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Showing posts from July, 2015

सिंढायचों का इतिहास (दंत कथा आधारित )

एकबार राजा नाहङराव कहीं से   अकेले ही आ रहे थे अरावली की पहाङियो से होते हुवै । गर्मी का मौसम भरी दोपहरी का समय तेज तावङो तपती घरा लाय रा थपिङा बावै । राजा जी नै रास्ते मे जोरदार प्यास लग गयी । दुर दुर तक पानी नहीं । गलो होठ सागेङा सुकग्या अंतस तकातक सुक गयो । आथङता 2 राजा जी डुंगरा री ढाल सुं नीचे आया उठै गाय रो खूर सुं खाडो पङियोङो जिणमे 2 - 4 चलू बरसात रो पाणी ठेरियोङो हो प्यासा मरतां थका नी आव देखयो नी ताव चलू भरनै खाताक सुङका लिया अर पानी पिवतां ई राजा रै हाथां मे कोढ (कुस्ट रोग ) जकी झङगी । अर सरीर मे एकाएक ताजगी आयगी । राजा देखयो आ कोई चमतकारी तपो भूमि है ।अठै सरोवर खुदाणो चहिजै । राजा बी जगां सरोवर खुदाई सुरु करावै पण ज्यां दिन रा खोदे पण रात वहैतां ई पाछो पैली हतो जङो व्है जावै । अर्थात बुरीज जावै काफी प्रयास करनै के बावजुद भी तालाब खोद नही पाते फिर राज विद्वानो गुणी व्यक्ति यों से।पुछवाता है ऐसा क्यो हो रहा हैं । तब बात सामनै आती हैं कि पैहले यहां बहुत बङा तालाब था इसके किनारै एक तपस्वी साधु का यहां आश्रमं था जिसकी बहुत सी गांये थी । अरावली की पहाङियो में सेर रहते थे व...

बाल कृष्ण लीला

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कृपा कानुड़ा कीजिए , तुक्का लागै तीर । गैडी बांउ गिन्डक के ,  धूजै पड़ रणधीर ।। ••••••••दीप चारण स्यामो आसी साय , नितरो धरे रूप नवो । पात्सा पड़सी पाय ,  दैख्तो जाजै दीपड़ा ।। •••••••दीप चारण । किरीट सवैया । मोहन साध सुरं बजती मुरली मधुरं मन कानन होयन । राग सुनी मधरी मधरी चल गोपि निहारि लगी मन मोहन । माधव लोचन लाल लगे मद मादक मोहक नाचत गोपन । मोर बनी रमती रमिया कर थामत आपु बनी मधुसूदन । •••••••••••••••••••••••••••••••••••••••••दीप चारण अरसात सवैया  बातइ मानव मानत गोकुल ग्वाल नटीवर माधव राज की । साम सदा इक बात कहे मत मुरत पूजत वासव राज की । भोग न देवत देवन को अब कोप करी मघवा घन राज की । गाज पङी बरखा बरसी गिरि धार लियो जय हो जदुराज की  । ••••••••••••••••••••••••••••दीप चारण सुपंखरो चढी ऐराऊत देवराज  घोर मेघ घेर आयो  । तपे ब्रज कै तणो   तड़ीत  छोड़  तोप ।। हर ओर  हाहाकार हरेक  देखे  हरि को  । डबो डब  ...

फुटकर दुहा सौरठा

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छंद मस्त छलकावतो , तड़- बड़ तबले ताल । गढवी मजै मा गावतो , जबरा झटकै बाल ।। •••••••••दीप चारण बिन अमल जमे रँग नही , नींद बिन नहीं ख्वाब । कविता बिन कविराज के ,सुन्न दरबार साब ।। ••••••••••••••••••••••••••••••••••दीप चारण धर कर धनु तलवार , रण रज रज रलिजावतो । उर कविजन रो त्यार , गीत रण रमत गावतो ।। ••••••••••••••••••••••••••••••••दीप चारण जे रण चारण संग ,  न जमदूत आवत निकट । वरते हूरां दंग ,  धड़ मुण्ड छड किकर लड़े।। ••••••••••••••दीप चारण भावार्थ  यदी रण भूमि में चारण साथ में होते वीरों  तो यमदूत व यमराज भी निकट नहीँ आते है कहीं कट नहीं जायें   इस डर से ।( अर्थात ये चारण लोग अपनी वाणी से इतना शोर्य जाग्रत करते हैं । ) तब अपसराओं को भेजा जाता हैं ताकि वीरों का ये गुण है कि वे स्त्रियों पर हाथ नहीं उठाते जब सीस धड पर नहीं होता हैं आंखे भी नहीँ होती है धड के फिर भी हूरों पर वार नही किया यह देखकर वरण करने आयी परियां दंग है कि सीस धड से अलग हो गया ये वीर कैसे लड़ते है ?ओर किन करों (हाथों )से लड़ते...

