बिरहणी रो कुण्डलियो

कुण्डलियो छंद बिरहणी भाल बिंदी सीस बोरियो , सोहे धण सिणगार । कंचन कगंन बांह मा , कण्ठा दुलङी हार ।। कण्ठा दुलङी हार , कर्ण झन झुमरी झनकै । कचंन वरणी देह , पगां छनन छङा छनकै ।। पक्या रसिला अंब , गुलाबी गल रहत गाल । बलम झङ रहे बाग , कंत आय घर सम भाल ।। •••••••••••••••••••••••••दीप चारण