फुटकर दोहे सोरठे 2
भस्म रम भूतनाथ, पर्णवा गयो (जद )पार्वती।
हथलेवे थम हाथ , समो जोय सरमावती ।।
••••••••••••••••••••••••••••••••दीप चारण
सररर सर सरकावतो , कपीश चढ़कर कंध।
गड़ड़ राम गुड़कावियो , दड़ ज्यां ही दसकंध ।।
••••••••••••••••••••••••••दीप चारण
दिल से लगे तुँ दूर, दिल को तेरी आरज़ू ।
नज़र न आया नूर, खोजत दर दर ये खुदा।।
दिल से लगे तुँ दूर, दिल को तेरी आरज़ू ।
नज़र न आए नूर, खुद में ना खोजा खुदा।।
•••••••••••••••••••••••••••••••दीप चारण
दरखत्तों पर की खता , लिख पत्तों पर नाम ।
इबादत छुड़ा वो गई , तोड़ रिस्ते तमाम ।।
••••••••••••••••••••••••••••दीप चारण
दवा तुँ ही हर दर्द की , इस दिल का तुँ इलाज ।
करुणा कर करुणानिधे, रखता सबकी लाज ।।
•••••••••••••••••••••••••••••••••••दीप चारण
देवे डरतो द्रोण , एकलव मांगै अंगुठो ।
दोसी इणमें कौण ? बैगियो बखत बायरो ।।
•••••••••••••••••••••••••••••दीप चारण
गंगा ऊंधी बेवती , रंग बदलती रीत ।
काम ने कहे प्रीत , बैला बोल बिगाड़िया ।।
••••••••••••••••••••••••••••दीप चारण
तेज तपस्या तोड़ने , चाल सों करूँ चूर ।
वरण करूँ रणवीर रो, कहे मुलक सब हूर ।।
•••••••••••••••••••••••••••दीप चारण
कवि बिन ठाली कोटड़ी ,भिंता रो फिको रंग ।
दपट्टा दुहा देय कुण , अमलॉ उगे न अंग ।।
••••••••••••••••••••••••••••••दीप चारण
रंगे मोरो मन्न , सतरंगी अँग सांवरा ।
करियो हरियो तन्न , होली में हो संग हरि ।।
••••••••••••••••••••••••••दीप चारण
बनकर उड़ू गुलाल, संग तोरे गली गली ।
तन मन कर दे लाल , रसिया रँगके रूह को ।।
••••••••••••••••••••••••••••दीप चारण
रचते रस घण घोल , गीत प्रीत रुत रीत रा ।
आखर चुण अणमोल ,सु कवि राजावत श्रवणसा ।।
••••••••••••••••••••••••••••••दीप चारण
भइ त्रुटी टंकण तणी ,गाते होली गीत ।
भूल कविजी भुलायकर , बाल नै पुरौ प्रीत ।।
................................दीप चारण
कद म्हारो रेगयो कम , अति उँचो लगो अंब ।
अब मत करो विलंब , डाल नमा दे सांवरा ।।
••••••••••••••••••••••••••••••दीप चारण
ठोड़ कारणे दौड़ , ठोड़ न कोई ठेहती ।
चाल दीप कर जोड़ , साचो ठइयो सांवरो।
••••••••••••••••••••••••••दीप चारण
करतां रिमु कर थाकिया , पिया उतरगा पैग ।
दोय मेटुँ (इते) दस टेकदे , टेगिया बैरि टैग ।।
••••••••••••••••••••••••••••••दीप चारण
पीकर दो - दो पैकड़ा , टैकी साँसद (रे) थाप ।
न चढ़ियो चोखो नसो , झट पुलिस लियो झाँप ।।
•••••••••••••••••••••••••••••दीप चारण
वोट हड़प नोट हड़पे , हिड़का माँगे सोट।
दाता इक दिन देवसी , माँगसी जद ऐ वोट ।।
••••••••••••••••••••••••••दीप चारण
रानी देखे रूपसी , निहार रह्या रूप ।
चित री चंचल चाहमें , भोला बणिया भूप ।।
••••••••••••••••••••••••••दीप चारण
खवाय किणेइ खाग ,जोयो बैरी जावतो ।
पड़ण न दीधी पाग,पट्टी मेरे (मेरामण)पावते ।।
••••••••••••••••••••••••••••दीप चारण
भाण उगो ज्यां भोम ,अण आथमियो ऊजलो।
काठी लांठी कोम , चले चरित चित चमक ले ।।
••••••••••••••••••••••••••दीप चारण
लगता है ये अमीरों की बस्ति हैं ……
चल दीप कहीं और जाकर जलते हैं ।
दीप चारण
बालम्या मत बिसरायजै , बस मोकलो बिदेश ।
बिनती बस इक सांभलो , भेज्या नित संदेश ।।
••••••••••••••••••••••••••••••दीप चारण
चल दीये इश्क़ मजाजि से इश्क़ हकिकी की ओर ।
