kavita ऐ नादान मनुष्य न कर प्रक्रति से खिलवाङ , (prkrti ka tandv) by dilipsingh
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ऐ नादान मनुष्य न कर प्रक्रति से खिलवाङ , प्रक्रति रुष्ठ हो जायेगी ।
प्रक्रति ने जब किया खिलवाङ , ये दुनिया अफसाना बनकर रह जायेगी ।।
इक जलजला सा उठेगा ...
इक आँधी सी आयेगी ।
तापमान बढता जायेगा ,
ध्रुवोँ और हिमालय कि हिम पिघल जायेगी ।।
नदियाँ तेजी से प्रवाहित होगी ,
छल-छल ,छला-छला, छल-छल तबाही का गान सुनायेगी ।
उछलती कुदती न्रत ताँडव करती समन्दर से मिल जायेगी ।।
सागर का जल स्तर बढेगा,
इश्क मेँ साहिल मिटता जायेगा ।
मोझेँ साहिलोँ से टकरायेगी,
साहिल बिखरता जायेगा ।।
ऐ नादान मनुष्य न कर प्रक्रति से खिलवाङ , प्रक्रति रुष्ठ हो जायेगी ।
प्रक्रति ने जब किया खिलवाङ , जगत कि दास्तां मिट जायेगी ।।
अधर्म अनीति के कारण पाँच पांडवो ने , सैकङो कोरवोँ को बुरी तरह सेँ पछाङा था ।
इस द्रोपदी (प्रक्रति) के पाँच पांडव हैँ प्रसान्त ,आर्कटिक, अंट्रार्कटिक , अन्ध और हिन्द महासागर ...
हे कलयुग के कौरवोँ ये जब करेगेँ वार आँखो मेँ नीला अंधेरा छायेगा , काल कि नीली छाया नजर आयेगी ।।
ऐ नादान मनुष्य न कर प्रक्रति से खिलवाङ , प्रक्रति रुष्ठ हो जायेगी ।
प्रक्रति ने जब किया खिलवाङ , तेरी कहानी खत्म हो जायेगी ।।
तुने अब और छेङा इसे ये आगबगुला हो जायेगी ..
कब तक सहेगी तेरे जुल्मोँ सितम ये क्रोधित हो जायेगी...
सारी धरा काप उठेगी इक भुचाल सा आयेगा ।
चहूंओर त्राहि माम त्राहि माम का गान सुनायेगा ।
ज्वालामुखी फटता जाएगा ..
बांस से बांस टकरायेगा ।
दावानल चहुँओर बढती जायेगी ,
जगत झुलसता जाएगा ।।
ऐ नादान मनुष्य न कर प्रक्रति से खिलवाङ , प्रक्रति रुष्ठ हो जायेगी ।
प्रक्रति ने जब किया खिलवाङ , तेरी हस्ति मिट जायेगी ।।
प्रक्रति ने भेजेँ अपने कंई सदेश दुत,
उनमेँ अब इक और भी हैँ , कवि दिप चारण देवी पुत ।
ऐ नादान मनुष्य अब संभल जा , नही हो जायेगा नस्ते -नाबुत ।।
ऐ नादान मनुष्य न कर प्रक्रति से खिलवाङ , प्रक्रति रुष्ठ हो जायेगी ।
प्रक्रति ने जब किया खिलवाङ , ये दुनिया अफसाना बनकर रह जायेगी ।।
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