रचना = > प्रीत तणी आ प्यास




रचना = > प्रीत तणी आ प्यास  (दीप चारण )

।।दोहा।।
माधव छवि मन मोहनी , मन हर मो मन मोह ।
 तारणहारा तार लइ , तुतला (दीप)ध्यावै तोह ।।

बिरहा रह रह वापरे , प्रीत तणी आ प्यास ।
साँझ ढले आ सांवरा , ना कर दीप निरास ।।

।।चौपाई ।।
छाय बिरह की कैसी छांया । 
झुर झुर झुरगी मोरी काया ।। 1
पिय तुम जाय बसे परदेशा । 
नैन अडीकै पंथ हमेशा ।। 2
चातक सम दरसन की प्यासी ।
तोरी बन जाऊं मैं दासी ।। 3
पलक बंद कर तोहे पावां । 
नैन खुलत ही तोय गमावां ।। 4
रूठो ना तुम मालिक मोरे ।
विनय करूँ मैं सम्मुख तोरे ।। 5
भितर तुमइ तो बाहर आवो । 
छुपत काहे मोहे दरश दिखावो  ।। 6
मुकुट मोर पंख हँसी हरि मुख।
सब सुख फिकै तोर छबि संमुख ।। 7
मो मन मीरा ठाकुर मोरे । 
मोहे दे शरण चरण तोरे ।। 8
मो मन राधा तुम हो माधा।
दूर करो स्याम मिलन बाधा ।। 9
पीर पिया अब मोरी जानो ।
छलिया तोसे कछु ना छानो ।। 10
तो बिन जग मा घोर उदासी।
सीप फिरे सागर मा प्यासी ।।11
पिया स्वाति बूंद बण पधारो।
हरि भाग जगा आय हमारो ।। 12
ह्रदय पीर सहकर मैं हारी ।
मन कर हरो भरो बनवारी ।। 13
निशदिन तोरे चरण दबाऊ।
गुण गोविन्द तिहारा गांऊ ।। 14
मुरली मधुरम आय बजाओ ।
गिरधर सुन्दर रास रचाओ ।। 15
मो मन गोपी तुम हो ग्वाला ।
माखण चाखण आ गोपाला ।। 16
भरन चली जमना तट गागर ।
गुलेल ले कर आ नट नागर ।। 17
कंकरिया कान्हा आकर मारे ।
बँसी बजा भानुजा किनारे ।। 18
उमड़ घुमड़ आ रे घन श्यामा।
स्नेह सुधा बरसा घण नामा ।। 19
करुणाकर दिख मोहे कण कण ।
हियप्रिय आ हरि हर्षा हरक्षण ।। 20
जंत्र मंत्र मैं कछु ना जानत ।
मालिक माधा तोहे मानत ।। 21
पालत मन में तोरी प्रीता ।
मैं ना जाणूं पूजा गीता ।। 22
सखा बणे तारे तुँ सुदामा  ।
हरण करे रुकमणि कर थामा ।।  23
वडोय विशाल तोरो वैभव ।
कृपा करो करुणाकर केशव ।। 24
गावत सो पावत गज बाजी ।
जब ही जदुराज होय राज़ी ।। 25
तन मन नटवर तो पर हारी ।
बिरह भंज मोरो गिरधारी ।। 26
मनमोहन मुरली धर कर ।
चितचोर न जा चित हर कर ।। 27
पधार पुराण अढार करता ।
दया कर दंभ इंदर हरता  ।। 28 
तुम कंज लोचन चक्रपाणी ।
तुही तुही जय गीता वाणी ।। 29 
परम पुरुष तुम्हीं पुरुषोत्तम ।
नमो निरंजन नमो नरोत्तम ।। 30
विरह हर विनोद विश्वरूपा ।
भाल एक'र द्वारिका भूपा ।। 31 
जमना तट तें खेल जमायो ।
काली तें फण फोड़ भगायो ।। 32
पांचाली रो वधाय अम्बर ।
पड़े न तो बिन पार पितांबर।। 33
पार्थ तनॉ जद सार्थी पायो ।
जुद्ध पांडवां तेंइ जितायो ।। 34
नमो नमो जय जय जगदीशा ।
कान्ह सर्व हर लिजै कलेषा ।। 35
भंज साद सुण भव रा भेवा।
मो घर कर वास वासुदेवा ।। 36
सदा मन माँगत बड़ो स्वार्थी ।
परमेश्वर मन कर परमार्थी ।। 37
जयो जयो जपुँ जय जदुराजा ।
अरज सांभलो सुण आवाजा ।। 38
दया करो रे देवकी नंदन ।
बाति दीप करत जल'र वंदन ।।39 
तारणहारा आवो तारण ।
पाण जोड़ गावै ओ  चारण ।। 40

।।दोहा।।
ऊँची भलां उडावजो , प्रभु थांरी म्हुँ पतंग।
हरि उर ने हर्षावते , सदा राखजै संग ।।

भव बाधा भल भांजजो , स्याम सदा रह संग ।
सिमरत सिमरत सांवरा, उर मा उठत उमंग ।।

••••••••••••••••••••••दीप चारण









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