कविता -: पृथ्वीराज चौहान (दीप चारणकृत )

कविता -: पृथ्वीराज चौहान (दीप चारणकृत )

भारत भूमिह जण्णिया , अनेक वीर सपूत ।
प्रीत पालक पृथी हतो ,घण रांगड़ रजपूत ।।

हतो पराक्रमी बड़ो ,
पृथी राज चहुआण ।
 वाह रे रजपूत ,
अजमेर धणिया ,
सह नी सकिया ,
थारो ताप सलतनत रा
भला भला सुलताण ।
हतो पराक्रमी बड़ो,
 पृथी राज चहुआण ।
द्वारपाल री मुर्ति बणाय ,
जयचंद सुलताण ।
पृथीराज रो ,
कियो घणो अपमान ।।
तिलमिला उठियो मूँछ ने मरोड़,
 चहुआण ने आयगियो जोश ।
ले गियो संयोगिता ने उठाय ,
जयचंद रा उड़ गिया होश ।।
मुखड़े माथे नूर ज्यूं ,
उंचो उगियो भाण ।
चंद कह्यो पृथ्वी थूं
म्हारी आ बात जाण ।।

चार बांस चौबीस गज
अंगुल अस्ट परवाण ।
तहा खड़ो सुलताण है
चुके मते चहुआण ।।
(चंदबरदाई का दोहा )

चक्षु फुटोड़ै पृथ्वी
उंचो चलायो बाण ।
महल माथे उभोड़ो
गुड़गियो गौरी सुलताण ।।
हती इनमें कला
शब्द बाण भेदी ।
नैना फूटोड़ा तोई
गौरी री मुंडी इण छेदी ।।

हतो पराक्रमी बड़ो ,
पृथी राज चहुआण ।
 वाह रे रजपूत ,
अजमेर धणिया ,
सह नी सकिया ,
थारो ताप सलतनत रा  ,
भला भला सुलताण ।
हतो पराक्रमी बड़ो,
 पृथी राज चहुआण ।
जणै चंद किया बखाण ,
पृथ्वी हुवो जद महान ।
"दीप" किणरा
करे बखाण ,
नी हुवो कोय
पृथी राज सूं महान ।

दीप चारण कृत

बी•ए 1St ईयर में पढ़ता था तब लिखी थी ।




Comments

Popular posts from this blog

काम प्रजालन नाच करे। कवि दुला भाई काग कृत

आसो जी बारठ

कल्याण शतक रँग कल्ला राठौड़ रो दीप चारण कृत