छप्पय छंद प्रयास


छप्पय छंद

वर दे वीणापाणि,विद्या विरद विरदांऊ।
वर दे वीणापाणि,दिव्य गुण देवी गांऊ।।
वर दे वीणापाणि,नित्य मां शीश नमाऊ।
वर दे वीणापाणि,जिह्वा ज्योती जगाऊ।।
साद दीप दे सारदा, साहित्य शब्द सार दे।
जोउ बाट कर जोड़तो, तरणी शब्दां तारदे।।

°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°दीप चारण


छप्पय छंद रो प्रथम प्रयास

वंश रिषी रा वीर, संभल जा रीत सुधारण।
वंश चंद्र रा वीर, जागजा जग्ग जगावण  ।।
वंश भाण रा वीर, भभक जा असुर भगावण।
वंश अगन रा वीर, धधक जा दाळद जारण ।
मर्द मुवा अब जाग जा,रीत रुखाळण  बापरी ।
लक्ष्य भेदण लाग जा, लाज रखण कुळ आपरी।।

°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°दीप चारण

भावार्थ

कवि छप्पय छंद का प्रथम प्रयास करता हुआ लिखता है कि हे ऋषिवंश, वंशज वीर क्षत्रीयों अब संभल जा अपने बिगड़ते हुवे संस्कार और संस्कृति को संभालने के लिए, इसलिए अपनी रीति रिवाज संभाल, हे चंद्र वंश वंशज वीर क्षत्रीयों तुम भी अब जाग जाऔ इस सोये हुवे संसार को जगाने के लिए तुम्हारे दादा कृष्ण की यदा यदा ही धर्मस्य वाले श्लोक सार्थक करो।
हे सूर्य वंश वंशज वीर क्षत्रीयों अब तुम भी सूर्य की तरह भभक जाओ और अपने तेज आसुरी व्यवस्था का अंत कर दो। दुखियारी जनता में छाये तम को अपनी तेज रश्मियों से दूर करो इसके लिए पहले अपनी रश्मियों जाग्रत करो।
अग्नि वंश वंशज हे क्षत्रीयों अपनी आन्तरिक शांत पड़ी अग्नि जाग्रत करो और दालद (कचरे)
वाली व्यवस्था का अंत कर दो।
अरे मरे हुवे मर्दो अब जाग जावो अपने बाप दादा की रीति रिवाज की रक्षा करो रे कपुतो।
ठाली ठकराई मुंछे बड़ी बड़ी रख कर बंदूक और तलवार हाथ में लेकर कोरे प्रदर्शन के लिए फोटो खिंचवा कर उसके नीचे बेहूदा शायरी लिखते हो ये पाखंड छोड़कर कुछ करके दिखाओ तो जाणू
इसतरह अपने पूर्वजों की आत्माओं को लज्जित मत करो। अब लक्ष्य को भेदने के लिए तैयार हो जा और अपनी अपने पुरखों की अब लाज रखो ।

वीर भोग्या वसुन्धरा।

°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°दीप चारण

वाह दिलीप दान जी...👏🏻👏🏻👏🏻👌🏻👌🏻👌🏻

जागशे जागशे धर्म ने धारवा समो सम्भाळशे लाग आव्ये,
सुसुप्ती अवस्था सिंह ना काळ ने गणो माँ डर पदु खाग खाये...
- दिव्यराजसिंह सरवैया...


छप्पय छंद

कमला आ सह कंत, बालक रे घर बिराजो।
कमला आ सह कंत, सदा सुख समृद्धि लाजो।।
कमला आ सह कंत, कारज सब सिद्ध कीजो।
 कमला आ सह कंत, दीप ने दर्शन दीजो।
पाण जोड़े पुकारतो, नित्य करूं स्तुति सांतरी।
रमा माँ लाड राखजो, बरसाय कृपा आपरी।।

°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°दीप चारण


छप्पय छंद

कल्ला कर कल्याण, आओ अरि असुर मारण।
कल्ला कर कल्याण, आओ भक्ता उबारण।।
कल्ला कर कल्याण, आइए तरणी तारण।
कल्ला कर कल्याण,  विरदावे दीप चारण।।
जग आवे कर जोड़तो, चित ले प्रोल चितौड़ री।
जय जय कृष्णा कंत री , जय कल्ला राठौड़ री।।

°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°दीप चारण


छंद छप्पय

भस्म रम भूतनाथ , धगग धगग धुणि धुखाते ।

भस्म रम भूतनाथ , डमम डुगडुगी बजाते ।।

भस्म  रम  भूतनाथ , मंद  मंद  मुस्कुराते ।

भस्म रम भूतनाथ , रास तांडवम रचाते ।।

धिनकट धिनकट नाचते, झटक पटक लट केश री ।

चारण  गण  गुण  गावते , माया  देख   महेश  री ।।

°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°दीप चारण कृत


छंद छप्पय

श्याम सदा रह संग, सुदामा संग ज्युँ रह्यो।

श्याम सदा रह संग, राधा संग ज्यां रम्यो।।

श्याम सदा रह संग, द्रोपद संग ज्यां रह्यो।

श्याम सदा रह संग, पार्थ संग ज्युँ रण हल्यो।।

आय सहाय तुँ सांवरा, नरसि रो भरे (ज्यां) मायरो।

पुकारे दीप बावरा, अब सुण हेला आवरो, ।।

°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°दीप चारण कृत


छंद छप्पय

रजपूतां रख रीत, कीर्त पूरखा रुखाली।

रजपूतां रख रीत, मरुधर धरा उजाली।।

रजपूतां रख रीत, अफ्गान सूं फुल लाया।

रजपूतां रख रीत, काम सीमा पर  आया।।

सिर सटे ऐ धरा धरे , सिर कटेह अरि चीरता।

गीत कविराज गावता, वीर री देख वीरता।।

°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°दीप चारण


छंद छप्पय

प्रण पालक प्रताप , नार नह जाली जौहर।

प्रण पालक प्रताप , प्रतापी प्रभात पोहर।।

प्रण पालक प्रताप , नर नाहर नाहि नमियो।

प्रण पालक प्रताप , अकबर सों जाय अड़ियो।।

बम बम भोले बोलकै , बाहि तेग बहलोल कै।

फेंक्यो सह हय खोलकै , तेगां भाला तोलकै ।।

°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°दीप चारण


कवित

खाग खड़ा खड़ खड़का अश्व गज गुड़का,

मूंछें मले बैरी लूड़का वीर बेजोड़ हैं।

तेगां चार चार हाथां, उडा अरियां रा माथा,

पद धरे खाथा खाथा, मेवाड़ रा मोड़ हैं।

काको खांधे चाढ कल्लो, मुगलां नै बाढ कल्लो,

भल्लो रण रमे कल्लो, हरखे चितौड़ हैं।

नाद हर हर करे , रूप चतुर्भुज धरे,

नाठो अकबर डरे, ये कैसे राठौड़ हैं?

 °°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°दीप चारण













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