शायर बनकर छोड़ शायरी पकड़ छंद का छोर ।।
•••••••••••••••••••••••••दीप चारण
शर्म लाज सब त्यागकर , कूदे घणो कपिल्ल।
ही-ही हा-हा सब हँसे,भयो हास्य अस लिल्ल।।
••••••••••••••••••••••••••••••••••दीप चारण
घुर कर ओजोन् में घणा , करतो रवि बदनाम ।
कर जोड़ करे प्रणाम, तापो कम थें तावड़ो ।।
•••••••••••••••••••••••••••••• दीप चारण
चातक ठगणी चातकी , चँचल नैण चितचोर ।
मनमौजी तूं मल्लिका , मन में नाचत मोर ।।
लू ने लाड लडावतो , भभकै घण तूं भाण।
बाल नाखिया बापुड़ा , प्राणी तजेह प्राण ।।
सरवर नदियाँ सब सुखा , भम भम तपता भाण ।
जीव ले सुतो जीवरो , ताप जागतो ताण ।।
•••••••••••••••••••••••••••••••दीप चारण
अफसर बणे अपंग , नैडी राखै नीचता ।
दीपयो देख'र दंग , सरसी कीकर सांवरा ?
•••••••••••••••••••••••••दीप चारण
चितौड के सफ़र पर
लीला करतो लेय जा , थूंही थारी ठौड़ ।
कल्लो कृष्णा खोजने , चाल्यो दीप चितौड़ ।।
होसी मैंगी होटलां , होसी मैंगा हाट ।
कलजुग माही कल्लजी, ठाये कवि रे ठाठ ।।
•••••••••••••••••••••••••••दीप चारण
छीन में पुगे साठ, जीवन रहगो बावनो।
बा वन पढ़जो पाठ, लारे रैसी चौप्निया ।।
9660525254 मेरे नंबर
००००००००००००दीप चारण
अर्थात
क्षण में (जल्दी ही) ही इंसान साठ वर्ष का हो जाता है, जीवन (बावनो) ठिंगना छोटा या कम रह गया है। पहले इंसान 100 साल जिता था आजकल 50-60 साल ही जी पाता हैं। अपनी आदिशक्ति के बावन पीठ है या नाम है उनका पाठ करो अच्छे कर्म करो ईश्वर का नाम लो। एक दिन हम चले जायेंगे और हमारे जीवन के कर्मो के चौपनिया (पोथियां) लेखा जोखा पीछे ही रहेगा साथ नहीं जायेगा। या किताबें और वशियतें पीछे ही रहेगी।
दारूड़ो देशी दवा , दारू मीठी दक्ख ।
बेहिसाब बाजै गरल , थोड़ी थोड़ी चक्ख ।।
•••••••••••••••••••दीप चारण कृत
साची केई साबजी, वडीह बढिया वात।
दिन नै इनै न देखजो ,रस ओ रूचै रात।।
°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°दीप चारण
लिखणहार लिख लेखड़ो, छेवट जिद अब छोड ।
लाडी लावण लाडकी , करे कुँवारो कोड ।।
°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°दीप चारण
लिरो लिर चिर गैली रा ,आधा अंग उगाड़ ।
व्है सड़क पर जुणी बसर ,अबखो उदर जुगाड़ ।।
••••••••••••••••••••दीप चारण
पागल महिला जिसके वस्त्र फटे पुराने है । न उसका कोई घर बार है आकाश छत सङक आंगन पर मिनख जमारा गुज़ार रही है पेट के लिये रोटी का जुगाङ भी मुस्किल हैं ।
यादां में गम यार री, जागतो जोउं ख्वाब।
छोड़े हमें निज हाल पर, आप सोइये साब।।
°°°°°°°°°°°°°°°°°°दीप चारण
दोहा पढतां देखले , जबरी भरे दहाड़ ।
नाहर है या नार है ,कांपै कवि रा हाड़ ।।
°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°दीप चारण
फेसबुक पर से प्राप्त चित्र पर एक सोरठे में भाव व्यक्त करने का प्रयास ।
सोरठा
पापा पापी पाड़ , बैगा घरां पधारजो।
झाला देसी (ऐ) झाड़ , आंबा री रुत आवतां ।।
°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°दीप चारण
दोहा
पीलू ढालू देखने, हिवड़े उठती हूंक ।
पापा जल्द पधारजो, लावण चालां लूंख ।।
°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°दीप चारण
रूड़ोह सिन्धु राग ,शंख नाद कर छेड़दो।
पाक रै लगा आग ,रचतां कविता राजसा ।।
°°°°°°°°°°°°°°°°दीप चारण
पानी उतना लीजिए ,जितना तुमको भाय ।