भुजंग प्रयात लक्ष्मी मां स्तूति

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।।सौरठा।।  कमला आ सह कंत, पाण पसार पगे पड़ॉ।  साद सुणोह तुरंत, जगमगं 'दीप' जगमगे ।।  देवी तू दातार, देख आय दीपावली।  लूळ लूळ लाचार, जगमगं 'दीप' जगमगे।।  टूरती सुणो टेर, विसाइ ले विष्णूप्रिया।  मुळक मुळक कर मैर, जगमगं 'दीप ' जगमगे।।  सुखी रहे संसार, मन नित नर नारी मुदित।  सागर तनया तार, जगमगं 'दीप' जगमगे।।  °°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°दीप चारण श्री लक्ष्मी अष्टकम् दीप चारण कृतं  -:दोहा:- दारिद्रता ने तुँ  दले ,  अड़चन रो कर अंत। तत्काल दीप तारने, कमला आ सह कंत।। पधारो पदम्मासनी , प्रणमूं पसार पाण ।  तत्काल दीप तारते,  कमला रखो न काण।। ••••••••••••••••••••••••••दीप चारणमम छंद :- भुजंग प्रयात   रुखाली रखो लाज रम्मा रुपाली  । सदा  पाण  प्रासाद  दीजौ   दयाली ।। नमो  श्री  पदम्मासना  मां  नमूं मां। खमा मां खमा मां रमा मां नमा मां  ।। [1] कँगालीय काटो सदा मां कमल्ला । चमम्को ...

सूरा

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सूरां  बिसरै   सूरता ,  सुरतां  रहै  सुधार । गऊ कटे जिण देस , सूरां सुरग सिधारिया  ।। सुणै मरसिया बिन मुवां ,संमुख  कवि  बैसाण । बिरद  निभावै  बावलां , ऐ  सूरां  (रा)  सैनाण ।।  ••••••••••••••••••••••••••••••••दीप चारण

बींझाणंद

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सुणतां जिण दिस राग , मंडे मृग खग मेलो । व्है सैणि बाग बाग , सुर बिंझै रा सांभले ।। तान छेड़ एक तार , मेघ मल्हार गावतो । घन लावतो घुमेर , बींझो सैणि मनावतो ।।  हेमाल बिंझो हाल्यो , टुर्यो सैणल ला'र । अंग सैणि संग गाल्यो , तड़ाक टुट्या तार ।। ••••••••••••••••••••दीप चारण

शिव तांडव

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मतगयंद मालती सवैया                              शिव तांडव नाग फणा पटकारम  गंग  जटालम  संकर  लोचन लालं । डाक डमा डम डाक डमा डमका डमरू डणकार उछालं । घूम घमा घम धूम धमा धम  घूघर  झूम बजा पद  चालं । भाल गुलालम कूद कमालम ताधिन ताधिन तांडव तालं ।    ||1|| डाक विसालम सीस धुणालम लामलटा ससिसेखर खोलं । ताक तताक तधीम तनां तन धूम तता धिन नाचत भोलं । धूम तताक धिंताक तधीम  तताक तनां मिरदंगम बोलं । संग उमा भसमा रम  वास मसाणम  राग तरानम  घोलं ।      ||2||  ••••••••••••••••••••••••••••••••••दीप चारण                    छंद :- पंच चामर नमाय नाक लोक तीन बम्म बम्म बोलते । घुमंत घोर  जोर  नाचते  त्रिशूल तोलते  । उमाह  संग  भूतनाथ   बैठ  बैल  टोलते । भुजंग  कंठ  हार केस  गंग धार डोलते । •••••••••••••••••••••••...

सवैया ललना

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                                दुर्मिल सवैया महकै गजरा पिछु आ लगि भौंर दला सरमाय रही  ललना । लचकाय कटी चलती सम सांप बही मधरी मधरी पवना । सरसां सरसां लहरे जुलफां  लट लाम  लगी  चुभनै नयना । झपकाय झपा झप नैन हटा लट लाम कहे पगले  हटना । °°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°दीप चारण । किरीट सवैया । मोहन साध सुरं बजती मुरली मधुरं मन कानन होयन । राग सुनी मधरी मधरी चल गोपि निहारि लगी मन मोहन । माधव लोचन लाल लगे मद मादक मोहक नाचत गोपन । मोर बनी रमती रमिया कर थामत आपु बनी मधुसूदन । •••••••••••••••••••••••••••••••••••••••••दीप चारण