हो गयी सरकार चरित्रहीन , अब तो जल बीन मीन तङपनी चाहिऐ ।
अतिश्योक्ति हो रही अत्याचारोँ की ,अब तो बदलनी चाहिऐ ।।
कब तक सुरक्षित रहोगेँ इसकी आङ मेँ ,
हो गयी ये छत जर्जर अब तो गिरानी चाहिऐ ।
दम घुट रहा हैँ बीन हवा केँ , अब तो आँधी उठनी चाहिऐँ ।।
बहुत एकत्रित हो गया यहाँ कचरा , अब इस उकुङे को जला देना चाहिऐ ।
जहाँ जहाँ आग होगी वहाँ धुआ उठेगा समझे दिप ,
इससे मच्छर मरने चाहिऐँ ।।
दिप चारण

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