भादवो अर विरह

खैण खिंवावै भादवो, नींद ना आय नैण । 
प्रेयसी गयी पिहरिये, पी गयी बिरह पैण ।। 

भारी बरसै भादवो, होती अणुती दैण । 
सूख गयो रै सायबो, पी गयी बिरह पैण।। 

भूत भयो रै भादवो, डराय काली रैण। 
बेसुध पड़यो बालमो, पी गई बिरह पैण।। 

बौछार लगे बाण रे , सुहाय न कोय सैण । 
खामंद व्योह खोखलो, पी गयी बिरह पैण।। 

चपला देखे छापलूं, चपला ले गी चैण  |
बूझ्यो लागे दीपलो, पी गयी बिरह पैण ।। 

°°°°°°°°°°°°°°°°°°°° दीप चारण


दिन रा इ लाय लागती , रैणा उठती झाल ।

प्यारी  बैठी पिहरिये , बिरहा नाख्या बाल ।।

बिरह बाहदी बेरहम , बाल बाल दे पीर ।

ओलूं आंधी  आवतां, नैणा  बरसे  नीर ।।

भूंडो बित्यो भादवो , ओ आयो आसोज ।

सजनी याद सतावती , रात रात भर रोज ।।

कैकी कोयल कागला , कूक कूक कुरलाय ।

हिवड़ो खावत हुचलका , हूक हूक हुलराय ।।

°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°° दीप चारण


साजन आयो हे सखी ,सोला कर सिणगार ।

नाह हटाऐ ना नजर , सजदे ऐसे नार ।।

°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°दीप चारण


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