।                           ।।दोहा ।। छनके बिछिया बाजणा ,पगा बजे पाजेब । झूमर घूमर घण रमे , छूकर कपोल सेब ।। खींच्यौ लावै बालमो , गोरी थारी गंध । आपने जोय आइने , मुलकै मंद मदांध ।। सीस सज सीसफूलड़ो , बिछाय बैठी केस। नशिला पूछे  नैण ऐ , किसो पैरुँ पिय बैस ? ।। ••••••••••••••••••••••••••••••दीप चारण

मॉर्डन जमाना और मोह माया

मॉर्डन जमाना फेशन के इस दौर में कपड़े कम लम्बे जूते हुए । आजकल की औरतों को पीया से भी प्यारे कुत्ते हुए । गर जल गया गाउन प्रेस करते बात पहुँचे तलाक़ तक । चाट लेता है मुँह जब टोमी भी देखा होगा डार्लिंग कहते हुए ।। ••••••••••••••••••दीप चारण मोह माया यहां सब मोह माया हैं मिट्टी की यह काया हैं मिट्टी में मिट्टी मिल जायेगी धन क्हाँ साथ चल पाया हैं? "दीप " दो शब्द छोड़ जा जहां में खाली हाथ जायेगा क्योंकि तूं खाली हाथ यहां आया हैं। °°°°°°°°°°°°°°दीप चारण

कल्याण शतक रँग कल्ला राठौड़ रो दीप चारण कृत

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भूमिका / प्रस्तावना  मेवाड़ वा भौम हैं जिणरी माटी रा कण-कण सूरवीरां रै सूरापै रा अर सतियां रै सतित्व रा गुण गाता नी थके। इणरो इतिहास अनूठो हैं, रणबाकूंरा रो ओ खूंटो हैं । बात उण बखत री हैं जद मुगल पात्सा अकबर आपरी साम्राज्य बढोतरी लगेटगे कर चुक्यो हो कैई रिहासत - ठीकाणा नै आपरी अधीनता मनवा चूक्यो हो। पण मेवाड़ उणरी आंखां में खटकतो हो, बो किण ही रीत किणी भांत मेवाड़ नै आपरै अधीन करण रो हर सम्भव कोसिसां करे हो। अठीनै मेवाड़ माथै उदयसिंह रो राज हो। चित्तौड़गढ़ सूं ही राजकाज सुचारू हो। अकबर आपरी विशाल मुगल फोजां लेय'र चित्तौड़ रै किले ने घेर लेवे। जुद्ध री स्तिथि देख सभा में सरदारों अर सामंत निर्णय लेवे कि आयुध अर सैना कम हैं अर मुगलों रै विरूद्ध आगे जंग जारी राखण खातर राणा उदयसिंह जी रो सुरक्षित रेवणो जरूरी हैं सामंत अर सिरदारां रै अणूतो आग्रह करण कारणे उदयसिंह जी सैनानायक जयमल्ल जी मेड़तिया नै चित्तोड़ सूंप सुरक्षित स्थान सारू वहिर हो जावे। इण रै उपरांत मुगलां ऊं लोहो लेवतां हेक छोटी सी ऐतिहासिक घटना 1567-68 के काल री हैं जिणमें अकबर साबात सुरंगा मांय बारूद भर किले री भींतां ने धोड़...

कविराज रो कुण्डलियो

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रस ले सुणता राजवी , केता जद कविराज । खमता हा खोटी  खरी , इक पासे रख ताज  ।। इक पासे रख ताज , सुनता  ग्यान री बातॉ। राज नीति पर नाज , कविवर सुँ अटूट नातॉ ।। बाज़ी  रा सुण बोल , कायर बगत्तर कस ले । ढम ढम ढमका ढोल , सुणतो नी कोय रस ले ।। ••••••••••••••••••••••••••••••••••दीप चारण अरक मुखां पर आकरो , जिह्वा माथे ज्वाळ। गुण निपजै ऐ चारणां, लहु मा लाय उबाळ।। लहु मा लाय उबाल , चूहो गयंद गुड़ावै । लोचन खीरै लाल , जल मा ज्वाला  जगावै।। आखर री कर खोज , तत्काल देवतो तरक। अति वाणी मा औज , मुखां पर आकरो अरक ।। •••••••••••••••••••••••••••••••••दीप चारण •••••••••••••••••••••••••••••••दीप चारण

डैण अर डोडी री विरह व्यथा रो कुण्डलियो छंद

डोडी प्यारी डैण री , जिम प्यारे पिय नैन । तड़फा दोनूं तोड़ता , पिये बिना नी चैन ।। पिये बिना नी चैन , होवती अणुती देणा । टूटी नाड़ा ऐन, बेरण कटे इम रैणा ।। दुपटी पी री चट्ट , चिविंगम ज्यॉ चबा छोडी । मरजा मोदी फट्ट , बंद क्यूँ की तें डोडी ।। •••••••••••••••••••••••••••दीप चारण

मायड भाषा ने मानता

कपुत आ किंया पालसी , दे ई किंया आ  साथ । मायड म्हारी मावडी , मानता बिन अनाथ ।। ••••••••••••••••••••••••••••दीप चारण मायङ ने दो मानता , मान बिना (आ) बेजान । गीत आ ई गुँजावसी , जय जय राजस्थान ।। ••••••••••••••••••••••••••••••••दीप चारण