बूँद बूँद हैं कीमती , व्यर्थ तुं मत बहाय ।।
°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°दीप चारण
नेता अर राजा दीप चारण कृत
नेता
मुह में राम बगल छुरी , पाखँंडि सफेद पोस ।
पैला मांगण आवतो , पछैह खावै खोस ।।
राजा
रैयत रो तो राम हो ,दातार हर दरबार ।
ईला पर ओ दीपसा ,ईश रो इ अवतार ।।
°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°दीप चारण
गीत प्रीत रा गावसो , रोता रैसो राज ।
संयोग वियोग साजना ,लिखतां तू कर लाज ।।
°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°दीप चारण
प्रीत बिच्च पजा'र , बंदे बणाय बांसकै ।
नौकरी अरू नार , फंद बिच्च हरि फांसकै ।।
°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°दीप चारण
सूकोड़ो हरि सोगरो , मैं नी जांणू चब्ब ।
रब रब मैं कब ना करूं , खाते पीते रब्ब ।।
°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°दीप चारण
इश्क सुफीयाना
मुझे इश्क की आरजू , ना कर खुद से दूर ।
ज्योति जगा दे दीप की ,नस नस भर दे नूर ।।
मीत प्रीत की लौ लगा , जगा इश्क का दीप ।
बैठा हूं मुँह फाड़कर , समंद बीच ज्यों सीप ।।
°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°दीप चारण
कपड़ा पैरै फाड़ , फूहड़ ऐड़ी फैसनाॅ ।
आधा अंग उघाड़ , देख'र मुलकै दीप सा ।।
°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°दीप चारण
प्रभु पार लगायदे , नैया खिवैया टाल ।
डग डग दीप डूबतो , भचकै करेह भाल ।।
°°°°°°°°°°°°°°°°°°दीप चारण
चरुड़ी धर सिर चारणी ,भरने चाली नीर ।
हाकल कर सिंह हाकती , गांव गुजरात (नो)गीर ।।
°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°दीप चारण
झट से झेले कान, ताने मात व तात के ।
छूपे कहाँ सुजान , पीछे भी न रहे पिया ।।
°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°दीप चारण
गायां चरने आयगी , करण लगी आराम ।
बाड़े गायां बाड़तां , सेल्फी लेवे श्याम ।।
°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°दीप चारण
मन को मिलती मौज , पद न कोय पोस्ट में ।
खुद में खुद को खोज , मस्त रहो रै मदन सा ।।
°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°दीप चारण
मोटो रखियां मन्न, मिनख निकट नित रेवसी।
मोटो करियां तन्न, नैड़ा न बैठे नैनिया ।।
°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°दीप चारण
जन मन मोदी संग हैं, भड़क रहे बेइमान ।
चोर सभी चिल्ला रहे , मोदी लेगा जान।।
°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°दीप चारण
गरिबन री ही आड़ में, रिपिया वाला रोय।
दीनन उँघ ले बैंक में, पाय न बे घर सोय।।
°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°दीप चारण
सोरठो
भक्तां प्रचार होय, मोदी बणाय मालिया।
रैयी जनता रोय, हा पण पानां तास रा।।
°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°दीप चारण
भावार्थ
मोदी भक्तो ने खूब प्रचार किया कि मोदी ने सुंदर महल मालिये बनाये हैं जनता के लिए गरीबों के लिए बढ़ा चढा कर पेश किया जाता है कागजों में करोड़ों खा खर्चा होता हैं।
पर जनता पहले तो फूली नही समाती हैं फिर बैठी अंदर अंदर रोय जब पता चलता हैं की वो महल तो मोदी ने तास के पत्तों से बनाये थे। पर उसका प्रचार प्रसार ऐसा हुआ जैसे असली में बनाया हो।
