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पोंपली रा सौरठा

पोंपली रा सौरठा सह स्विस वालो केश, भेलो धर धन भारियो। जाइ बैगी बिदेश, पोंपा चढने पालखी ।। बोटा में मीठी बोल,  जन धन ब्होत बुहारियो। जनतंत्र पोलम पोल, परवाण चढ़ि हि पोंपली।। दीन रो दुःख अखूट, राड़ा देसी रांड त्नै । लीवी मुरधरा लूट, पड़सी कीड़ा पोंपली।। आदम कर अपराधि, काम निज्ज रा काढिया। गीरती देख गाद्दि, पाड्या दगेउ पोंपली ।। रथ चढ रूलंतीह , गाढो जन धन ढोलियो। लाज न आवंतीह, रक्तमद पिते पोंपली।। पोल ऊंचली राख, दिग्गजां ने नि धारती। गटकत दारू दाख, पग ते पग रख पोंपली।। जाती ने जूहार, बांगरी लारे फेरसा । भू तज ज्यूं भरतार, पाछल न फोरि पोंपली।। धोबा भर भर धूड़, बैगी लारे बालसां । फकत (थूं) निकली फूड़ , पछि मत मरजे पोंपली।। °°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°दीप चारण

मूलदान जी सा भू की स्मृति में सौरठा

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तरुवर ताल उदास, खग उदास खेलड्डियां। उदास भू को उजास, डग डग उदास डांगरा।। झड़ंत उदास झाड़, बोर उदास बोरड्डियां। उदास माड़ पहाड़, मानव उदास माड़ रा।। जाजम उदास जोर, उदास डोडा डोकरा। प्रोलां उदास पोर, उदास अमल मनवारिया।। आवसे घणि अडोल, पग धरतां भू भोम पर। बैठां सुणजसि बोल, मधुर कया ज्का मूलजी ।। कुण अब करसी कोड, रूत रीत त्योहार रा। छैका ग्या थें छोड, बिलखै घण मन मूलजी।। उदास बैलां बाग, बिलखता बागबान बिन। उदास भू रो भाग, म्हानै लखाय मूल जी।। मगरां उदास मोर, कुरजां अति कुरलावती। भू री उदास भौर, म्हानै लागे मूलजी ।। नैणा निठ्यो नीर, उनाले जिम नाडियां । हिये माहि आ पीर, मावै नाही मूलजी।। गवाड़ उदास गांव, भू सह भोपां अरु भिंयां। उदास दरखत छांव, मोला हि खेत मूलजी।। असमाण मोलो भाण, मोलो भू रो  मिनख मन। मोलो नगर जैसाण, मन नै लागे मूलजी।। अपणायत सहृदय के धनी थे मूलदान जी सा रत्नू भू

जगदीशाष्टकम् (दीप चारण कृत)

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जगदीशाष्ठकम् ( दीप चारण कृत)   ।।  दोहा ।। सुर दे   माता  सारदे,   अम्बा  दे  आशीष। लछमी माते लाज रख,जपे दीप जगदीश।।       ।। छंद मोतीदाम ।। तुहीं मम मात तुहीं मम तात। तुहीं मम मीत तुहीं मम भ्रात।। समो झट आय मिलो घल बाथ। नमो जगदीश निरंजन नाथ।।   [1] तुहीं मम भीर, तुहीं मम पीर। तुहीं मम लाज, तुहीं मम चीर।। लगूं नित पाय, नमे नित माथ। नमो जगदीश निरंजन नाथ।।  [2] बसा उर कान सदा धर ध्यान। उचार विचार सुसार सुजान।। सदा सिंवरे जन जोड़'र हाथ। नमो जगदीश निरंजन नाथ।।  [3] तुहीं गिरि ओड़ सुरेश मरोड़। तुहीं तम तोड़ तुहीं रणछोड़।। प्रभू! परमेश सदा रह साथ। नमो जगदीश निरंजन नाथ।।  [4] सुणे तु सदाय करूण पुकार। जपूं जय जैय करूंह जुहार ।। नशीब सुधार इ ठाठज ठाथ। नमो जगदीश निरंजन नाथ।।  [5] तुहीं जग मंडण पालनहार। धरा धरि दाढय आसुर मार।। पुजे नर नार ऋषी मुनि जथ्थ। नमो जगदीश निरंजन नथ्थ।।  [6] तुहीं सुख वैभव देवण वाल। तुहीं दुख भंजण दीन दयाल।। तु कौरव कूटण ठाय भराथ। नमो जगदीश निरंजन नाथ। ...

