कवि भोंगल दान जी दैथा की रचनावां
भोंगल दान दैथा (दैथा चारणों के दाता ) कहे जातें हैं आपने सात बार हिंगलाज धाम की यात्रा की थी । इनको वरदान था की सदैव उल्टी रचना करेंगें । जिस दिन सिधी रचना की तब तक ही रहेंगे ।
परन्तु अंत में एक बार सिधी रचना कर देते हैं । थोङी बहुत और भी जानकारी हैं । अधिक जानकारी किसी गुणी दैथा विद्वान से लें तो सही रहेगा ।
मुझे बहुत सालो पहले एक मित्र से एक पुरानी फटी पुरानी नोट बुक मिली थी उसमें इनकी कुछ रचना है मैं टंकन कर रहा हुं त्रुटियां हो सकती हैं काफ़ी फिर भी लिख रहुं गलती के लिए पुर्व ही माफ़ी मांगता हुं ।
••••••••••••••••••••••••••••दीप चारण
कवि भोंगल दान दैथा
।।गणेश स्तुति ।।
साधा सांभलों सारा नित पदवी रा अखर नारा ।
सामीं सुंडालो कुडालों वालो जाने पीन्डारो ।
टीबकै भ्रया लाडू टंकरा , खाई ने थीतो खुस्स ।
हकल दंतौ मुड़स हूतों , कुरड़ा सुफड़ कन्न ।
गज हाथी ज्यों बनामां , घुमतो नाम थयों गजानन्द ।
……
सामेला में आवतो सीगें , बजता ढोल बीच्च ।
बीमारो विणाकियो थातो , खावतो गुल ने खीच्च ।
मेवेरी मिठाई करतो , कन्दोई जो काम ।
रमण सारु उदेरो रखतो , तीणनै देतो ताम ।
।। शिव स्तुति ।।
शिव सक्ति सुनमा रेवतों , गोढ नहीं को गांम ।
खसड़ खसड़ बगल खिणतों , पांमर लायो पाम ।।
चोतो देने पैरतो चोलो , मथे मुकुट मोड़ ।
गीधड़ी माहे नाग गोरावो , रुड़ की संखरी रोड़ ।।
घुमर घगो देहण दगो , नीनम नगों होय ।
भीड़मा अगो भजड़ भगो , जेरी भेली जोय ।।
खोपे ऊपर चढियो , खुलम पारबति ले पूठ ।
ऊजड़ मांहे मालफयो आहे , उदम जाणें ऊंठ।।
।। विष्णु भगवान स्तुति ।।
खीर संमदर मां खमतो , सांई माई रखती मन्न ।
कालीं दर नागरी कांचली , बिछातों विसन्न ।।
पानी माहे हाथी पेठों , बुडते कियो बरर ।
गरुढ चढ़े ग़ज़ब जौया , हसण लागो हरर ।।
ध्रुह पेला जियो धोड़ता , आया हरे रे शरणै हम्म ।
हरणा कंसनां हेठो धस्यो , उतान पाद नो अम्म ।।
तुलछी बामणी मनमां तेवड़ो , संख चुडनै श्याम ।
राकस जंलधर रोलो धत्यो , साय करे सालग राम ।।
।। श्री राम चन्द्र स्तुति ।।
वेजाड़िया रा अकड़ा वालति , हंडिया डोवी हथ्थ ।
घर रावण रे फेरती घरटी , बैठी देती बथ्थ ।।
बेमाता तो बावली थई , भूरड़ घरटी भंज ।
लेखातर रो दीनो लोडो , रावण रे पडयो रंज ।।
घड़े माही आंगलै घुरड़ै , रुपिये घत्यो रन्त ।
जीनक जी रे दीकरी जाई , सीतमा रामौ संत ।।
राम लीछमण रोहीमा रेवता , कुटिया देता कार ।
हिरणां लारे घोबाटा हणता , निश्चतै गमी नार ।।
रात आधीरा राम जी आया , वानर लाया
वस्स ।
लंका गढमां सीतवा लाधी , मारियो रावण मस्स ।।
भगो दीनो भभीखण , नाहडु मानना हंड ।
काले मांडे कुदती दिठी , रावण वाली रंड ।।
।। श्री कृष्ण स्तूति ।।
ईदर बूठा जगत दीठा ,टोभा भरिया नीर ।
चौमासे री चाहला थीता , खावतो कृष्ण खीर ।।
वृन्दावन मां धेन चरावतो , मुरली रखतो मुख्ख ।
गोपियां भेलो कानजी घुमतो , सुहण जधण सुख्ख ।।
गुजरिया री गेहर माही , डडिये रमतो दीठ ।
नाग नाथण ना कानजी नाठो ,जशोदा मों थइ जूठ ।।
पांडवा वाली देख पंचाली , मानवे घत्ती मीठ ।
पाछी वलती हाथ पगरखा , नासे छूटी नीठ ।।
दौलत सुदामे ना ना दिनी , चावल सावल चब्ब ।
रुकमणी नां रोटियां दैतो , राधका जी नां रब्ब ।।
पग पसारे भोंगल पठे , इतरे वांतां अम्म ।
हमें लारे वले होवसे , कुच्चीयो जाने कम्म ।
इसी पिसी ब दिकरे , कुस्सीयो कुल संगार ।
हिबल जैसी हार जणे , भुंगलियो भरतार ।।
ग़लतियों के लिए माफ़ी चाहुंगा ।
टंकण एवं संकलनकर्ता
दिलीप सिंह चारण (दीप चारण )
गांव -: बैह चारणान
हाल ही निवास -: बाड़मेर
नित पदवी के दोहै है क्या ।।
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