आज कल सारी योजनाएं भी ऐसी है चाहे कोई भी पार्टी हो चाहे कोई भी नेता है। यही लोकतंत्र है भाषणों के कोरे मंत्र हैं।
°°°°°°°°°°°°°°°°°दीप चारण कृत
ठाढी घणीह ठण्ड, ठर ठर धूजे जीव सब।
तप तप भाण प्रचण्ड,धूखा नाखो धूंध आ।।
°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°दीप चारण
डोरी पतंग छोड़कर, फिरकी छत जा भूल।
तैयार होय बालकों, शीघ्र जाइए स्कूल ।।
°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°दीप चारण
क्या पूजा आराधना, किसके देव समीप।
करो शब्द की साधना,भटक ना दर दर दीप।।
°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°दीप चारण
प्रीत माइतां(री) पांतरे, प्रेम चढे परवाण।
नाजोगे नर नार की, होती सदैव हाण।।
°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°दीप चारण
अर्थात अज्ञानी कवि दीप चारण कहता हैं कि जो पाश्चात्य संस्कृति से प्रभावित होकर अपने माता-पिता का निस्वार्थ भाव का प्रेम भूलकर किसी ओर आकर्षित होकर जो लड़के लड़कियां प्रेम विवाह कर लेते हैं उन्हें थोड़े समय के लिए क्षणिक सुखी हो सकते हैं पर आखिर उनको अन्ततः सदैव हानि ही उठानी पड़ती है। वे आखिर तक जीवन में दुख ही हासिल करते हैं। इतिहास उठाकर देख ले। गलत कहा हो तो।
शिव गण के कर गुण ग्रहण , संस्कृति चारणवंशि।
डर डिगावण डग डग पर, अडग पग धर दिव्यांशि।।
°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°दीप चारण
कवि कविता भूल्चूकियो, राजन भूल्या राज।
लैणां में सब आ लगे, गिराइ नरिये (मोदी) गाज।।
°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°दीप चारण
दान माया न दीजिए, (पण) दीजो विद्या दान।
भोगी भव भव भोगसी, विद्या करै विद्वान।
°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°दीप चारण
आखर पढ,'र अनेक,
टीके खातर दौड़ता।
नृप वे बाजे नेक,
सत्कारत है जग सकल।।
°°°°°°°°°°°°°°दीप चारण
पोथी पढ अफसर बने, पण बनत न कोई नेक।
बावले बिन पोथी पढे , कविवर हुवे अनेक ।।
°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°दीप चारण
म्हूं न जाणतो मेल,
आखर जगाॅह ओपता।
भाषा इ हेल भेल,
ठीकर ठालो दीपसा।।
°°°°°°°°°°°°°दीप चारण
इत्र लगा पुर अंग, महक रया फिर फिर मुलक।
सुलगता अग्नि संग,रही न सुगन्ध राख में।।
°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°दीप चारण
रिक्त स्थान भरिये फिर पढिये
विधवा नाहि.................., रैयत काहे रोय।
रांड रांड सब जन कहे, रानी कहे न कोय।।
°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°दीप चारण
वीणा बजाय विरहणी, पिउ पिउ रही पुकार।
प्रीय बसे परदेशड़े, सूझे नह सिणगार।।
°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°दीप चारण
साकले पोर हालिया, दिपसा बस मॉ बेस।
तेड़ाय राय तेमड़ा, सासरिये रै देस।।
°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°दीप चारण
दयालु वड दातार, अवर न कोई दीसतो।
तें तणा बंध्या तार, तूटे कदी न सांवरा।।
°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°दीप चारण
झांपियो मार झप्पटा, कर्यो कलयुग कैद।
चरे ऊदाइ चारणां, चारण चौथो वेद।।
°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°दीप चारण
रज पुत सींची रक्त सों, चारन गाया गान।
गूंज्या हिन्द में गीतड़ा, जय जय राजस्थान।।
°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°दीप चारण