घोड़े रो सूपखरू कवि दुला भाई काग कृत

वाह घोडा वाह – कवि दुला भाया “काग” गीत सपाखरू छूटा ग्राहबे वोम बछूटा रोकता धराका छेडा उठाहबे पागा महि शोभता अथोग धाहबे खगेश तके वेगरा अथाह धख्या साहबे नाखता पागा नटव्वा अमोध (1) डाबला मांडतां धरा धमंके साबधी दणी झमंके साजहीं कोटे रंभरा झकोळ चमके वाहसे जाणी वीजळी जालदा चळी भ्रम्मवाळा भारे ठाळा गतिवाळा मोर (2) वांभशी सांकळांवाळा टांक कानसोरी वदां कुरंगां आंखडीवाळा मूलरा करोड भालावाळा लटां केश फोरणां उलंधी भजे जटाळा जोगंद्र नहीं पटाळाकी जोड (3) छाछरा भालरा छातीयां ढालरा समां चोडा त्रींग बाजोठरा खाळीया सढाळ साकाबंधी तांसळीरा ओपता डाबला चोडा ठमकंता घोडा नाडा तोड सांधे ठाळ (4) अंजळिमां पीता पाणी मोकली वखाणी आप जांगळां थोकरा धरा पूंछरा झपाट केशवाळी ढींचणारा ओवाराणा लीये काजु थडक्के धरास वांसा डाबकी थपाट (5) लगामे गराया हाथ ऊतरे गढांपे लाया टोळे मृग्गवाळा फोळे खीजीया तोखार चडाया वा’णरा सढां देखी कंपे निज छाया नाचरा नचाया के हसाया नरां नार (6) करंता नख्खरा देखी धरापति रीझे केक डरंता माठरा नरा घडेला देखाव बाथां पाव उंडळां के भरंता भोमरी बथ्थां नवल्ला बनाया घोडा ब...

करूणा स्तुति पृथ्वीराज चौहान कृत

💥करूणा-स्तुति 💥 कृत:-पृथ्वीराज चौहान 🌺छंद-भुजंगी🌺 परयौ गजनी बंध मलैछ हथं ; विचार करै आप कर तुत पीथं ! हन्यौ दासी कै हैत कैमाच दानं ; गजं खुन चॉमंड वैरी भरॉन !!१!! बंधै कन का काच खापट गढ़ै ; बिना खुन पंडुर सैभ्रत कढ़ै ! लीयौ राज लौकं रमंतै सीकारं ; ब्रम कैहरी कनरा रीख जारं !!२!! वरजत चंद चलयौ हुं कन्नौजं ; तहॉ सुर सॉमत कट थट फौजं ! रह्यौ गैर मैला भयौ काम अधं ; निशा वासरी बात जॉणी न संधं !!३!! दरबार मैटे अधंब बड़ाई ; सहु ऊपरै सीस हम्मीर राई ! बिना खून दरवैस अंगुली कटाई ; वाहं फौज ऊर्द मक्कै चढ़ आई !!४!! धरू आप सहाय काजी खुमॉन ; गयौ चूक अवसान सन्मुख जानं ! भई बुध व प्रीत सो हौनहारं ; चली पारसु दीह चक्शु निकारं !!५!! पलट्यौ दिंह रहै लग्ग तारी ; अहौ राय गौविन्द गर्भ अहारी ! सहौ फूल के फूलनी नाह नत्थं ; तुरत तुरावै समालीन हत्थं !!६!! नही सूर सामंत परिवार दैसं ; नही गज बाजं भंडार विलेसं ! नही पंकुजा प्रान ते अंत प्यारी ; नही गौख मैलायतॉ चित्रकारी ! नही चींग अगै सुलगै परदा ; नही धूप हमाम गरमी सरदा !!७!! नही सीरखूं रूप रूकै ऊसैंसा ; नही पछमी तकिय...