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Showing posts from June, 2017

सपाखरो आनंदपाल सिंह रो

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सपाखरू  आनंदपाल सिंह रो (दीप चारण कृत) हजूरी तू काठे हिये वाळो वीरता सूं जीये वाळो, पढ्योह लिखो बीएड वाळो मत्तवाळ। गांम मां रैहण वाळो जूल्म ना सहणवाळो जूल्म देख उठाई बंदूकां तेग ढाळ।। भौं भौं भौसता कुत्ता आया समर्पण को बुलाया, धाड़ धाड़ धाड़ बाया फायर अनाफ। नेतॉ ऐ बीज बोया माता ने ऐक बेटा खोया, खूटो मांग रो सिंदूर टाबरांरो बाप।। जूत जूळम्यां जीमावणआळा ऐ के सैतालीआळा, संगी थारा धोळा काळा बणायो त्नॉ ढाळ। जैल सूं छूडावण वाळा जेल सूं दौड़ावण वाळा रांडा भांडा होय भेळा मरायो आणंद पाळ।। गोलो कह चिड़ायो त्नॉ फिर उंचो चढायो त्नॉ, राजनीति खेळ रांडा भांडा ठायो त्नॉ शेर। चाळ ढाळ जो चुनावी खतरों जाण त्नॉ भावी, दूतॉ कुत्तों छोड़ लारे धोखे कियो  ढेर।। °°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°दीप चारण आनंदपाल चालिसा अणंद पाल तु दे दे परचा।  (दीप चारण कृत)                   ।। दोहा।।  बैरण सूण बिछूंदरी, गले न थारी दाळ।  भैला बोलो भायळां, जय जय अणंदपाल।।  बिछायो नेता पुलिस मिल, हत्या रो ...

मात सूं बड़ो बाप

निज सुत सुधार कारणे, थपथपि अरु दे थाप। पेट     किताई  पालतो, मात सूं   बड़ो  बाप।। संतान सुख्ख कारणे, दूख्ख भोगतो आप। देख्यो तें तो दीपड़ा,    मात  सूं  बड़ो  बाप।। °°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°दीप चारण

दृग चावै दीदार( दीप चारण कृत)

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दृग चावै दीदार( दीप चारण कृत)  ||दोहा|| त्यार सुराही प्याळियाँ,  लबालब भरि शराब। आ जा अब परदेशिया, पूरा कर दे ख्वाब ।। पूर्सूं भर भर प्याळियाँ, सीझ रह्यो कबाब। आ जा अब परदेशिया, पूरा कर दे ख्वाब ।। असाढ बिन बरसे गयो, धधकत घणी धराह। सावण आयो साहिबा , पधारो अब घरांह।। पावस बण आवो पिया,स्नेह छींटाह छांट। गिला शिकवा भूल जा, मत राखो ना आंट।। गड़ड़ हड़ड़ घन गरजता, कड़ड़ कड़कती बीज। रो - रो काढूं   रातदिन, खामद   मत  ना  खीज।। जावे तन-मन तोड़ती, बहती ठंडी ब्यार। सावण आयो साहिबा, दृग चावै दीदार।। || कुंडलिया|| नद्य तट घट भरन गई, भींज्यो सगळो बैस। खांच लियो पंछी रिबन, खूलग्या सारा केस।। खूलग्या सारा केस, घनघोर छाय कळायण। पिया बसे परदेश, इण रुत याद आए घण।। जबर छटपटे जीव, मीन सम करती मटमट। पधार अब तो पीव, भरन चली नदी तट घट।। [1] गाबा सगला भींज गा, उघड़ गया सब अंग। कस्स कांचली टूट गी, तन पर कूर्ती तंग ।। तन पर कूर्ती तंग,  झुक झुक सब अंग झांके। फैला पंछी पंख,  मुवा म्नॉ उड़ उड़ ...

