मूलदान जी सा भू की स्मृति में सौरठा




तरुवर ताल उदास, खग उदास खेलड्डियां।
उदास भू को उजास, डग डग उदास डांगरा।।

झड़ंत उदास झाड़, बोर उदास बोरड्डियां।
उदास माड़ पहाड़, मानव उदास माड़ रा।।

जाजम उदास जोर, उदास डोडा डोकरा।
प्रोलां उदास पोर, उदास अमल मनवारिया।।

आवसे घणि अडोल, पग धरतां भू भोम पर।
बैठां सुणजसि बोल, मधुर कया ज्का मूलजी ।।

कुण अब करसी कोड, रूत रीत त्योहार रा।
छैका ग्या थें छोड, बिलखै घण मन मूलजी।।

उदास बैलां बाग, बिलखता बागबान बिन।
उदास भू रो भाग, म्हानै लखाय मूल जी।।

मगरां उदास मोर, कुरजां अति कुरलावती।
भू री उदास भौर, म्हानै लागे मूलजी ।।

नैणा निठ्यो नीर, उनाले जिम नाडियां ।
हिये माहि आ पीर, मावै नाही मूलजी।।

गवाड़ उदास गांव, भू सह भोपां अरु भिंयां।
उदास दरखत छांव, मोला हि खेत मूलजी।।

असमाण मोलो भाण, मोलो भू रो  मिनख मन।
मोलो नगर जैसाण, मन नै लागे मूलजी।।

अपणायत सहृदय के धनी थे मूलदान जी सा रत्नू भू


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