ઘોડા.. જીપ.. જીપસી..., સ્ક્રોપિયો.. બુલેટ... તમામ |
કાઠી.. રી .. આયાં.. કોટડી.. , કવિ.. રૈ .. આસી.. કામ ||
.................... રામકુ ભાઈ કરપડા & દીપ ચારળ
जय माता जी री सा। खम्मा घणी सा।
चहकती नन्हि चिड़कली,चतुरइ चारणवंशि।
पधारी बसंत पंचमी, दीप सुता दिव्यांशि।।
°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°दीप चारण
बिकम बरस बुहजार, चैत्र शरू चोहत्तरो।
आपै खुशी अपार, नव दुर्गा नवरात्र रो।।
°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°दीप चारण
🔱 चैत्र नवरात्रा हिन्दू नव वर्ष 🔱 "विक्रम संवत 2074" की आपको व आपके परिवार को शुभ कामनाएँ ।
सिणगार बिन सादगी, सादा ही रंग रूप।
लाल बिंदी इक भाल पे, अंजन नैन अनूप।।
°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°दीप चारण
फूटरा फिरंग फौड़िया,सुखदे राजगुरु संग।
रूड़ी राष्ट्र भक्ति नै, रंग रै भगतां रंग।।
°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°दीप चारण
भूंडा ने भूंडो कहे, भल्ला नै भगवान।
चारण सच सिरकावतो, कूड़ रा झाल कान।।
°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°दीप चारण
गढवी बचु कवि गरविलो, अति वाणी मॉ औज।
वार्ता मंडत वीररसि, मुल्क मॉ थाय मौज।।
°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°दीप चारण
हीं हीं हीं हय हींसतो, ऊभो पिछाड़ी टांग।
काठी कटि कसकर चले, सुणतां ढोल धिड़ांग।।
°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°दीप चारण
होली हर्षोल्लास, मौकली सब मनावजो।
मौजां बारह मास, सूंपै बैली सांवरो।।
°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°दीप चारण
होली पर्व की आपको और आपके परिवार को हार्दिक शुभकामनाएं और बधाईयाँ। जय माताजी की।
चार नन्हें पौधों वाले छोटे से बगीचे में खिला पहला फूल।
देखे चांद चकोर ज्यां, शराबी "ज्यां शराब।
मधुकर मन रा "दीपसा", गुंजित देख गुलाब।।
°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°दीप चारण
प्रथम उठ कर प्रभात रा, उठावतां कलम आज।
जयकार सूवा मात री, करि मधुकर कविराज।।
°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°दीप चारण
एटेंड फंगसन एक, कियो ना किणी कारणे।
देख दीपिया देख, सब्ब रिसाज्या सासरिया।।
°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°दीप चारण
दो साल पुराना पुनः सुधार कर
दरबार दीप देखतां , क्हे आवो कविराज ।
बोल धीमेह बोलतां , बुलंद लगे अवाज ।।
कंठ वेण कविता बने , सह स्वत: नगाड़ा बाज ।
भाग सुतोड़ा जाग जा , मांगु किं ? मांँ हिंगलाज ।।
°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°दीप चारण
शरणागत पावे शरण , धरम पाले सपूत ।
न सीस अरि संमुख नमे , रीत रखै रजपूत ।।
निरबल को बतलाय बल, छल छलकाय कपूत ।
कदर ना चारण री करे , रहत न वो रजपूत ।।
……………………………………दीप चारण
नौकरशाह गुलाम, नेताॅ रे फरमान रा।
नम'र ठोके सलाम, अफ्सर निचा ऊंचलां ।।
°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°दीप चारण
मित्र प्रशांत जी दवे साहब के सिंगापुर टूर पर एक सोरठा।
नटखट ले गइ नार, द्वीज सिंगापुर देखने।
पूगा समंदाॅ पार, परणिजतां इ प्रशांत जी।।
°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°दीप चारण

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