शिव स्तुति 2 दीप चारण कृत

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शिव स्तुति ( दीप चारण कृत)  जय भुतेश्वर जय महेश्वर जय नगेश्वर शंकरम।                        ।। दोहा।।  भक्त तारेह भोळियो,  होय'र शिखी सवार।  मनहर सावण मास में, नित पूजत नर नार।। सिमरु सुरसती नै सदा,सिमरु सदाय गणेश। पलकां पर मांँ पार्वती, मनड़े बसे महेश।।                    ।। छंद गीतिका।।  बह त गंगे चाल चंगे  नीर झर झर झिरमिरम। भंग घोलम रंग रोलम पग्ग डोलम थिरथिरम ।।  डमडमाडम डमडमाडम डैरु डम डम डंकरम।  जय भुतेश्वर जय महेश्वर जय नगेश्वर शंकरम।। 1 हे कपालम मूंडमालम चंद्रभालम सोभियम। ताल तांडव नाच मांडव पांच पांडव तारियम।।  बम्म बोलम, नाग डोलम फन्न फोरम रूद्र रम।  जय भुतेश्वर जय महेश्वर जय नगेश्वर शंकरम।। 2 सति सखीयम बसि अँखीयम कूद यज्ञं तन तजम।  धाररूपम वीरभद्रम दक्ष यज्ञं नाशवम।।  रूद्ररूपम मार भूपम नाच नृत्यम तांडवम।  जय भुतेश्वर जय महेश्वर जय नग...

अपसरा साधना

अप्सरा वशीकरण मंत्र सभी साधक अपने जीवन को अप्सरा वशीकरण मंत्र साधना सिद्धि का प्रयोग कर किसी भी कार्य को पूर्ण कर सकते है| आकर्षक शरीर, चेहरे से छलक पड़ने वाली सुंदरता, मोहित कर देने वाली बाॅडी लैंग्वेज या कहें शरीर विन्यास, बलशाली व सेहतमंद निरोगी काया के साथ-साथ लंबी उम्र की तमन्ना हर किसी को होती है। सुख-संपदा के साथ-साथ आंनद से भरी जीवनशैली और मनोवांछित जीवनसाथी कौन नहीं चाहता है? इसे पाने के लिए तंत्र-मंत्र साधनाअें में अप्सरा वशीकरण मंत्र और साधना का अहम् स्थान है। मान्यता है कि इस साधना से सुंदर अप्सरा जैसा सुख-सौंदर्य व समृद्धि हासिल की जा सकती है, जो जीवन में खुशियां भर देती हैं। इसके साधकों को ऐसा विश्वास है कि अप्सराओं की मंत्र साधना से वह सबकुछ हासिल हो सकता है, जिसकी कल्पना सपने में भी नहीं की जा सकती है। इसकी सिद्धि स्त्री व पुरुष अपने लिए सर्वश्रेष्ठ जीवनसाथी का अथाह प्रेम पाने और इच्छाओं की पूर्ति के लिए सदियों से करते आए हैं।  अप्सरा वशीकरण मंत्र धर्मग्रंथों के अनुसार समुद्र मंथन में विभिन्न वस्तुओं के अतिरिक्त आठ अप्सराएं भी प्रकट हुई थीं। इनमें मुख्य हैं- ...

जयमल मेड़तिया

जयमल मेड़तिया ई. स. 1567-68 मेवाड़ सेनाध्यक्ष। माह सतरह सितम्बरे, सन पनरै सौ सात। वीरमदे घर आवियो, जयमल जग विख्यात।। संवत पनर सौ चउसठे, वार शुभ शुक्रवार। आश्विन शुक्ल एकादशी, जनमियो जय जुझार।। खोसया मालदेव सूं, न रख्या चिह्न नगार। जयमल जोद्धा जोर रो, उच्च कोटिय उदार।। लारो भूंडो मालदे, जा जा लियोह जोर। खोस्या बैरी खोट सूं, मेड़त अरु बदनोर।। चित्त बसा चित्तोड़, अकबर सम जाय अड़ियो। सरदार तु सिरमोड़, वीर वीरमदेराउत।। झेल्या पग पग जूद्ध, जंग किताई जीतियो। मुगल हुय मंत्र मुग्ध,वीर वीरमदेराउत।। चारभुजा चित धार, चतुर्भुज रूप रण रमे। कर मुगला पर वार, वीर वीरमदेराउत।। भेलो रमे भतीज, काको उंच खंदोलिये। पलकती पाण बीज, पड़ कड़ड़ड़ अरि पाड़ती।। °°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°दीप चारण

