मोहब्बत इक आग का दरिया हैँ ...हम तो खुद को जला बैठे इसे पानेँ मेँ ।
वो इक शमां थी इस पंतगेँ को मिटानेँ मेँ ....
अब क्या बाकि रहा देखनेँ को अपना अफसाना मिलाकर तेरे अफसानेँ मेँ ।।

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