मेनका अप्सरा रा सोरठा दीप चारण कृत

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मेनका अप्सरा रा सोरठा दीप चारण कृत तज सुरसरि तट वास, हे कश्यप कपिलासुता, बुझा दिदार प्यास, मृगनयनी हे मेनका।। 1 सह्या किताहि श्राप,निज धरम नित निभावते। दीप रा धोय पाप, मृगनयनी हे मेनका।। 2 नृत्य पर करत नाज, देव सब नित्य देखके। आय दरश दे आज, मृगनयनी हे मेनका।।  3 दीदार चहे दीप, भोग की नाहि भावना। साद सून आ समीप, मृगनयनी हे मेनका।। 4 छमम छड़ा छनकार, घम घम घूघर घम्मका । नटखट सुरपुर नार, मृगनयनी हे मेनका।। 5 झटक झटक लाम लट्ट, मंदाकिनी तट नाचती। झलक पलक दे झट्ट, मृगनयनी हे मेनका।। 6 विश्वामित्र कर वश्श, करि रिछा पूर्ण इन्द्र री। जबर लियो तें जस्स, मृगनयनी हे मेनका।। 7 अप्सरा ऋषि अंश , दीनी सुता शकुंतला। वधा दुष्यंत वंश, मृगनयनी हे मेनका।। 8 तोह शकुंतला अंश, नानी दुष्यंतउत री। आपसूं भरत वंश, मृगनयनी हे मेनका।। 9 मेघ मेघ पग मेल, मंदाकिनी में भींझती। परियां में तू पेल, मृगनयनी हे मेनका।। 10 छणण नुपुर छणकार, नाज लाज कर नाचती। स्वर्गे खूब सत्कार, मृगनयनी हे मेनका।। 11 नट बन करती नृत्य , गान सुन गन्धर्व का । नव योवना तुं नित्य , मृग...

गीत सपाखरू कवि दुला भाया काग कृत

वाह घोडा वाह गीत सपाखरू कवि दुला भाया काग छूटा ग्राहबे वोम बछूटा रोकता धराका छेडा उठाहबे पागा महि शोभता अथोग धाहबे खगेश तके वेगरा अथाह धख्या साहबे नाखता पागा नटव्वा अमोध         (1) डाबला मांडतां धरा धमंके साबधी दणी झमंके साजहीं कोटे रंभरा झकोळ चमके वाहसे जाणी वीजळी जालदा चळी भ्रम्मवाळा भारे ठाळा गतिवाळा मोर      (2) वांभशी सांकळांवाळा टांक कानसोरी वदां कुरंगां आंखडीवाळा मूलरा करोड भालावाळा लटां केश फोरणां उलंधी भजे जटाळा जोगंद्र नहीं पटाळाकी जोड        (3) छाछरा भालरा छातीयां ढालरा समां चोडा त्रींग बाजोठरा खाळीया सढाळ साकाबंधी तांसळीरा ओपता डाबला चोडा ठमकंता घोडा नाडा तोड सांधे ठाळ       (4) अंजळिमां पीता पाणी मोकली वखाणी आप जांगळां थोकरा धरा पूंछरा झपाट केशवाळी ढींचणारा ओवाराणा लीये काजु थडक्के धरास वांसा डाबकी थपाट       (5) लगामे गराया हाथ ऊतरे गढांपे लाया टोळे मृग्गवाळा फोळे खीजीया तोखार चडाया वा'णरा सढां देखी कंपे निज छाया नाचरा नचाया के हसाया नरां नार   ...